ओशो की 32वीं बरसी: जन्मस्थली रायसेन में ताला, विवाद के चलते नहीं आते अनुयायी

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ओशो की 32वीं बरसी: जन्मस्थली रायसेन में ताला, विवाद के चलते नहीं आते अनुयायी

भोपाल/रायसेन. ओशो रजनीश किसी परिचय के मोहताज नहीं। 11 दिसंबर 1931 को रजनीश का रायसेन के कुचवाड़ा में जन्म हुआ। बचपन, युवावस्था, कॉलेज, प्रोफेसरी से गुरु बनने तक वे विवादित रहे और विवादों के साथ ही महान बने। उन्होंने कई मुद्दों पर अपने तर्क रखे, हालांकि उनका संभोग से लेकर समाधि तक वाला सिद्धांत काफी लोकप्रिय हुआ। आज ही के दिन यानी 19 जनवरी को 32 साल पहले 1990 में ओशो की मृत्यु हुई थी। 





पिछले साल सामने आया था प्रॉपर्टी विवाद: दरअसल, फरवरी 2020 में आश्रम को लेकर प्रॉपर्टी विवाद सामने आने और फिर कोरोना के चलते यहां अनुयायियों की आवाजाही पर ब्रेक लग गया। कोरोना अनलॉक के बाद भी यहां का लॉक नहीं खुल पाया। आचार्य रजनीश अनुयायी कुचवाड़ा को तीर्थ की तरह मानते हैं। फिलहाल आश्रम में केवल जापान की एक सन्यासिन हैं, जो मौन धारण किए हुए हैं। फरवरी 2020 में ओशो के शिष्य सत्यतीर्थ के निधन के बाद समाधि निर्माण पर संकट आया और फिर देखते ही देखते विवाद बढ़ने लगे। रायसेन जिले की बरेली, सिलवानी और उदयपुरा तहसीलों को जोड़ने वाला कुचवाड़ा खरगोन गांव से करीब 8 किलोमीटर दूर है। ओशो का जन्म स्थल होने के कारण कुचवाड़ा गांव अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। हालांकि गांव में सड़कें नहीं हैं और हमारी टीम गंदगी भरे रास्ते से बड़ी मुश्किल से यहां पहुंची।





इस विवाद के बाद पड़ गए ताले: कुचवाड़ा में आश्रम स्थापित करवाने वाले स्वामी सत्यतीर्थ भारती का फरवरी 2020 में 54 साल की उम्र में बीमारी के चलते हुई निधन हो गया। इसके बाद उनकी समाधि बनाने को लेकर विवाद सामने आया था। ओशो के जन्मस्थान की प्रॉपर्टी से जुड़ा एक विवाद पहले से ही हाईकोर्ट में चल रहा था। ओशो विजन लिमिटेड और स्वामी सत्या स्वभाव ने 2015 में हाईकोर्ट में स्वामी सत्यतीर्थ भारती और मप्र शासन के खिलाफ एक याचिका दायर की थी। इसी के आधार पर समाधि निर्माण पर रोक लगाने का स्टे दिया गया। 





69 में ओशो से मिले नेबुलाल बन गए सत्यतीर्थ: स्वामी सत्यतीर्थ भारती का असली नाम नेबुलाल था। उनका जन्म 1950 में कोलकत्ता में हुआ और बचपन अहमदाबाद में बीता। ओशो से उनकी पहली मुलाकात 1969 में अहमदाबाद में हुई। नेबुलाल ने ओशो की उपस्थिति में खुद को बहुत अभिभूत महसूस किया और करीब सभी साधना शिविरों में मौजूद रहे। इसके बाद वे हमेशा के लिए ओशो के सानिध्य में आ गए। 1978 में उन्हें ओशो ने संन्यास दिलाया। वे जब नेबुलाल से स्वामी भारती बने तो उन्हें इंग्लिश के सिर्फ दो शब्द यस और नो आते थे। इसके बावजूद ओशो ने उन्हें अपने मिशन के लिए जापान भेजा। स्वामी सत्यतीर्थ ने भी इस मौके को एक चैलेंज के रूप में लिया और खुद को एक आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में ढाल लिया। 





सत्यतीर्थ ने जापान की राजधानी टोक्यो और टोक्यो बॉर्डर पर एक आश्रम बनाया। सत्यतीर्थ ने खुद को ओशो के काम में समर्पित करने के बाद अपने गुरु के जन्मस्थान को संरक्षित किया और वहां एक बड़े पिरामिड बुद्ध हॉल के साथ आश्रम बनाया।  





