PM आवास आंदोलन से ग्रामीण क्षेत्रों में चार्ज हुई बीजेपी, कार्यकर्ताओं के साथ पीड़ित हितग्राहियों को आंदोलनकारी बनाने में रही सफल

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The Sootr
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PM आवास आंदोलन से ग्रामीण क्षेत्रों में चार्ज हुई बीजेपी, कार्यकर्ताओं के साथ पीड़ित हितग्राहियों को आंदोलनकारी बनाने में रही सफल

याज्ञवल्क्य मिश्रा, Raipur. बीते साल भर में बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में चार बड़े आयोजन किए, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा प्रधानमंत्री आवास मसले पर विधानसभा घेराव कार्यक्रम की है। इस चर्चा की वाजिब वजह नहीं बल्कि वजहें हैं। यह बीते साल भर में पहला ऐसा आंदोलन था, जिसमें किसी आयातित चेहरे पर केंद्रित आंदोलन नहीं था। यह पहला ऐसा आंदोलन था, जहां बीजेपी की ताकत फ्लैक्स बैनर प्रचार पर नहीं थी, बल्कि कार्यकर्ता और पीएम आवास से वंचित हितग्राहियों को लाने पर लगी थी। 





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बीजेपी का यह आयोजन तामझाम से दूर था...





मंच पर प्रदेश बीजेपी के कई मठाधीश नुमाया थे, लेकिन उनके हिस्से मंच की शोभा के अलावा कुछ विशेष हासिल नहीं था। यह पहला मौका था, जब BJP के रणनीतिकारों ने इस बात की कई चरणों से पुष्टि कराई कि किस जिला/मंडल से कितने कार्यकर्ता किस साधन से आ रहे हैं। यह पहला ऐसा आंदोलन बन गया जिसके जरिए बीजेपी उन गांव खेड़ों में फिर से चार्ज हुई, जहां किसान धान जैसे मसले को लेकर बीजेपी को कुछ सूझ नहीं रहा था। यह भी केवल किस्मत की बात थी कि किसी सूरत ‘बल प्रयोग’ नहीं के स्थाई से निर्देश की अवहेलना हो गई। बीजेपी बहुत सधे तरीके से पीड़ित हितग्राहियों, जिन्हें कि आंदोलन का हिस्सा बनाकर लाया गया था उन्हें यह भी समझा गई कि ‘घर मांगने पर बम मिलता है’ बीजेपी का यह आयोजन उस तामझाम से दूर था, जिसके नजारे बीते आंदोलनों में दिखते रहे। यह भी इस आंदोलन के जरिए सुनिश्चित हुआ कि लक्ष्य तक हर हाल में पहुंचा जा सके, ना भी पहुंच पाए तो यह सीधे-सीधे प्रमाणित होना चाहिए कि कोशिश पुरजोर हुई। 





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आंदोलन के जरिए संगठन रिचार्ज करने की कवायद





प्रधानमंत्री आवास योजना में हितग्राहियों को राज्यांश ना मिल पाने की वजह से आवास नहीं मिला, और इस विषय को बीजेपी लंबे अरसे से आरोप की तरह कहती रही थी, लेकिन इसे ही संगठन को रिचार्ज करने का “टूल-किट” बना लिया जाएगा यह शायद ही किसी को समझ आया हो। बीजेपी को ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्दा चाहिए था, प्रधानमंत्री आवास उसके लिए मुद्दा बना। अब यह जरूरी था कि इसे इस तरह उठाया जाए कि यह मसला बन जाए। इसके लिए प्रदेश से लेकर मंडल तक नई पीढ़ी तलाश रहे बीजेपी के रणनीतिकारों ने उसी नई पीढ़ी को ही जिम्मा दे दिया। इस आंदोलन में यह बहुत गौर से देखने पर दिखने का मसला नहीं था कि मंच पर वक्ताओं की वरीयता और आंदोलन में अगुवाई की जवाबदेही किनके पास थी। 





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दूसरी तीसरी पंक्ति को मिली आंदोलन की कमान 





