News Strike: संघ की रिपोर्ट से दहली बीजेपी, BJP में अब Congress विधायकों के लिए जगह नहीं!

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हरीश दिवेकर, BHOPAL. बीजेपी में शामिल होने की उम्मीद में अपनी मूल पार्टी कांग्रेस से असंतोष जता रहे विधायकों बड़ा झटका लगेगा। उनके लिए बीजेपी की तरफ से कोई अच्छा पैगाम नहीं आ रहा है। भारत जोड़ो और पार्टी तोड़ो के बीच उलझी कांग्रेस के विधायकों को फिलहाल अंसतोष जाहिर करना खासा भारी पड़ सकता है। ऐसे नेताओं को पार्टी में शामिल करके खुद बीजेपी भी कई अलग-अलग स्तरों पर नुकसान भुगत रही है।

बीजेपी ने लिया बड़ा फैसला

देश के किसी भी राज्य में कांग्रेस के नेता बीजेपी में शामिल होते हैं तो एमपी के कांग्रेस नेता भी इसे बीजेपी का खुला ऑफर मान लेते हैं। ये समझ लिया जाता है कि बस अब कोई भी कांग्रेसी कभी भी भाजपाई बन सकता है। इसके बाद होने वाली कुछ बयानबाजियां भी इस मानसिकता को थोड़ा ज्यादा स्ट्रॉन्ग बना देती हैं। लेकिन अब खुद बीजेपी ऐसे असंतोषी विधायकों या नेताओं को शामिल करने मूड में नहीं है। जो कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आना चाहते हैं। पिछली कुछ घटनाओं से तजुर्बा हासिल कर अब बीजेपी ने तय कर लिया है कि कोई भी नेता उठ कर बीजेपी में शामिल नहीं हो सकेगा। ये सुविधा सिर्फ उन कांग्रेस नेताओं को मिलेगी जिनके पीछे बड़ा जनाधार हो।

पाला बदलने के लिए तैयार बैठे कुछ कांग्रेस नेता

राहुल गांधी अपने आलीशान बंगले को छोड़कर जब से सड़क पर उतरे हैं तब से एक तरफ सुर्खियों में वो होते हैं और दूसरी तरफ ये खबर होती है कि किसी राज्य में कांग्रेस के नेता बीजेपी के हो गए। यही हाल मध्यप्रदेश में भी हैं। जहां कुछ कांग्रेस नेता घात लगाए बैठे हैं। बस इशारा मिलेगा, हल्ला बोलेंगे और फिर पाला बदल लेंगे। ऐसे नेताओं को खुद पार्टी अध्यक्ष कमलनाथ कह चुके हैं कि जो जाना चाहे जाएं। वो खुद अपनी कार से उन्हें बीजेपी तक छोड़कर आएंगे। इशारा साफ है पार्टी ऐसे नेताओं को कोई घास नहीं डालेगी जो बेसबब पार्टी बदलने के लिए तैयार हैं।

कमलनाथ की चेतावनी के बाद भी नेताओं के इशारे

कमलनाथ की चेतावनी के बावजूद पार्टी के कई नेता बार-बार ये इशारा कर रहे हैं कि वो कभी भी कांग्रेस छोड़ सकते हैं। अटेर से पूर्व विधायक हेमंत कटारे का असंतोष सोशल मीडिया पर छाया हुआ है। उनके अलावा भी कुछ नेता गाहे बगाहे बगावत की झलक दिखलाते रहते हैं। इस फेहरिस्त में हाल ही में महापौर का चुनाव हारे संजय शुक्ला का नाम भी जोड़ दिया जाता है। ये सब नेता भले ही बीजेपी से आस लगाए बैठे हों लेकिन बीजेपी अब इनका मन रखने के मूड में बिल्कुल नहीं है। उसकी वजह है पार्टी नेताओं में पसरा असंतोष तो कई मौकों पर बीजेपी के लिए नुकसान का कारण बन चुका है।

बीजेपी के लिए दलबदल के पोस्टर बॉय सिंधिया

जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस की जीत का पोस्टर बॉय बने थे। उसी तरह बीजेपी के लिए भी वो दलबदल का पोस्टर बॉय बने हैं जिन्हें पार्टी ने सिर आंखों पर बैठाया। इसके बाद से हर दलबदल के ख्वाहिशमंद नेता को लगता है कि वो भी सिंधिया जैसा मुकाम हासिल कर सकेंगे। इसके बाद खासतौर से चंबल के कांग्रेस नेता अक्सर बीजेपी में अपना मुस्तकबिल तलाश करते रहते हैं।

उपेक्षित महसूस कर रहा बीजेपी का जमीनी कार्यकर्ता

सिंधिया के दलबदल के बाद से लगभग हर जिले में कांग्रेस के कई स्थानीय बड़े नेताओं से लेकर कार्यकर्ता तक बीजेपी में शामिल होकर केसरिया साफा पहन चुके हैं। इनमें से कई कांग्रेसी तो अहम पदों पर भी पहुंच गए हैं जबकि पार्टी के मूल कार्यकर्ता का हाल पहले जैसा ही है। हाल ये है कि जमीनी कार्यकर्ता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का ये दावा भी है कि संघ की ही रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है कि भाजपाई में बदले कांग्रेसियों की वजह से बीजेपी को नुकसान हो रहा है। जिन कार्यकर्ताओं की मेहनत से संगठन मजबूत हुआ, वही कार्यकर्ता पार्टी से नाराज हो रहे हैं। हाल ही में हुए नगरीय निकाय चुनाव के चौंकाने वाले नतीजों के बाद भी पार्टी के थिंक टैंक इसी नतीजे पर पहुंचे कि इस असल नुकसान और असंतोष की वजह कांग्रेसियों का पार्टी में शामिल होना है। दलबदल कर आने वाले नेताओं पर पार्टी की विचारधारा को प्रभावित करने का भी आरोप है।

