देवानंद ने द गाइड पढ़ी, गोल्डी ने डायरेक्शन संभाला, शैलेंद्र के बोलों पर बर्मन दा का जादू और बन गई क्लासिक

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बीबीसी के मुताबिक, एक बार जब देवानंद लंदन गए तो किसी ने उनसे आर के नारायण की किताब 'गाइड' पढ़ने के लिए कहा। किताब की तलाश में वो लंदन के सबसे बड़े बुक स्टोर फॉयल गए, लेकिन वहां किताब की सारी प्रतियां बिक चुकी थीं। सेल्स गर्ल ने उनसे कहा कि अगर वो अपना पता छोड़ जाएं तो वो वो किताब उन तक पहुंचा देगी। अगले ही दिन होटल की रिसेप्शनिस्ट ने उन्हें फोन कर कहा कि वो उनके लिए आया एक पार्सल उनके कमरे में भेज रही हैं। देव ने उस पार्सल को खोला तो उसमें 'गाइड' बुक थी। होटल की बालकनी में बेठे बैठे देवानंद ने वो किताब एक बार में ही खत्म कर दी। उन्हें उसी समय लग गया कि कहानी में दम है।

आरके नारायण के इस उपन्यास को तब तक अंग्रेजी में कहानी का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका था। नारायण दुनियाभर में मशहूर हो चुके थे। इससे पहले देवानंद अमेरिकी उपन्यासकार पर्ल एस बक की फिल्म कंपनी के साथ संयुक्त रूप से एक फ़िल्म बनाने का मन बना चुके थे। उन्होंने जब अमेरिका फ़ोन कर पर्ल से इस उपन्यास के बारे में बात की तो उन्होंने देव को तुरंत अमेरिका आने के लिए कहा।

जब देव वहां पहुंचे तो पर्ल ने उनसे पूछा कि क्या आप के पास किताब पर फिल्म बनाने के राइट्स हैं ? देव ने कहा कि वो इसे पाने के लिए जमीन आसमान एक कर देंगे। देव ने किसी तरह आर के नारायण का फोन नंबर जुगाड़ा और वहीं से उनको फोन लगाया।

देवानंद अपनी आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ़' में बताते हैं- 'नारायण ने फोन उठाते ही कहा, 'आर के नारायण हियर।' मैंने कहा- 'मैं देवानंद बोल रहा हूं।' उनका जवाब था, 'कौन देवानंद ?' मैंने कहा- 'देवानंद एक्टर।' उन्हें यकीन नहीं हुआ, पर देवानंद ने आश्वस्त किया। नारायण ने पूछा, 'बताएं, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?' मैंने कहा क्या हम दोनों एक ऐसे प्रोजेक्ट के बारे में हाथ मिला सकते हैं जो हॉलीवुड को जीत सकता है? हम आपकी एक कहानी 'गाइड' को स्क्रीन पर उतारना चाहते हैं।

नारायण ने सवाल किया- 'हम' से आपका क्या मतलब है? देव ने कहा कि मैं और पर्ल एस बक हम दोनों आपकी कहानी पर फिल्म बनाना चाहते हैं। मैं उसमें गाइड का रोल करना चाहता हूं। नारायण ने कहा कि उन्हें ये बात पसंद आ रही है। देवानंद बंबई पहुंचे तो बात फैल चुकी थी कि वो आरके नारायण के मशहूर उपन्यास 'गाइड' पर हिंदी और अंग्रेज़ी में फ़िल्म बनाने जा रहे हैं। कुछ दिनो बाद पर्ल भी बंबई पहुंच गईं। तभी नागपुर में कांग्रेस का सम्मेलन हुआ। देव भी इसमें गए, यहां उन्हें नेहरू के बगल में बैठने का मौका मिला, देव आर के नारायण की किताब पर फ़िल्म बनाने की बात नेहरू को बताई तो उन्होंने शाबाशी दी।

