अगले हफ्ते 2 मई है और दो मई का संबंध दो लोगों से है। इसी दिन 1519 में ग्रेटेस्ट ऐवर लियोनार्दो द विंची का निधन हुआ था। इसके 400 साल बाद 1921 में महान फिल्मकार सत्यजीत रे पैदा हुए थे। दोनों अपने आप में कमाल थे। दोनों का संबंध कला जगत से था, लेकिन दोनों कई विधाओं में पारंगत थे। पहले आपको विंची के बारे में बताऊंगा।
लिओनार्दो का जन्म 15 अप्रैल 1452 में इटली के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। Leonardo da Vinci का पूरा नाम Leonardo di ser Piero da Vinci था। विंची एक वकील सेर पीयरो के नाजायज बेटे थे। लिओनार्दो की मां कैटरीना डी मेओ लिपि एक किसान की बेटी थीं। लिओनार्दो को सेर पीयरो के जायज बेटे के रूप में देखा जाता था, क्योंकि वह बचपन से ही अपने पिता के साथ रहते थे। उनके पिता से लिओनार्दो को 12 भाई बहन मिले, जिनमें 9 भाई और 3 बहने थीं। लिओनार्दो सभी भाई बहनों से बड़े थे। लिओनार्दो बचपन से ही अकेले रहना पसंद करते थे। Leonardo da Vinci ने अपना बचपन का थोड़ा समय ही अपनी मां के साथ बिताया है। वे करीब 5 साल की उम्र में अपने पिता के साथ रहने चले गए थे। लिओनार्दो दोनों हाथों से लिख सकते थे। वे उल्टा भी लिख सकते थे।
एक पशु प्रेमी होने की वजह से लियोनार्दो शाकाहारी थे। लिओनार्दो ने बुनियादी पढ़ाई, लिखाई और गणित पिता के घर में ही सीखी। लियोनार्दो के पिता उनकी कलात्मक प्रतिभा की बहुत तारीफ करते थे। उनके आर्ट को देखते हुए पिता ने लियोनार्दो को 15 साल की उम्र में फ्लोरेंस के मशहूर पेंटर और मूर्तिकार Andrea Del Verrocchio के पास भेज दिया। करीब 10 साल तक लिओनार्दो पेंटिंग, मूर्तिकला तकनीकों और यांत्रिक कला में निपुण हो गए।
लिओनार्दो द विंची को ‘पुनर्जागरण पुरुष’ (रेनेसां दौर के सबसे महान व्यक्ति) के रूप में जाना जाता था, क्योंकि उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की और वह उस दौर के सबसे महान और प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक थे। लियोनार्दो एक हाथ से लिखाई और दूसरे हाथ से ड्रॉइंग बना सकते थे। लियोनार्दो की दो मशहूर पेंटिंग मोनालिसा और द लास्ट सपर हैं। पहला प्लेन 1903 में उड़ा, जबकि इसकी पेंटिंग लियानार्दो काफी पहले ही बना चुके थे। 1480 के दशक में पहली बार लियोनार्दो ने अपनी किताब में बख्तरबंद कार का वर्णन किया था।
“बिल गेट्स” ने Leonardo da Vinci की 72 पेज की सचित्र पांडुलिपि पुस्तक कोडेक्स सिलेस्टर को 40 मिलियन डॉलर में खरीदा था। गेट्स ने इस पुस्तक को 1990 में खरीदा था। अनुमान है कि यह पुस्तक 1506 से 1510 के बीच लिखी गई थी। 21 अगस्त 1911 को मोनालिसा पेंटिंग को फ्रांस के संग्रहालय से चुरा लिया गया था। जिस व्यक्ति ने उस पेंटिंग को चुराया था वह उसे लियोनार्दो की जन्मभूमि इटली वापस ले जाना चाहता था, लेकिन उसे पकड़ लिया गया
कई रिसर्चर्स अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि मोनालिसा कौन थी? कई लोगों का मानना है कि मोनालिसा एक व्यापारी की पत्नी थी। कुछ लोग कहते हैं कि वह पेंटिंग महिला रूप में खुद का आत्म चित्र थी। मोनालिसा आज भी रहस्य है। एक शोध के अनुसार, मोनालिसा के होठों को रंगने के लिए लियोनार्दो को करीब 10 साल लगे थे। लियोनार्दो ने शादी नहीं की थी। कई इतिहासकारों का मानना है कि लियोनार्दो होमोसेक्सुअल थे।
लियोनार्दो के अपने कामों को पूरा होने में बहुत समय लगता था। लियोनार्दो की कई पेंटिग्स, लेख और आविष्कार अधूरे छूट गए, जिन्हें वह पूरा नहीं कर सके। विंची की 67 वर्ष की आयु में 2 मई 1519 को फ्रांस के फ्रांस के शैटो डु क्लोस-ल्यूस’ में निधन हो गया। लियोनार्दो पेंटर, मूर्तिकार, इंजीनियर, वैज्ञानिक, राइटर बहुत कुछ थे। उनकी ग्रेटनेस को तो हम डिफाइन ही नहीं कर सकते। अब बात सत्यजीत रे की...
