GUNA : शिकारी मुठभेड़ सवालों के घेरे मे, चारों एफआईआर में सामने आई पुलिस की कमियां, कैसे मिलेगी सजा

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Naveen Modi
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GUNA : शिकारी मुठभेड़ सवालों के घेरे मे, चारों एफआईआर में  सामने आई पुलिस की कमियां, कैसे मिलेगी सजा

Guna. शिकारियों को पकड़ने के दौरान 3 पुलिसकर्मियों की हत्या का मामला प्रदेश ही नहीं देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसे लेकर राजनीति भी गहराई है। आरोपियों को पकड़ने के दौरान 2 को पुलिस ने एनकाउंटर में ढेर कर दिया। जबकि शॉर्ट एनकाउंटर में 2 आरोपी घायल हुए। इससे पुलिस का मनोबल बढ़ा और जनता में इस कार्रवाई की सराहना भी हुई। शुरुआती लापरवाही सामने आने पर प्रदेश सरकार ने आईजी को तत्काल हटा दिया था। फिर 2 आरोपियों को पुलिस ढूंढती रही। बाद में एक सप्ताह बाद अचानक नाटकीय ढंग से कोर्ट में हाजिर हो गए, इसी दिन एसपी राजीव कुमार मिश्रा को भी हटा दिया गया। अब पुलिस इन मामलों में विवेचना कर कोर्ट में चालान पेश करने की तैयारी में है।





पूरी घटना की मजिस्ट्रियल जांच जारी





इधर एडीएम द्वारा इस पूरे घटनाक्रम की मजिस्ट्रियल जांच भी की जा रही है। इस बहुचर्चित मामले में सिलसिलेवार ढंग से लिखी गई 4 एफआईआर का कानून के जानकारों द्वारा विश्लेषण किया गया है, जिसमें कई कमी देखने मिलीं हैं। सवाल उठ रहे हैं कि यदि आरोपियों को कोर्ट में ट्रायल के दौरान इन कमियों का लाभ मिला तो फिर उन्हें सजा कैसे होगी? पुलिस को चारों एफआईआर में अभियोजन की सभी कहानियां कोर्ट में संदेह से परे सही साबित करना होगी। ताकि आरोपियों को सजा मिल सके। सर्व विदित है कि 14 मई को पुलिस और शिकारियों के बीच हुई मुठभेंड में 3 पुलिसकर्मी शहीद हो गए, लेकिन थाना प्रभारी आरोन यह पता होते हुए कि 8 शिकारी हथियारों से लैस होकर आ रहे हैं, उन्होंने खुद न जाते हुए अपने अधीनस्थ सिर्फ 5 पुलिसकर्मियों को भेज दिया। उन्हें पर्याप्त हथियार भी उपलब्ध नहीं कराए गए। यही वजह रही कि आमना-सामना होने के दौरान बदमाश पुलिस पर हावी हो गए। जबकि बाद में एक-एक आरोपी की धरपकड़ और एनकाउंटर में 17-17 जवान और पुलिस अधिकारी मैदान में उतारे गए। अगर ऐसा पहले ही किया जाता तो सभी शिकारी हावी नहीं हो पाते। एफआईआर के मुताबिक एक एनकाउंटर में ले जाए गए हथियारों का फिर से इस्तेमाल किया गया, जबकि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन कहती है कि इन्हें तत्काल फोरेंसिक और बैलेस्टिक जांच के लिए जमा करना जरूरी है। 





रवाना होते वक्त हथियार साथ होने का जिक्र नहीं, शिकारी पर बंदूक ताने फोटो वायरल





एक अन्य एनकाउंटर के दौरान बदमाश की गोली हाथ में लगने से घायल एक आरक्षक धीरेंद्र गुर्जर पर पुलिस पार्टी रवाना होते समय हथियार होने का जिक्र एफआईआर में नहीं है, लेकिन उनका मारे गए शिकारी पर बंदूक ताने हुए फोटो जमकर वायरल हुआ। इसी तरह शॉर्ट एनकाउंटर में सब इंस्पेक्टर अमित अग्रवाल की झूमाझटकी में सिर्फ शर्ट फटी, लेकिन वह अस्पताल में घायल अवस्था में उपचाररत बताए गए फिर दूसरे दिन पूर्ण स्वस्थ होकर बदमाशों को पकड़ने पहुंच गए। दोनों स्थिति के फोटो खुद पुलिस ने ही जारी किए। एक अन्य एनकाउंटर में आरक्षक विनोद धाकड़ को बदमाश की गोली लगी लेकिन कहां लगी इसका जिक्र एफआईआर में नहीं हुआ। जवानों को लगीं गोलियां उन्होंने मेडिकल सर्जरी से निकलवा लीं या अभी भी वो उनके शरीर में धंसीं हैं इसका खुलासा बाद में भी नहीं हुआ है। इस तरह की कई लापरवाही पुलिस की तरफ से हुई है, जिसका आरोपी पक्ष कोर्ट में फायदा उठा सकता है। कानून के जानकारों के मुताबिक अगर पुलिस विवेचना के दौरान आरोपियों को सजा दिलाने वाले साक्ष्य इकट्ठा करके समय रहते चूक सुधार ले तो ही हमारे शहीद हुए जवानों को इंसाफ मिलेगा।