चंद्रमोहन बन गया ओशो: जन्म के समय ओशो का नाम चंद्रमोहन जैन था। बचपन से ही उन्हें दर्शन में रुचि हो गई थी, ऐसा उन्होंने अपनी किताब 'ग्लिंप्सेस ऑफ माई गोल्डन चाइल्डहुड' में भी लिखा है। कुचवाड़ा में अपने परिवार के साथ उन्होंने ना सिर्फ काफी वक्त बिताया, बल्कि शिक्षा प्राप्त कर अध्यापन कार्य भी किया। आज भी कुचवाड़ा में ओशो की स्मृतियां मौजूद हैं। कुचवाड़ा में उनकी ननिहाल थी। 1939 में वे अपने माता-पिता के पास गाडरवारा (जिला नरसिंहपुर) में आकर रहने लगे। 1951 में उन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी की और दर्शनशास्त्र (फिलॉसफी) पढ़ने का फैसला किया। वे जबलपुर के हितकारिणी कॉलेज में पढ़े। इस सिलसिले में 1957 तक जबलपुर में रहे। बाद में वे जबलपुर के महाकौशल आर्ट्स कॉलेज में फिलॉसफी के प्रोफेसर भी रहे। 





विनोद खन्ना भी शिष्य बन गए थे: विनोद खन्ना फिल्मों में अपनी अच्छी पहचान बना चुके थे, तभी वे अचानक ओशो के अनुयायी बनकर संन्यासी के रूप में रहने लगे थे। यहीं से उनका कुचवाड़ा से नाता जुड़ा। विनोद का सपना था कि वे ओशो के लेखों पर कुचवाड़ा में एक लाइब्रेरी बनवाएं।





ओशो के विचार: 





1. हमें अपने आप से प्यार करना चाहिए। जब तक हम अपने आप को प्यार करना नहीं सीखेंगे, तब तक कोई दूसरा हमें पसंद नहीं करेंगा। जिस पल हम अपने आप को स्वीकार करना सीख लेंगे, उस पल आप देखेंगे कि दुनिया आपको पसंद करने लगी है। 





2. हमें डर से ऊपर उठना चाहिए। डर एक बंदिश है, जिसके आधार पर व्यक्ति का शोषण किया जाता है। डर में जी रहा व्यक्ति कभी अध्यात्म की तरफ गति नहीं कर पाता है।





3. अगर जीवन में अंधकार है, तो हमें घबराना नहीं चाहिए। क्योंकि सितारों को देखने के लिए एक निश्चित अंधेरे की जरूरत होती है। अर्थात मुश्किल वक्तों में हमें धैर्य से काम लेना चाहिए क्योंकि इन्हीं परिस्थितियों में हमें सफलता के विकल्पों की पहचान होती है।





4. यदि आप पूर्ण हैं तो कभी भी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। आगे बढ़ने के लिए सबसे जरूरी है हमारा अपूर्ण होना। अपूर्ण लोग ही नई चीजों को सीखकर आगे बढ़ पाते हैं।





5. बाहर से हम भले ही अपने आप में कितने भी बदलाव ले आएं, पर हम कभी खुश नहीं होंगे जब तक हम अपने भीतर कोई बदलाव लेकर नहीं आते। उनका कहना था कि सत्य हमारे भीतर ही छुपा है। उसकी तलाश हमें अपने अंदर करनी चाहिए।  





6. जो कुछ भी महान है, उस पर किसी का अधिकार नहीं हो सकता और यह सबसे मूर्ख बातों में से एक है जो मनुष्य करता है- मनुष्य अधिकार चाहता है।





7. अनुशासन क्या है? अनुशासन का मतलब आपके भीतर एक व्यवस्था निर्मित करना है. तुम तो एक अव्यवस्था, एक केऑस हो।





8. तुम जीवन में तभी अर्थ पा सकते हो जब तुम इसे निर्मित करते हो. जीवन एक कविता है जिसे लिखा जाना चाहिए. यह गाया जाने वाला गीत, किया जाने वाला नृत्य है।





9. कोई विचार नहीं, कोई बात नहीं, कोई विकल्प नहीं शांत रहो, अपने आप से जुड़ो।





10. तुम्हें अगर कुछ हानिकारक करना हो तभी ताकत की जरूरत पड़ेगी वरना तो प्रेम पर्याप्त है, करुणा पर्याप्त है.



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