फिल्म की हीरोइन रोज़ी का रोल वहीदा रहमान को मिला। पर्ल एस बक ने वहीदा इंग्लिश प्रोनन्सिएशन को सुधारने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। वहीदा ने एक किताब में बताया था कि ने मुझसे कहा, कुछ लोग चाहेंगे कि तुम अपने डायलॉग अमेरिकी लहजे में बोलो, लेकिन तुम ऐसा मत करना। तुम्हारी लाइनें लोगों को समझ में आनी चाहिए। फिल्म की कहानी भारतीय है, तुम्हारा चरित्र भारतीय है. अगर तुम अमेरिकी लहजे में बोलोगी तो बहुत अजीब लगेगा। वहीदा क्लासिकल डांसर थीं, लेकिन काफी दिनों से उन्होंने प्रैक्टिस नहीं की थी, लेकिन शूटिंग शुरू होने से पहले उन्होंने डांस की प्रैक्टिस शुरू कर दी।

'गाइड' के हिंदी संस्करण को डायरेक्ट करने के लिए देवानंद ने अपने बड़े भाई चेतन आनंद को मना लिया। अंग्रेजी संस्करण के निर्देशन की जिम्मेदारी टाड डेनियलिउस्की को दी गई। तय हुआ कि पहले हिंदी शॉट लिया जाएगा और उसी सेट पर उसके बाद अंग्रेजी शॉट लिया जाएगा, ताकि समय और पैसे दोनों की बचत हो। देवानंद ने बताया था कि दोनों डायरेक्टर्स के बीच इस बात पर बहस होने लगी कि कैमरे को कहां रखें। इसका असर एक्टिंग पर पड़ने लगा।

इस सबसे तंग आकर देवानंद ने तय किया कि वो पहले अंग्रेजी संस्करण को शूट करेंगे। इस फैसले ने चेतन आनंद को वो मौका दे दिया जिसकी वो पहले से ही तलाश में थे। उनकी अपनी फ़िल्म 'हक़ीकत' के लिए पैसों का इंतेज़ाम हो गया था, वो इस फ़िल्म में अपना पूरा दिल और जान झोंकना चाहते थे. जब उन्होंने अपनी मंशा देवानंद को बताई तो देवानंद ने उन्हें गले लगाकर उनकी नई फ़िल्म के लिए उन्हें मुबारकबाद दे डाली। और फिल्म का डायरेक्शन देव के छोटे भाई विजय आनंद यानी गोल्डी के हिस्से में आ गया। गोल्डी शुरू में इस फ़िल्म से जुड़ने में झिझक रहे थे ,लेकिन फिर वो इसका महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए। उन्होंने भारतीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए नए सिरे से स्क्रिप्ट लिखी।

पहले ही तय था कि फिल्म में म्यूजिक एसडी बर्मन देंगें, लेकिन काम शुरू करने से पहले ही उन्हें हार्ट अटैक हो गया और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। देवानंद ने बर्मन और गोल्डी दोनों को साफ कर दिया कि वो सचिनदेव बर्मन की जगह किसी दूसरे को नहीं लेंगे, उनके ठीक होने का इंतजार करेंगे। 'गाइड' के गीत लिखने के लिए पहले हसरत जयपुरी को चुना गया था। उनका लिखा एक गाना रिकॉर्ड भी हो चुका था, लेकिन सबको लगा कि इसके बोल में कुछ बदलाव होना चाहिए।

बर्मन ने हसरत से कहा, ये गाना हम लगों की आशा के अनुरूप नहीं बन पाया, इसलिए इसके शब्दों में थोड़ा फेरबदल करना होगा। हसरत को ये सुझाव पसंद नहीं आया। देवानंद को हसरत की ये बात बुरी लगी। उन्होंने उनकी जगह किसी और से गाने लिखवाने का फैसला किया।

उस जमाने में एसोसिएशन का नियम था कि अगर गाना रिकॉर्ड हो गया है तो गीतकार को पूरी फीस दी जानी चाहिए। उस समय गीतकार को एक गाने के लिए 500 रुपए मिला करते थे। देवानंद ने हसरत को 25000 रुपए का चेक भेज दिया। शैलेंद्र को पता चला कि नवकेतन को नए गीतकार की तलाश है तो उन्होंने देवानंद से कॉन्टैक्ट किया। वो पहले देव और गोल्डी के साथ 'काला बाज़ार' फ़िल्म में काम कर चुके थे और उनमें अच्छी दोस्ती हो गई थी।