इस प्रदर्शन ने दूसरी बल्कि कहें तो तीसरी पंक्ति को साफ-साफ कमान दी है। मठ के मठाधीश या कि पंद्रह बरसों तक सत्ता के पर्याय रहे चेहरे बिलाशक थे, लेकिन पीछे बहुत पीछे। कमान सीधे उन्हें मिली जिन्हें संगठन भविष्य सौंपने के लिए तलाश रहा या कि तराश रहा है। ओपी चौधरी, विजय शर्मा, सौरभ सिंह गौरीशंकर श्रीवास, सुशांत शुक्ला, अनिल अग्रवाल जैसे चेहरे बिलकुल आगे थे। 





मंच पर सभी पर वक्ता चुनिंदा थे





विधानसभा घेराव के ठीक पहले बीजेपी ने एक सभा का आयोजन किया था। इस के मंच पर सभी दिग्गज मौजूद थे। लेकिन अगर उन नाम को तलाशें जिन्होंने संबोधन दिया तो उनमें भी संकेत समझ आते हैं। इनमें प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, आदिवासी नेत्री पूर्व मंत्री लता उसेंडी,पूर्व मंत्री रामविचार नेताम, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल और पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक।





सभा स्थल का चयन और वेरिफिकेशन का कड़ा चरण





बीजेपी के इस सभा स्थल के चयन को लेकर रणनीतिकारों ने किसी दिग्गज की नहीं सुनी। प्रस्ताव पुरजोर आया कि सभा स्थल शहर के भीतर हो, जिससे भीड़ शहर में नजर आए। पंडरी समेत कई इलाकों का प्रस्ताव आया, लेकिन सब खारिज किया गया। आंदोलन के जरिए संगठन की कसौटी को परख रहे बीजेपी के थिंक टैंकर्स जिनमें ओम माथुर और नितिन नबीन शामिल थे। उन्होंने यह सुनिश्चित कराने का लक्ष्य दिया कि कार्यक्रम विधानसभा घेराव है और यह हर हाल हर सूरत होना चाहिए। नतीजतन सभा स्थल या कि आंदोलनकारियों के जमावड़ा की जगह विधानसभा से करीब दो किलोमीटर दूर रखी गई।





क्रॉस चेक की प्रक्रिया बेहद कड़ी रखी





आंदोलन में संख्या को लेकर क्रॉस चेक की प्रक्रिया बेहद कड़ी रखी गई। खबरें हैं कि आंदोलन के दिन के ठीक पहले रात को ओम माथुर, नितिन नबीन और अरुण साव की बैठक हुई और जिलाध्यक्षों से वन टू वन बात कर संख्या की जानकारी फिर से ली गई। इस जानकारी में यह सुनिश्चित किया गया कि सभी ने ना केवल संख्या बल्कि नाम और वाहन का ब्यौरा भी भेज दिया है। यह संख्या वास्तविक थी या नहीं इसका चरणबद्ध तरीके से क्रॉस चेक भी किया गया।





पूरा फोकस कार्यकर्ता और हितग्राहियों पर रहा





बीजेपी के इस आंदोलन में एक और अहम परिवर्तन दिखा। वह परिवर्तन था तामझाम से दूरी। बीजेपी का मंच हो या सभा स्थल वहां बीजेपी के झंडे थे पर चिर परिचित झंकामंका नदारद था। बताते हैं सीधे निर्देश थे लक्ष्य तामझाम नहीं बल्कि कार्यकर्ता और हितग्राहियों का आंदोलन में शामिल होना था। 





बीजेपी को और क्या हासिल 





बीजेपी को इस आंदोलन के जरिए गांव के भीतर चार्ज होने का सटीक मौका हाथ लगा। बेहद चतुर चपल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गांव किसान धान पर जिस तरह से जादू कर रखा है, उसमें सेंध लगाने का मौका बीजेपी को मिला और बीजेपी गांव में ना सही पूरी तरह से लेकिन पैंतीस फीसदी तो चार्ज हो गई है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने लोगों के पांव पखारे, इनमें कार्यकर्ता भी थे। प्रधानमंत्री आवास से वंचित हितग्राही भी। संख्या को लेकर दावा था कि एक लाख लोग पहुंचेंगे पर यह दावा सियासती था। अनुमान है कि करीब चालीस हजार लोग आए और बीजेपी के भीतरखाने इस संख्या ने वह खुशी दी है मानो भीड़ की संख्या का वास्तविक लक्ष्य पूरा हुआ।



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