पहली एफआईआर की कहानी..





मुखबिर से शिकारियों की सूचना मिलने पर टीआई ने रवाना कर दी। टीम एसपी तक को सूचना का ज्रिक नहीं है। थाने से सिर्फ 18 किमी दूर घटनास्थल फतेहपुर तिराहा, गैलोन सगाबरखेड़ा रोड आरोन। दिनांक 13-14 मई की दरमियानी रात 3 से 3.30 बजे की घटना है। फरियादी आरक्षक प्रदीप सिंह रघुवंशी ने एफआईआर दर्ज कराई। जिसमें कहा कि सब इंस्पेक्टर राजकुमार जाटव ने मुझे और प्रधान आरक्षक दिनेश गौतम को बताया कि टीआई विनोद राठौर का फोन आया था, कुछ बदमाश भादौर तरफ से हिरणों का शिकार कर ले जा रहे हैं। इस सूचना पर सब इंस्पेक्टर शासकीय जीप से चालक लखन गिरी के साथ रवाना हुए। फिर बाकी लोग प्रधान आरक्षक नीरज भार्गव, आरक्षक संतराम मीना और हम प्राइवेट वाहन से घटना स्थल पर रवाना हुए। घटनास्थल से 200 मीटर दूर प्रधान आरक्षक गौतम को खड़ा किया गया। सब इंस्पेक्टर राजकुमार जाटव, प्रधान आरक्षक नीरज भार्गव और आरक्षक संतराम मीना फतेहपुर तिराहे पर लग गए थे। 7-8 शिकारियों को इन तीनों ने पकड़ लिया, झूमाझटकी होने लगी। तभी बदमाशों ने बंदूक से फायर किया, लगातार दोनों तरफ से हुई फायरिंग में तीनों खत्म हो चुके थे, पिस्टल पास में पड़ी थी। यह एफआईआर घटनास्थल पर मौजूद चश्मदीद की देहाती नालसी पर दर्ज होना बताया है, लेकिन देहाती नालसी में "लग गए थे" "खत्म हो चुके थे" और "पड़े थे" जैसे वाक्यों से प्रतीत होता है कि यह बाद में लिखी गई।





पुलिस के हाथों मारे गए शिकारी का ज्रिक तक नहीं..





एफआईआर की भाषा से यह पता चलता है कि शिकारियों की संख्या की जानकारी टीआई को थी, फिर भी उन्होंने सिर्फ 5 पुलिसकर्मियों को इन्हें पकड़ने भेज दिया और खुद नहीं गए। इसके अलावा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी एसपी, एएसपी तक को कोई सूचना नहीं दी गई। अगर पहले ही यह बता दिया होता तो भारी संख्या में पुलिस बल के साथ दबिश दी जाती। वहीं टीआई ने वन विभाग से भी तालमेल नहीं बिठाया, अगर चर्चा की होती तो जंगल की भौगोलिक स्थितियों का ज्ञान हो जाता और आरोपियों को पकड़ने में मदद मिलती। प्राइवेट वाहन से भी पुलिस रवाना हुई, लेकिन इसके ड्राइवर का भी कहीं कोई ज्रिक नहीं है। चश्मदीद फरियादी ने सभी 8 आरोपी अज्ञात बताए, जबकि कुछ ही देर बाद इनकी पहचान कर ली गई। दावा किया जा रहा है कि पुलिस की जवाबी कार्रवाई में एक शिकारी नौशाद मारा गया था, लेकिन एफआईआर में इस नाम का कोई ज्रिक नहीं था। पुलिस बल को कौन से बट नंबर के हथियार आवंटित किए गए थे, इसका तक लेख नहीं है।





दूसरी एफआईआर राघौगढ़ थाना.. 





