राहुल शर्मा, BHOPAL. भोपाल की जीवन रेखा कही जाने वाली केरवा-कलियासोत वॉटर बॉडी को अधिकारी खुद मिटाने पर तुले हुए हैं। केरवा-कलियासोत डैम के ग्रीन बेल्ट और कैचमेंट एरिया में बने रसूखदारों और नौकरशाहों के अवैध निर्माण-अतिक्रमण को बचाने के लिए एनजीटी जैसी न्यायिक संस्था में विभाग झूठी रिपोर्ट तक सबमिट करने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। ये आरोप याचिकाकर्ता डॉ. सुभाष सी पांडे और राशिद नूर खान ने लगाए हैं। केरवा कलियासोत के कैचमेंट-ग्रीन बेल्ट में हुई अतिक्रमण की याचिका एनजीटी में लगी है।
जिला प्रशासन ने कहा कोई अतिक्रमण नहीं
सुनवाई के दौरान भोपाल जिला प्रशासन ने एक रिपोर्ट सबमिट की जिसमें ये कह दिया कि इन वॉटर बॉडी के आसपास कोई अतिक्रमण ही नहीं है जबकि जल संसाधन विभाग ने कहा कि अतिक्रमण है। ये पहला मौका नहीं है जब रसूखदारों के अवैध निर्माण या अतिक्रमण को बचाने इस तरह की रिपोर्ट दी गई। द सूत्र इससे पहले ही खुलासा कर चुका है कि इनकी जमीनों और निर्माण को बचाने कैसे मास्टर प्लान तक में संशोधन किया जा रहा है। कैसे बड़े तालाब के कैचमेंट को खत्म करने की साजिश रची जा रही है।
कलेक्टर नहीं दे पाए अतिक्रमणकारियों के नाम
एनजीटी ने फरवरी 2022 में कलेक्टर की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी जिसे केरवा-कलियासोत नदी के आसपास के अतिक्रमण को चिन्हित करना था। कमेटी ने रिपोर्ट में ये तो स्वीकारा कि अतिक्रमण है पर वो इनके नाम नहीं दे सकी। इसके पीछे कारण क्या है, ये हम आपको बाद में बताएंगे लेकिन एक ही मामले में तीन अलग-अलग रिपोर्ट पर पर्यावरणविद सुभाष पांडे ने आपत्ति लेते हुए एनजीटी से पूरे मामले की निष्पक्ष जांच के लिए कमिश्नर लैंड रिकॉर्ड ग्वालियर से कराने की बात कही।
पीसीबी का झूठ-डैम में कहीं नहीं मिल रही गंदगी
एनजीटी में जो जवाब पेश किया गया उसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी पीसीबी ने कहा कि केरवा-कलियासोत डैम में कहीं कोई गंदगी नहीं मिल रही है। जबकि हकीकत में कई जगह सीधे नाले इन वॉटर बॉडी में मिल रहे हैं। कलियासोत में नेहरू नगर में सबरी नगर के पास सीधे सीवेज मिल रहा है। पुलिस लाइन के पीछे एसटीपी ओवरफ्लो होकर बहकर कलियासोत में मिल रहा है। विसपरिंग पाम्स के पास बरखेड़ी का एक नाला भी कलियासोत में मिल रहा है लेकिन पीसीबी को ये नाले दिख ही नहीं रहे हैं।
खुद की रिपोर्ट में ही प्रदूषित फिर भी पानी को A क्वालिटी का बताया
पीसीबी ने केरवा-कलियासोत डैम के पानी की जांच की। जांच रिपोर्ट में पानी प्रदूषित मिला लेकिन एनजीटी में जो जवाब सबमिट किया। सुभाष पांडे ने बताया कि पीसीबी ने जो जवाब सबमिट किया उसमें कलियासोत का पानी A क्वालिटी का और केरवा डैम का पानी B क्लाविटी का बताया। A क्वालिटी का मतलब उस वॉटर बॉडी से सीधे ही पानी लेकर पीया जा सकता है। सवाल ये है कि यदि कलियासोत का पानी इतना साफ है तो क्या पीसीबी के अधिकारी इसे सीधे पी सकेंगे।
पीसीबी की रिपोर्ट
आपको बता दें कि पीसीबी की रिपोर्ट में ही कलियासोत डैम के पानी में डिजॉल्व ऑक्सीजन की मात्रा 5.7 और केरवा डैम में इसकी मात्रा 6 मिली है, जबकि ये 6 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा होना चाहिए। कलियासोत में बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी 3.5 मिला है, जबकि ये 2 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होना चाहिए। वहीं टोटल कॉलीफार्म जो मलमूत्र में पाया जाने वाला बैक्टीरिया है ये 50 से कम होना चाहिए। ये कलियासोत में 350 और केरवा में 84 मिला।
विभाग क्यों दे रहा झूठी रिपोर्ट