बीजेपी का कांग्रेसीकरण

सबसे चौंकाने वाली बात तो ये है कि कई क्षेत्रों में अब भाजपाई की पहचान उन्हीं नेताओं के पास है जो पहले कांग्रेस में रहे हैं। पार्टी बद कर आने वाले ये नेता खुद को बीजेपी के चाल, चरित्र और चेहरे में ढालने की कोशिश करते नजर नहीं आते। यही वजह है कि बूथ लेवल, जिला या ब्लॉक लेवल पर बीजेपी का कांग्रेसीकरण होता दिखाई दे रहा है। बीजेपी ये समझ चुकी है कि हालात यही रहे तो जीत के जादुई आंकड़ें को पार कर पाना बहुत मुश्किल होगा। माना जा रहा है कि संघ की इस रिपोर्ट के बाद प्रदेश बीजेपी नेतृत्व ने अब तय किया है कि भविष्य में कांग्रेस या दूसरे दलों के नेताओं या कार्यकर्ताओं को बीजेपी की सदस्यता दिलाने में जल्दबाजी न की जाए। अगर कोई बड़ा नेता शामिल होना चाहता है, तो पहले आंकलन किया जाए कि उसके दल में आने पर पार्टी को कितना फायदा हो सकता है। बीजेपी के परेशानी के सबब कुछ और भी हैं।

पार्टी लाइन से अनजान

पिछले दिनों कांग्रेस से बीजेपी में आए कुछ नेताओं के बयान या काम करने के तरीके से पार्टी की जमकर फजीहत हुई है। ऐसे नेता मैदानी स्तर पर भी भाजपा की रीति और नीति पर भी नहीं चल पा रहे हैं। अब पार्टी ने तय किया है कि ऐसे नेताओं को पहले बीजेपी की विचारधारा से जुड़ा प्रशिक्षण दिया जाएगा। कोशिश ये है कि दल बदल करने वाले नेता बीजेपी की विचारधारा और राजनीति को समझ सकें। बीजेपी को उम्मीद है कि इससे पार्टी पर लगने वाले कांग्रेसीकरण के आरोप धुल सकेंगे।

दिग्गज नेताओं की नाराजगी

कांग्रेस से आने वाले नेताओं की वजह से पार्टी के पुराने और क्षेत्र विशेष के दिग्गज नेता भी उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। इसका असर शिवराज कैबिनेट पर भी पड़ा। जिसमें पूरा क्षेत्रीय संतुलन गड़बड़ाया हुआ है। कई वरिष्ठ और डिजर्विंग नेता कैबिनेट से बाहर हैं।

सिंधिया का भी असर

पार्टी का एक धड़ा ये भी मानता है सिंधिया की शह पर उनके समर्थक राजनीति में अपना दबदबा जता रहे हैं। उनके साथ पार्टी बदले वाले नेताओं की निष्ठा भी सिर्फ सिंधिया की तरफ है, पार्टी की तरफ नहीं। सिंधिया समर्थकों पर बीजेपी में रहकर इनसिक्योर होने के आरोप भी लगते रहे हैं। सिंधिया समर्थक मंत्री और नेता कई मौकों पर ऐसे बयान या प्रतिक्रिया दे चुके हैं, जो बीजेपी की लाइन से बिलकुल अलग रही है।

सिंधिया समर्थकों के क्षेत्र में पुराने भाजपाई तकरीबन उदासीन या नाराज हैं। जबकि उनके साथ दलबदल करने वाले कार्यकर्ता खुद भाजपाई हो कर रौब जमा रहे हैं।

ये हालात देखते हुए अब बीजेपी सतर्क हो चुकी है और ये तय माना जा रहा है कि भले ही कमलनाथ कार लेकर छोड़ने आ जाएं। फिर भी हर नेता के लिए बीजेपी के गेट आसानी से खुलने वाले नहीं हैं।

बीजेपी भले ही कांग्रेस पर ये चुटकी लेते रहे कि वहां पार्टी तोड़ो यात्रा जारी है लेकिन हकीकत ये है कि खुद बीजेपी उन नेताओं से खार खा रही है जो कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने के लिए बेताब हैं। क्योंकि अब पार्टी खुद ही ये नहीं समझ रही कि दल बदलकर आने वाले नेताओं को एडजस्ट कहां किया जाएगा। क्योंकि उनका आना यानी उनके कार्यकर्ताओं का भी पार्टी में शामिल होना होगा जिसका असर संगठन के पुराने कार्यकर्ताओं पर पड़ेगा। जिन्हें डिस्टर्ब कर अब चुनावी नतीजे बिगाड़ने के मूड में संघ खुद नहीं है। यानी ये उन नेताओं के लिए खतरे की घंटी है जो लगातार कांग्रेस में बागी तेवर दिखा रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि उन्हें न घर मिले और न ही घाट।