थाने से 7 किमी दूर, दिनांक 15 मई शाम  6.20 से 9.40 के बीच शहजाद का एनकाउंट हुआ जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दी तो बल मिला दूसरी एफआईआर राघौगढ़ पुलिस ने लिखी। शिकारी नौशाद के भाई शहजाद का एनकाउंटर किया गया। राघौगढ़ टीआई अवनीत शर्मा को सूचना मिली कि विदोरिया के जंगल में बदमाश छिपे हैं। जिसकी तत्काल वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दी तो 2 दल गठित हुए, जो हथियारों से लैस थे। 2 किमी सर्चिंग के बाद पुलिस को 4-5 बदमाश दिखे, आरोपियों ने 2 चक्र फायर किए, जिसका छर्रा धीरेंद्र गुर्जर (पुलिस दल रवाना होते समय जिसे पुलिस की तरफ से कोई हथियार आवंटित होने का जिक्र एफआईआर में नहीं है) के बांए हाथ की कलाई पर लगा, बदमाशों की तरफ से फिर फायर किया गया। तो पुलिस ने आत्मरक्षा में 11 चक्र फायर किए, जिसमें आरोपी मारा गया।





सवाल ?





दल में शामिल जिन पुलिस अधिकारियों के मुठभेड़ स्थल पर रवाना होते समय उनके पास हथियार होने का जिक्र एफआईआर में नहीं जंगल में पहुंचकर उन्होंने चलाई गोलियां??



एक ही समय में अलग-अलग जवानों के हाथों में एक ही बट नंबर का हथियार? शहजाद एनकाउंटर मामले की एफआईआर में पुलिस ने भारी चूक की। आरोपी को पकड़ने बनाए 2 दल में सब इंस्पेक्टर मसीह खान को कोई पिस्टल आवंटित नहीं बताई गई थी, लेकिन जंगल में पहुंचकर इनके द्वारा 9 एमएम पिस्टल से 1 राउंड फायर किया गया। इसी तरह इंसास रायफल बट नंबर 17 राजीव रघुवंशी को सौंपी गई थी। एक ही समय में राजीव द्वारा 02 और उसी रायफल से आरक्षक सोहन अनारे ने 01 राउंड फायर बदमाशों पर कैसे कर दिया? घायल आरक्षक धीरेंद्र को कोई हथियार नहीं मिला था, लेकिन उनका आरोपी की पीठ पर बंदूक ताने हुए फोटो वायरल हुआ।  जानकारों के मुताबिक जिस पुलिस अधिकारी को जिस बट नंबर का हथियार आवंटित होता है, वही इसे इस्तेमाल कर सकता है। आरोपियों की तरफ से दो चक्र फायर के बाद भागते समय फिर फायरिंग की गई। लेकिन एनकाउंटर के बाद जब्ती में 2 जिंदा कारतूस, 2 खाली खोखे और एक कारतूत पट्‌टा जब्त किया गया। जबकि फिर से फायरिंग के खाली खोखे और संख्या का एफआईआर में ज्रिक नहीं है।





तीसरी एफआईआर आरोन थाना..





2 आरोपी का शॉर्ट एनकाउंटर, जिसमें पुलिस अधिकारी की शर्ट फटी वह अस्पताल में हुए भर्ती फिर स्वस्थ होकर दूसरे दिन तीसरे आरोपी को भी पकड़ने पहुंच गए। पुलिस हत्याकांड मामले में पकड़े गए 2 आरोपी जिया और अशफाक उर्फ शानू खान को आरोन पुलिस ने गिरफ्तार किया। पुलिस दोनों को 15 मई को दोपहर 2.15 बजे भोड़नी रोड लेकर पहुंची, वहां दोनों ने भागने की नियत से पुलिस वाहन की स्टयेरिंग पर झपट्टा मारा, जिससे गाड़ी खंती में जा गिरी (फोटो में गाड़ी खंती में खड़ी दिखाई दे रही है)। आरोपी जिया ने सब इंस्पेक्टर अमित अग्रवाल थाना प्रभारी बजरंगगढ़ की पिस्टल छीननी चाही, झूमाझटकी में उनकी शर्ट फट गई, आरोपी प्रधान आरक्षक गौतम को धक्का देकर भागे। रुकने के लिए कहा गया, तो टीआई विनोद राठौर, सब इंस्पेक्टर अमित अग्रवाल ने इन्हें अभिरक्षा में लेने के लिए 9 एमएम पिस्टल से दो दो फायर किए, एक एक गोली दोनों आरोपियों के दाहिने पैर की पिड़ली में लगी।





सवाल ?