2 मई 1921 को कोलकाता में सत्यजीत रे का जन्म हुआ। सत्यजीत रे महज तीन साल के थे, जब उनके पिता का निधन हो गया। उनकी मां सुप्रभा ने तमाम दिक्कतों का सामना करते हुए उन्हें पाला। बतौर ग्राफिक डिजाइनर करियर की शुरुआत करने वाले सत्यजीत ने कई किताबों के कवर पेज डिजाइन किए थे। इन किताबों में जवाहर लाल नेहरु की डिस्कवरी ऑफ इंडिया और जिम कार्बेट की मैन इट्स ऑफ कुमाऊं भी शामिल है।
विभूतिभूषण बंधोपाध्याय के उपन्यास 'पाथेर पांचाली' के बाल संस्करण को तैयार करने में सत्यजीत रे की अहम भूमिका थी। अम अंतिर भेपू (आम के बीज की सीटी) किताब से सत्यजीत रे इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने इस किताब के कवर के साथ इसके कई स्कैचेज भी तैयार किए। यही आगे चलकर उनकी पहली फिल्म 'पाथेर पांचाली' के मशहूर शॉट्स साबित हुए।
सत्यजीत रे को काम के सिलसिले में 1950 में लंदन जाने का मौका मिला। लंदन में सत्यजीत ने कई फिल्में देखी और उन फिल्मों से वह इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने ठान लिया कि वे भारत आकर 'पाथेर पांचाली' पर फिल्म बनाएंगे। 1952 में सत्यजीत ने बिल्कुल नई टीम के साथ फिल्म की शूटिंग शुरू की। नया फिल्ममेकर होने की वजह से कोई भी उन पर पैसा लगाना नहीं चाहता था। इसे बनाने के लिए सत्यजीत ने अपने सभी पैसे लगा दिए। यहां तक की पत्नी के गहने तक बेचने पड़ गए। आखिर में पश्चिम बंगाल सरकार ने उनकी मदद की और 1955 में 'पाथेर पांचाली' रिलीज हो पाई। सत्यजीत रे ने कई क्लासिक्स बनाईं और लोगों का सोचने का नजरिया बदल दिया।
'पाथेर पांचाली' ने कई नेशनल और इंटरनेशनल पुरस्कार जीते, जिनमें कान फिल्म फेस्टिवल में मिला विशेष पुरस्कार बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट भी शामिल है। 1992 में सत्यजीत रे को स्पेशल ऑस्कर देने की घोषणा की गई थी, लेकिन उस वक्त वह बीमार चल रहे थे और सम्मान लेने नहीं जा सके। ऐसे में ऑस्कर के पदाधिकारियों ने फैसला लिया कि यह अवॉर्ड उनके पास पहुंचाया जाएगा। ऑफिशियल्स की टीम कोलकाता में सत्यजीत रे के घर पहुंची और उन्हें अवॉर्ड से नवाजा। अवॉर्ड मिलने के एक महीने के अंदर ही सत्यजीत रे को दिल का दौरा पड़ा और 23 अप्रैल 1992 उनका निधन हो गया। बस यही थी आज की कहानी...
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