BJP के मिशन 400 के बीच रोड़ा बनेंगे ये राज्य, क्या काम आएगा MP ?

बीजेपी अपने दम पर पिछली बार 303 सीटें ला चुकी हैं। हालांकि, 400 पार का आंकड़ा अब भी दूर की कौड़ी है। राम मंदिर है। धारा 370 है, अग्निवीर है, मोदी की गारंटी है फिर भी 4 सौ पार करना इतना आसान नहीं है। आपको बताते हैं बीजेपी-कांग्रेस का राज्यवार गणित...

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Jitendra Shrivastava
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BHOPAL. वोटिंग का समय ओवर हो चुका है, मैं उम्मीद करता हूं कि जहां जहां वोटिंग थी वहां लोगों ने अपने मतदान के अधिकार का उपयोग जरूर किया होगा। वैसे भी अगर अपनी पसंदीदा पार्टी को जिताना है तो वोटिंग करना जरूरी है। क्योंकि आपका वोट ही तय करेगा कि बीजेपी ( BJP ) को चार सौ सीटें मिलती हैं या कांग्रेस का दावा कुछ हद तक सही होता है। चार सौ सीटों का नारा तो आप लोग बहुत दिन से सुन ही रहे हैं। पहले वो ताजा ताजा बयान बता दूं जिसमें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने बताया है कि बीजेपी को कितनी सीटें मिलने वाली है। राहुल गांधी का दावा है कि बीजेपी को 150 सीटें मिलेंगी और उनकी बहन प्रियंका गांधी का अनुमान है कि बीजेपी 180 सीटे ही मिलेंगी। ये अनुमान तब है जब कांग्रेस पार्टी खुद अब तक के सबसे कमजोर हाल में है और बीजेपी अपने दम पर पिछली बार 303 सीटें ला चुकी हैं। हालांकि, 400 पार का आंकड़ा अब भी दूर की कौड़ी है। राम मंदिर है। धारा 370 है, अग्निवीर है, मोदी की गारंटी है फिर भी 4 सौ पार करना इतना आसान नहीं है। क्योंकि सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये चार सौ सीटें आएंगी कहां से। चलिए इसे ही समझने की कोशिश करते हैं कि कौन से राज्य बीजेपी का गणित बिगाड़ सकते हैं और क्या मध्यप्रदेश भी ऐसे ही राज्यों में शामिल है।

मतदाता के मनोविज्ञान को बीजेपी हैक करने में कामयाब रही है

400 सीटें हासिल की जा सकती हैं। ये काम मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं है। लोकतंत्र की परीक्षा में अपने नंबर बढ़ाने के लिए वैसे भी बीजेपी जबरदस्त तैयारी कर रही है और बहुत समय से तैयारी कर रही है। बीजेपी ने वो सीटें भी देख ली हैं जहां पार्टी की हालत कमजोर है। पहले बीजेपी ने ऐसी 140 सीटें मार्क की थीं और अब इसकी संख्या बढ़कर 160 हो चुकी है। यानी बीजेपी खुद मान रही है कि देश की 160 ऐसी सीटें हैं जहां उसकी हालत कमजोर है। इस हकीकत को जानते हुए भी बीजेपी ऐसा नरेटिव सेट करने में कामयाब हुई है कि वो आसानी से 400 पार कर रही है। अपने अलायंस के साथ। अगर हम चुनावी माइंड गेम की बात करें तो ये साफ नजर आता है कि बीजेपी कांग्रेस से खासा आगे निकल चुकी है। जो ये यकीन दिलाने में तो कामयाब है ही कि वो नया इतिहास रचने जा रही है साथ ही ये भी मानने पर मजबूर कर रही है कि न सिर्फ कांग्रेस बल्कि, सारे विपक्षी दलों की हालत खस्ता हो चुकी है। मतदाता के मनोविज्ञान को तो बीजेपी हैक करने में कामयाब रही है, लेकिन अंदर ही अंदर ये भी जानती है कि जिस बड़े नंबर को अचीव करने का वो दावा कर रही है। वो इतना आसान है नहीं। क्योंकि हिंदी बेल्ट में जितनी अधिक सीटें हो सकती हैं वो बीजेपी के खाते में पहले ही आ चुकी हैं और साउथ से जो उम्मीदें हैं वो बहुत ज्यादा पूरी होती नजर नहीं आ रही हैं। हाल तो नॉर्थ ईस्ट में भी कुछ-कुछ बेहाल हैं। फिर ये जो बढ़े हुए नंबर है वो कहां से मिलेंगे।