एफआईआर में ज्रिक है कि सब इंस्पेक्टर की सिर्फ शर्ट फटी। लेकिन आरोपियों के पकड़े जाने के बाद घायल अवस्था में उनका स्वास्थ्य केंद्र पर इलाज कराते हुए फोटो वायरल हुआ। जिसमें इनके सीने पर मेडिकल ड्रेसिंग दिख रही है। लेकिन दूसरे दिन ही यानी 16 मई को हुए तीसरे एनकाउंटर में मारे गए आरोपी जहीर उर्फ छोटू खान के शव के पास खड़ी पुलिस टीम में भी वह शामिल रहे, फोटो पुलिस विभाग ने ही जारी किया। यदि मुठभेड़ में इनकी शर्ट फटी थी तो फिर चोट कैसे आई? यदि चोट आई थी तो एफआईआर में जिक्र क्यों नहीं? यह तमाम सवाल पुलिस की एफआईआर को लेकर हैं।





चौथी एफआईआर थाना धरनावदा..





पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले के एक आरोपी जहीर उर्फ छोटू को पकड़ने के लिए पुलिस बल तैनात किया गया। घटना 17 मई सुबह 5.25 से 5.35 के बीच की है। आरोपी के राजस्थान तरफ भागने की सूचना पर थाने से 5 किमी दूर भदौड़ी रोड तेजाजी का चबूतरा के पास बल तैनात था। आरोपी पुलिस को आता हुआ दिखा तो इसे रुकने को कहा गया। लेकिन इसने अपनी बाइक एक तरफ फेंकने के बाद पुलिस पर फायर करना शुरु किए तो पुलिस ने जवाबी कार्रवाई में इसे मार गिराया। इसमें पुलिस की तरफ से कुल 8 चक्र फायर किए गए और आरोपी ने 4 राउंड फायर किए। आरोपी की गोली से आरक्षक विनोद धाकड़ घायल हुए। लेकिन आरक्षक को यह गोली कहां लगी इसका एफआईआर में लेख नहीं है।





सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन की अनदेखी..





एनकाउंटर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 16 बिंदुओं की गाइड लाइन जारी की है, जिसमें एक बिंदु में स्पष्ट उल्लेख है कि एनकाउंटर के बाद एनकाउंटर टीम में शामिल पुलिसकर्मियों को अपने फायर आर्म्स फोरेंसिक, बैलिस्टिक एनालिसिस के लिए जमा करने होंगे। पुलिसकर्मी हत्याकांड में 2 आरोपियों का एनकाउंटर हुआ, लेकिन यह साफ ज्रिक नहीं है कि किसकी गोली से बदमाश मारे गए। एफआईआर में पुलिस दल में शामिल सदस्यों द्वारा एनकाउंटर के दौरान एक-एक, दो-दो फायर करना बताया गया। एक एनकाउंटर में उपयोग के बाद फिर से कई हथियारों का एनकाउंटर की दूसरी कार्रवाई में भी उपयोग हुआ। इन एफआईआर के मुताबिक निरीक्षक आमोद सिंह, निरीक्षक विनोद छावई दोनों को 9 एमएम पिस्टल और आरक्षक जितेंद्र गुर्जर को इंसास रायफल बट नंबर 340 और गौरीशंकर सांसी को रायफल बट नंबर 217 आवंटित थी। इन हथियारों का इस्तेमाल शहजाद एनकाउंटर के अलावा ज़हीर एनकाउंटर मामले में भी हुआ। जिया और शफाक को पकड़ने के लिए गोली चलाने वाले एसआई अमित अग्रवाल भी अपनी 9 एमएम पिस्टल के साथ ज़हीर एनकाउंटर में भी शामिल रहे। जहीर एनकाउंटर में आरोपी की पिस्टल से 3 चले हुए खोखे और 4 जिंदा कारतूस जप्त बताए गए हैं। जबकि एफआईआर के मुताबिक उसने पुलिस पर 4 राउंड फायर किए हैं तो एक कारतूस का खाली खोखा कहां गया। सवाल खड़ा होता है कि .32 बोर की पिस्टल में कितनी गोलियां आती हैं।





अगर ध्यान देते तो बच जाते हमारे जवान..