जाहिर-सी बात है अतिक्रमण है, फिर भी अतिक्रमण को छुपाया जा रहा है। इन अतिक्रमण और अवैध निर्माण से कलियासोत और केरवा डैम का पानी दूषित हो रहा है, फिर भी इसे उच्च क्वालिटी का बताया जा रहा है। सवाल उठता है ऐसा क्यों, इसके पीछे है इस इलाके में रसूखदार और नौकरशाहों की जमीन और आलीशान बंगले। ये इतने ताकतवर हैं कि इनके आगे सरकार हो या शासन किसी कि एक नहीं चल सकती।
रसूखदारों ने डैम के अंदर तक घुसकर किए अतिक्रमण
भोपाल के लंग्स कहे जाने वाले केरवा कलियासोत को लेकर प्रशासन कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कलियासोत की सहायक नदी अतिक्रमण की चपेट में है और कलियासोत और केरवा डैम के कैचमेंट रसूखदारों के कारण खत्म हो रहे हैं। नियमानुसार डैम के फुल टैंक लेवल से 33 मीटर ग्रीन बेल्ट और उसके बाद 150 हेक्टेयर बॉटनीकल गार्डन के लिए आरक्षित है। इधर डैम के अंदर तक घुसकर अतिक्रमण कर लिए गए हैं।
केरवा डैम के डाउनस्ट्रीम में अतिक्रमण
केरवा डैम के डाउनस्ट्रीम में कुशलपुरा गांव में एक अतिक्रमण ऐसा है जो डैम का पानी रोककर किया गया था। वहां काम करने वाले कर्मचारियों ने बताया कि ये किसी डॉक्टर वाष्यर्णें का फार्म हाउस है। अब बीच पानी में कहां से फार्म हाउस की जमीन आ गई और कैसे इसे निर्माण की परमिशन मिल गई ये तो जिम्मेदार ही जानें। यहां से थोड़ा आगे बढ़ें तो डैम के पानी की ओर जाने वाली जगह पर ही किसी ने गेट लगा दिया है। यहां आसपास दर्जनों ऐसे निर्माण हैं जो पूरी तरह से नियम विरुद्ध हैं क्योंकि ये जगह या तो ग्रीन बेल्ट या वनस्पति उद्यान के लिए आरक्षित है।
इनकी है जमीन और आलीशान बंगले
केरवा-कलियोसात के कैचमेंट में है आईएएस-आईपीएस अफसरों की विस्परिंग पॉम्स कॉलोनी। जिसमें राज्य निर्वाचन आयुक्त बंसत प्रताप सिंह, आईएएस अनुपम राजन, जीतेंद्र राजे, मलय श्रीवास्तव, विवेक अग्रवाल, रिटायर्ड आईएएस एसआर मोहंती समेत राधेश्याम जुलानिया का बंगला है या बंगले का निर्माण चल रहा है। सूरजनगर वाले एरिया में आईएएस विनोद कुमार, राकेश अग्रवाल, बीआर नायडू, सभाजीत यादव समेत अन्य अधिकारियों के बंगले और जमीने हैं। वहीं पुलिस लाइन के पीछे फायरिंग रेंज वाले एरिया में रिटायर्ड डीजीपी नंदन दुबे और आईएएस केके सिंह समेत अन्य के बंगले या प्रॉपर्टी है।
कलेक्टर क्यों नहीं दे पाए अतिक्रमणकारियों की लिस्ट
इसके अलावा केरवा कलियासोत से लगे मंत्री या उनके रिश्तेदारों की जमीनें भी हैं। अब आप समझ ही गए होंगे कि आखिर क्यों कलेक्टर अवैध निर्माण या अतिक्रमणकारियों की नाम सहित सूची एनजीटी को नहीं दे पाए। क्यों जिला प्रशासन इस इलाके में एक भी अवैध निर्माण या अतिक्रमण नहीं बता पा रहा है, क्यों प्रदूषित पानी को भी पीसीबी साफ बताने पर तुला हुआ है।
जितने पेड़ कटे उनसे 5 लाख लोगों को मिल सकती थी ऑक्सीजन
15 सालों में इस इलाके में अतिक्रमण और अवैध निर्माण से जितने क्षेत्र से जंगल खत्म हुआ है। उतना जंगल 5 लाख लोगों को ऑक्सीजन दे सकता था। एक पेड़ को लगाने के लिए 100 वर्गफीट की जगह चाहिए होती है। हालांकि ये पेड़ की प्रकृति और स्वरूप पर निर्भर करता है लेकिन इसे मान लिया जाए तो 390.55 एकड़ पर करीब 1 लाख 70 हजार पेड़ लगे होंगे। एक पेड़ से औसतन 5 लोगों को ऑक्सीजन मिलती है।
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158.05 हेक्टेयर का जंगल खत्म
158.05 हेक्टेयर का जो जंगल खत्म हो गया, उससे 5 लाख लोगों को ऑक्सीजन मिल सकती थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक पेड़ की कीमत 74 हजार 500 रुपए एक वर्ष की आंकी गई है। इससे ये अनुमान लगाना कठिन नहीं होगा कि इन पेड़ों को काटकर हम करोड़ों-अरबों का नुकसान कर चुके हैं। वहीं केरवा डैम से भोपाल में पानी की सप्लाई होती है। ये जिस कैटेगिरी का है उस पानी का उपयोग सिर्फ नहाने के लिए कर सकते हैं जबकि लोग इसका उपयोग पीने के पानी के लिए कर रहे हैं जिससे बीमारी का खतरा तो बना ही रहेगा।