चलिए इस गणित को थोड़ा और आसानी से समझाता हूं। इसके लिए हम स्टेट्स को अलग-अलग कैटेगरी में डिवाइड कर लेते हैं। ऐसे स्टेट जहां हालात बदलना मुश्किल है। दूसरी कैटेगरी रखते हैं उन प्रदेशों की जहां बीजेपी कांग्रेस या बीजेपी और किसी और दल के बीच तगड़ी फाइट देखने को मिल सकती है। तीसरी कैटेगरी रखते हैं ऐसे स्टेट की जो बीजेपी की झोली में बहुत आसानी से जाते दिखाई दे रहे हैं। 

बात करेंगे कुछ ऐसे प्रदेशों की भी जहां इस बार क्या होगा कहना आखिरी वक्त तक मुश्किल ही है...

  • सबसे पहले बात शुरू करते हैं साउथ के प्रदेशों से। जहां राम मंदिर की धमक सुनाई नहीं देती और न ही ये प्रदेश धारा 370, सीएए या यूसीसी के बारे में सुनकर बीजेपी की तरफ दौड़े चले जाते हैं। बीजेपी ने अपने लिए 370 सीटों का टारगेट तय किया है और अलायंस की मदद से 400 पार की कोशिश जारी है। अब अगर साउथ इसमें ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूट नहीं करता है तो बीजेपी को पहला झटका यहीं से लगेगा। यहां करीब 130 सीटे हैं। जिसमें से फिलहाल 29 सीटें ही बीजेपी के पास हैं। इसमें से 25 सीटें उसे अकेले कर्नाटक से मिली हैं और तेलंगाना से उसके पास 4 सीट है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और पुडुचेरी में बीजेपी के पास एक भी सीट नहीं है। तमिलनाडू में खुद पीएम मोदी पूरी ताकत लगा रहे हैं, लेकिन हालात विपरीत नजर आते हैं। यानी हम कह सकते हैं कि तमिलनाडू और केरल तो ऐसे राज्य हैं जहां हालात बहुत ज्यादा नहीं बदलेंगे। जो स्थिति 2019 में रही वही थोड़ी बहुत ऊपर नीचे हो सकती है। यानी यहां से बीजेपी को एक्स्ट्रा सीट मिलना मुश्किल है।
  • अब बात करें कर्नाटक की। तो यहां अब कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस के पास यहां से बड़े चेहरे हैं। कांग्रेस की पांच गारंटी भी असर दिखा रही है। अगर कांग्रेस आखिरी समय तक ठीकठाक कैंपेन चला लेती है तो मुश्किल है बीजेपी यहां पुराना प्रदर्शन दोहरा सके। यानी साउथ के इस स्टेट में है कांटे का मुकाबला। यहां से भी सीट कम होती ही दिख रही है। बीजेपी के खाते में आती नजर नहीं आ रही।
  • ओडिशा में ज्यादा फेरबदल की स्थिति नहीं नजर आती है यहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर बीजेडी भारी पड़ती दिख रही है, लेकिन पश्चिम बंगाल इस बार मुश्किल खड़ी कर सकता है। टीएमसी पहले इंडी अलायंस का हिस्सा थी अब नहीं है, लेकिन यहां लेफ्ट और कांग्रेस साथ-साथ हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां टीएमसी सबसे बड़ी पार्टी थी और बीजेपी दूसरे नंबर पर थी। लेकिन तब बीजेपी ने जोर बहुत लगाया था। मोदी और दीदी की जंग यहां बड़ी है, लेकिन इस बार हालात उतने भी फेवरेबल नहीं है, तो गिनती यहां से भी बढ़ना मुश्किल ही है। 
  • अब चलते हैं नॉर्थ ईस्ट में। जहां हिमंता बिस्वा शर्मा जैसा लीडर बीजेपी के पास है, लेकिन इसके साथ ही जलते हुए मणिपुर की आग है। सीएए को लेकर नाराजगी है। नॉर्थ ईस्ट की 25 सीटों में से बीजेपी ने पिछली बार 19 सीटें जीती थीं। इस बार टारगेट रखा है 22 सीटों का, लेकिन जो नाराजगी है उसे देखकर लगता है कि आंकड़ा बढ़ने की जगह कम ही हो सकता है। 
  • अब सेंट्रल इंडिया का रुख करते हैं। यहां मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य हैं। जहां बीजेपी किसी खतरे में नजर नहीं आती। बल्कि, क्लीन स्वीप भी कर दे तो हैरानी नहीं होगी। फिर भी बीजेपी को खास फायदा नहीं है क्योंकि वो पहले से ही मेक्सिमम पॉसिबल नंबर अचीव कर चुकी है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी कमोबेश यही स्थिति। यहां हालात बहुत बदलने वाले नहीं है। यानी कि 400 के आंकड़े में कंट्रीब्यूशन होने वाला नहीं है।  
  • जम्मू कश्मीर की बात करें तो जम्मू की दो सीटें बीजेपी के खाते में ही दिख रही है, लेकिन लद्दाख में हालात बदल सकते हैं। चीन के बढ़ते कदम इस एक सीट का नुकसान दे सकते हैं।