शिकारियों की ताबड़तोड़ फायरिंग में हमारे 3 पुलिसकर्मी शहीद हो गए। अब माना जा रहा है कि पुलिसकर्मियों की शहादत की घटना वाली रात को भी यदि शहजाद और ज़हीर एनकाउंटर की तरह ही पूरी तैयारी के साथ पुलिसपार्टियां घटना स्थल पर पहुंचती तो शिकारी किसी भी सूरत में हावी नहीं हो पाते। लेकिन न तो वरिष्ठ अधिकारियों को मुखबिर सूचना से अवगत कराया गया, न बट नंबर सहित हथियार आवंटित कर सक्षम टीमें बनाई गईं यहां तक की आरोपियों को पकड़ने पहुंचे पुलिस बल से कोई संपर्क साधने की कोशिश का खुलासा भी एफआईआर में नहीं है। वहीं थाने पर ही सूचना घटना के 2 घटे बाद 5:30 बजे पहुंची इसके बाद देहाती नालसी से असल एफआईआर दर्ज करने में भी 13 घंटे लगा दिए। इसमें भी सभी आरोपी अज्ञात बताए गए। सूत्रों का कहना है कि जिनको पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया उनमें से कुछ की ट्रेक्टर ट्राली अवैध उत्खनन के केस में आरोन थाने में पहले से जप्त थीं। दावा किया जा रहा है कि कुछ आरोपियों का इस मामले में थाने आना जाना भी होता था। यह पूरा मामला शिकार को लेकर घटित होना सामने आया है लेकिन एनकाउंटर में मारे गए या अपराध में गिरफ्तार किसी भी आरोपी के पास से शिकार किए गए वन्य प्राणियों के अवशेष यहां तक कि चार काले हिरणों के धड़ तक की बरामदगी किसी भी एफआईआर में सामने नहीं आई।





ऐसी कमी न रहे जिसका फायदा उठा लें आरोपी





विधिक जानकारों का कहना है कि पुलिस को समय रहते आरोपियों के विरुद्ध ठोस साक्ष्य एकत्र कर अभियोजन को पुख्ता कर लेना चाहिए ताकि हमारे बेशकीमती जवानों के परिजनों को न्याय मिल सके, और ऐसी कोई कमी न छोड़ी जाए जो आरोपियों के बच निकलने की सुरंग बन सके। इस घटना को लेकर ये तथ्य उभरकर सामने आ रहे हैं। पुलिस शिकारी मुठभेड़ और फिर आरोपियों के एनकाउंटर की कहानियों में प्रभावी विवेचना से चूके तो आरोपियों को मिल सकता है फायदा।







  • हथियारबंद 8 शिकारी थे फिर भी सिर्फ 5 जवानों को पकड़ने भेजा, एसपी एएसपी तक को खबर नहीं थी हमारे 3 जवान हो गए थे शहीद



  • बाद में सक्रिय हुई पुलिस तो एक-एक शिकारी को घेरने 17-17 पुलिस अधिकारी मैदान में उतरे 2 का एनकाउंटर किया, 2 आरोपी शॉर्ट एनकाउंटर में जख्मी हुए और 2 खुद हाजिर हो गए


  • पुलिस जवान जंगल में आरोपियों से मुकाबला कर रहे थे, फिर भी 18 किमी दूर स्थित थाने में 2 घंटे बाद सूचना मिली, 13 घंटे बाद चश्मदीदों की रिपोर्ट पर अज्ञात आरोपियों पर किया था मामला दर्ज


  • मारे गए आरोपी शिकारी थे पर किसी भी आरोपी से शिकार हुए वन्य प्राणियों के अवशेष बरामद होने का जिक्र नहीं, चार हिरणों के गायब हुए धड़ तक नहीं ढूंढ सके


  • बाद के एनकाउंटर में बदमाशों की गोली से घायल पुलिस जवानों को लगी गोलियां उनके शरीर में ही धंसीं हैं या ऑपरेशन कर निकाल दी गईं नहीं पता


  • एनकाउंटर को लेकर जारी सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन को फॉलो करने में भी हुई चूक, अलग-अलग एनकाउंटर में फायर आर्म्स का बार बार इस्तेमाल हुआ, जबकि गाइड लाइन के मुताबिक एक एनकाउंटर में इस्तेमाल सभी हथियारों को फोरेंसिंक और बैलेस्टिक जांच में लिया जाना था।




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