RAIPUR: BJP में प्रदेश अध्यक्ष के बाद अब क्या नेता प्रतिपक्ष की बारी ? पिछड़ा वर्ग सधा लेकिनआदिवासी नाराज हुए तो क्या होगा

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Yagyawalkya Mishra
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RAIPUR: BJP में प्रदेश अध्यक्ष के बाद अब क्या नेता प्रतिपक्ष की बारी ? पिछड़ा वर्ग सधा लेकिनआदिवासी नाराज हुए तो क्या होगा

Raipur।बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष पद की जवाबदेही अब बिलासपुर सांसद अरुण साव को दी है।अब तक प्रदेश अध्यक्ष पद विष्णु देव साय के पास था। इस फ़ैसले को लेकर सुगबुगाहट बीते तीन चार दिनों से थी। खबरें यह भी तेज़ी से तैर रही हैं कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व अब नेता प्रतिपक्ष का चेहरा भी बदल सकता है। इस वक्त नेता प्रतिपक्ष धरम लाल कौशिक हैं, जो डॉ रमन सिंह की पसंद हैं। पंद्रह साल की सरकार के जाने के बाद भी संगठन पर डॉ रमन की पकड़ बनी रही और प्रदेश अध्यक्ष विष्णु देव साय और नेता प्रतिपक्ष धरम कौशिक दोनों चेहरे  डॉ रमन सिंह के ही माने जाते रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष पद से विष्णु देव साय को हटाए जाने के फ़ैसले को डॉ रमन सिंह के लिए बेहतर खबर कोई शायद ही मानेगा। वहीं अब नेता प्रतिपक्ष पद को लेकर चल रही खबरें जो कि अब तक भले केवल अफ़वाह हों, लेकिन यदि वो ज़ाहिर सूचना में बदल गईं तो इसे राजनैतिक समीक्षक सीधे डॉ रमन सिंह से ही जोड़ेंगे।बहरहाल समर्पित कार्यकर्ता की तरह डॉ रमन सिंह ने इस फ़ैसले को स्वीकारा और नए अध्यक्ष अरुण साव को बधाई दी है।





पिछड़ा वर्ग को साधने में आदिवासी तबका रूठ गया तो क्या होगा



 नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष लखन साव प्रदेश के जिस पिछड़े वर्ग से आते हैं, वह वर्ग है साहू समाज का। नेता प्रतिपक्ष के पद पर मौजूदा समय में धर्मलाल कौशिक हैं ( यदि वे निरंतर रह गए ), वे कुर्मी समाज से आते हैं। छत्तीसगढ़ की सियासत में संख्याबल के आधार पर देखें तो पिछड़ा वर्ग में ज़्यादा संख्या साहू समाज की मानी जाती है, जबकि ठीक दूसरे पायदान पर कुर्मी समाज है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कुर्मी समाज से ही आते हैं। यह परिदृश्य तय करने में व्यापक प्रचार प्रसार की अहम भूमिका है जिसके तहत यह धारणा बनने लगी है कि, पिछड़ा वर्ग निर्णायक वोटर है, और वह जिस ओर घूमेगा वह दल जीतेगा।



   साहू वोटर को अमूमन बीजेपी का कैडर वोट माना जाता है, लेकिन बीते विधानसभा चुनाव में बहुत से तथ्य ग़लत साबित हुए और बीजेपी पंद्रह सीटों पर सिमट गई। बीजेपी बीते विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर साफ़ हो गई, एक दंतेवाड़ा विधानसभा को छोड़कर उसे भी बीजेपी उप चुनाव में कांग्रेस के हाथों कैच दे आई।हालाँकि इसके पहले के चुनावों में आदिवासी सीटों पर बीजेपी को ज़बरदस्त सफलता मिलते रही है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पद पर इस जातिगत गोस्वारे में इसलिए ही एक पद आदिवासी और दूसरा पद पिछड़ा वर्ग को देना,संतुलन की क़वायद मानी गई।लेकिन अब बीजेपी प्रदेश संगठन में यह संतुलन गड़बड़ा गया है। आदिवासी तबका बीजेपी से अब तक नाराज़ रहा या कि नहीं रहा है, लेकिन इस फ़ैसले के बाद अब उस समाज की भृकुटि नहीं तनेगी, वह नाराज़ नहीं होगा यह समझ रखना नादानी ही होगी।



   ग़ौरतलब आज का दिन है जबकि बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष पद से कद्दावर आदिवासी चेहरे विष्णु देव साय को हटाया है, आज विश्व आदिवासी दिवस है।





कांग्रेस पूरे तेवर से हुई हमलावर



  विश्व आदिवासी दिवस के दिन बीजेपी के इस फ़ैसले ने कांग्रेस को हमलावर होने का मौक़ा दे दिया। सीएम बघेल ने इस फ़ैसले को लेकर कहा







“किसी और दिन यह हटाने की कार्यवाही कर लेते,आदिवासी दिवस के दिन आदिवासी नेता साय को नहीं बदलना चाहिए था”







पीसीसी चीफ़ मोहन मरकाम ने इसे आदिवासी अस्मिता से जोड़ते हुए आरोप लगाया कि, भाजपा का चरित्र मूल रुप से आदिवासी विरोधी है, और यह फ़ैसला इसे साबित करता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा







“बीजेपी को आदिवासियों के नेतृत्व पर भरोसा क्यों नहीं है,बीजेपी के इस निर्णय से पूरे आदिवासी समाज की भावनायें आहत हुई हैं।नंदकुमार साय के समय से जो अन्याय का जो दौर चला था, वह विष्णु देव साय तक पहुँच गया है।”







  विदित हो कि बीजेपी के भीतर क़द्दावर आदिवासी नेता नंद कुमार साय आदिवासी नेतृत्व की बात उठाते रहे हैं, बल्कि उन्हें बीजेपी के भीतर आदिवासी मुख्यमंत्री का मुद्दा उठाए जाने वालों में पहली पंक्ति पर गिना जाता है।





बीजेपी बचाव मुद्रा में





   नए अध्यक्ष के स्वागत से अलग बीजेपी बचाव मुद्रा में है। बीजेपी मीडिया सेल ने सिलसिलेवार विज्ञप्तियां जारी की हैं, और नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को आदिवासी उपेक्षा से जोडने की कवायद को खारिज करने में पूरी ताकत से जूट गई है। बीजेपी आदिवासी वर्ग के लिए पृथक मंत्रालय और सर्वाेच्च संवैधानिक पद याने राष्ट्रपति पद पर आदिवासी चेहरे द्राैपदी मुर्मू की याद दिलाते हुए दावा कर रही है कि, यह मसला आदिवासी वर्ग की उपेक्षा का बिलकूल नहीं है, लेकिन यह दलील आदिवासी क्षेत्रों में कितनी कारगर होगी,यह देखने की बात होगी।



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