अब करते हैं गुजरात, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान का रुख...

  • वैसे तो गुजरात पूरा का पूरा बीजेपी की मुट्ठी में नजर आता है, लेकिन इस बार यहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं फिर भी मोदी और शाह का होल्ड इतना तो है कि हालात बेकाबू नहीं होने देंगे। पंजाब और हरियाणा का क्या करेंगे। यहां मुश्किल भारी है। पंजाब में पहले बीजेपी शिरोमणि अकाली दल के साथ थी। किसान आंदोलन के बाद एसएडी ने बीजेपी से रिश्ता तोड़ना ही मुनासिब समझा। इसके अलावा यहां आप है कांग्रेस भी ठीकठाक ही है। 
  • हरियाणा का भी यही हाल है। लोगों को खुश करने के लिए यहां बीजेपी ने सीएम भी बदला है, लेकिन किसान आंदोलन और कुश्ती के खिलाड़ियों के मसले की आग यहां सुलग ही रही है। अग्निवीर योजना और जाट कम्यूनिटी की नाराजगी भी है। जो न सिर्फ हरियाणा बल्कि राजस्थान के सटे हुए इलाकों में भी दिखाई दे रही है। इसलिए बहुत मुमकिन है कि इन प्रदेशों में सीटें बढ़ें। बल्कि हो सकता है कि कुछ इक्का दुक्का सीटों का नुकसान ही बीजेपी को झेलना पड़ जाए। देखिए एक बार फिर समझा देता हूं। एक या दो सीट हारने से बीजेपी को बड़ा नुकसान है नहीं, लेकिन जब लक्ष्य चार सौ सीटें जीतने का है तो एक-एक सीट मायने रखती है। और हो ये रहा है कि नई सीटें हाथ में आने की बजाए एक-एक करके भी सीटें हाथ से निकलती दिख रही हैं। 
  • अब बात करते हैं दिल्ली और झारखंड की। दोनों स्टेट माना की बहुत दूर-दूर हैं, लेकिन हालात एक ही जैसे हैं। दोनों के सीएम पर ईडी का शिकंजा कसके सलाखों के पीछे डाल दिया गया है। अब दोनों ही जगह इंडी अलायंस लाख कोशिशों के बावजूद नहीं टूटा है। दोनों ही प्रदेशों में अपने-अपने सीएम के लिए सिंपेथी वेव भी है। वजह ये है कि अब तक उनके खिलाफ कोई सॉलिड प्रूफ नहीं दिया जा सका है। उससे भी बड़ी मुश्किल ये कि मुखिया के जेल जाने के बावजूद न आप बिखरी और न ही झारखंड मुक्ति मोर्चा। झारखंड में बीजेपी के पास 14 में से 12 सीटे हैं। अब जो हालात हैं तो हो सकता है कि एकाध सीट का नुकसान यहां भी झेलना पड़ जाए। 

    इन दो प्रदेशों के बाद बात करते हैं दो और प्रदेशों की। ये दो प्रदेश हैं बिहार और महाराष्ट्र। दोनों देश के अलग-अलग छोर पर हैं पर हालात यहां भी एक ही जैसे हैं। 
  • महाराष्ट्र की 48 में से 41 सीटों पर बीजेपी और शिवसेना का अलायंस जीता था। 5 पर कांग्रेस और एनसीपी का अलायंस था। अब शिवसेना दो भागों में बंट चुकी है और एनसीपी भी। कुछ सीटें ऐसी भी है जहां उद्धव ठाकरे और शरद पवार को लेकर सिंपेथी भी है। कृषि संकट भी कुछ सीटों पर असर डाल सकता है। बेवजह सरकार गिराना और सत्ता में लौटने की बीजेपी की टेक्टिस से महाराष्ट्र में कुछ अलग असर दिख सकता है। 
  • बिहार में मामला बहुत टफ है। यहां बार-बार दल बदलने वाले नीतीश कुमार से नाराजगी ज्यादा है। उनकी अपनी पार्टी ही असंतोष और बगावत से जूझ रही है। दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने जबरदस्त स्ट्रेटजी पर काम किया है। तेजस्वी यादव ने देश के मुद्दों को टच करने की जगह लोकल मुद्दों पर जनता को साधने की कोशिश की है। उनका फोकस अग्निवीर, रोजगार, बिहार को स्पेशल स्टेट्स और पलायन जैसे मुद्दों पर रहा। 2019 में बीजेपी या उसके गठबंधन को यहां तेजस्वी यादव जैसे किसी नेता से चुनौती नहीं मिली सकी थी। अब हालात बदल चुके हैं।
  • यूपी का मामला अलग है। यूपी एक बार फिर बीजेपी के लिए लाड़ला लला साबित हो सकता है। यहां कि 80 सीटों में से बीजेपी के पास 62 सीटें हैं। हो सकता है कि राम लला के आशीर्वाद से इस नंबर में इजाफा हो ही जाए। वैसे भी मोदी योगी यहां की हिट जोड़ी है। मोदी की गारंटी भी जादू की तरह काम कर सकती है। फिर भी क्या इतना नंबर मिल जाएगा कि 370 या चार सौ का सपना पूरा हो सके। 



यही बदले हुए हालात ये सोचने पर मजबूर करते हैं कि बीजेपी 370 और उसका अलायंस 400 सीटें जीतेगा तो जीतेगा कैसे। क्योंकि जिन राज्यों में बीजेपी नंबर बढ़ाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है, जमीन आसमान एक कर रही है वहां हालात ज्यादा बदलते नजर नहीं आ रहे हैं। 

बस कुछ ही दिन का इंतजार और है...

हां इसके अलावा बहुत कुछ बदल चुका है। 2019 में कांग्रेस पूरी तरह बिखरी हुई थी। इस बार कांग्रेस पहले से ज्यादा सिस्टमेटिक है और इंडिया के साथ एक ठीकठाक अलांयस के साथ बेहतर स्थिति में है। पहले की तुलना में ज्यादा एग्रेसिव भी दिख रही है। दूसरी बात कि मोदी सरकार को दस साल हो चुके हैं। नहीं नहीं करते हुए भी कहीं न कहीं कोई फैक्टर ऐसा होगा ही जो एंटीइंकंबेंसी का कारण बन सकता है। वो भी कुछ न कुछ असर दिखा सकता है। फिर मैं कहता हूं नामुमकिन कुछ भी नहीं है। 1984 में कांग्रेस ने चार सौ सीटें जीत कर दिखाईं थीं, लेकिन उस वक्त इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में जबरदस्त लहर उठ गई थी। अब ये इतिहास कैसे दोहराया जा सकता है दोहराया जा सकेगा भी या नहीं। ये जानने के लिए बस कुछ ही दिन का इंतजार और है।

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