हसरत ने जो गाना लिखा था उस पर विचार करने के लिए गोल्डी, देवानंद और शैलेंद्र के बीच एक बैठक हुई। रात 11 बजे इस बैठक में सचिनदेव बर्मन भी शामिल हो गए और कुछ ही मिनटों में गाइड के पहले गाने को वहीं रूप दे दिया गया। गाना था- दिन ढल जाए, रात ना आए। इसके बाद गोल्डी ने शैलेंद्र को सिचुएशन समझाई कि रोज़ी के पति ने उसके संगीत और नाचने पर रोक लगा दी है। जब उसे महसूस होता है कि उसने अपना नृत्य और संगीत छोड़कर गलती की है तो वो फिर से अपने घुंघरू पहन लेती है। 

इसके बाद गोल्डी ने एसडी बर्मन से कहा कि आप चाहें तो घर चले जाएं। अब हम और शैलेंद्र इस गाने पर काम करेंगे। वहां से जाने के एक घंटे बाद गोल्डी के पास बर्मन का फोन आया, गाने का मुखड़ा तैयार है- आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है। गोल्डी ने पूछा इसके आगे, लेकिन शैलेंद्र इसके आगे की लाइन नहीं बता पाए। जब कुछ दिनों तक गोल्डी के पास शैलेंद्र की तरफ़ से कोई ख़बर नहीं ई तो वो एक दिन शैलेंद्र के घर गए। उन्होंने कहा, शैलेंद्रजी, बहुत समय बर्बाद हो रहा है, गाने को पूरा करिए. शैलेंद्र ने उसी समय लाइन लिखी- कांटों से खींच के ये आंचल, तोड़ के बंधन बांधी पायल।

फिल्म के दौरान देव और गोल्डी के बीच काफी मतभेद भी हुए। शूटिंग बंद करने की नौबत तक आ गई थी। लेकिन जीत गोल्डी की हुई, वो देव को बात समझाने में कामयाब रहे। फिल्म के अंत में राजू संत बन जाता है और बारिश लाने के लिए 12 दिन का उपवास रखता है। गोल्डी चाहते थे कि राजू को बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ कमजोर सा व्यक्ति दिखाया जाए। वो नहीं चाहते थे कि देवानंद का चेहरा देखने में जिरा भी सुंदर लगे। देवानंद को ये पसंद नहीं आया। उन्होंने कहा स्टार को पर्दे पर कभी गंदा नहीं दिखना चाहिए। कैमरामैन फाली मिस्त्री गोल्डी के पास गए और बोले- देव त में भी दम है,  बड़े स्टार हैं। तुम थोड़ा अडजस्ट करो? पर गोल्डी इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि अगर मैं ऐसा करता हूं तो फ़िल्म का मूल स्वरूप खत्म हो जाएगा। कुछ समय बाद देव खुद महसूस करेंगे कि मैं जो कुछ कह रहा हूं, वो गलत नहीं है। बिल्कुल ऐसा ही हुआ और देव उसी हालत में कैमरे के सामने आए।

'गाइड' नवकेतन की अकेली फ़िल्म थी जो शूटिंग के दौरान बिक नहीं पाई थी। बंगाल के एक डिस्ट्रीब्यूटर ने गोल्डी को सलाह दी कि वो फिल्म का क्लाइमेक्स चेंज कर दें और देव को मरने नहीं दें लेकिन गोल्डी ने उनकी बात नहीं मानी। नवकेतन के लिए प्रोडंक्शन कंट्रोलर के तौर पर काम कर रहे यश जौहर ने उन्हें सलाह दी कि वो दिल्ली के वितरक को पूरा फ़िल्म न दिखाकर दो गाने दिखाएं। गोल्डी ने डिस्ट्रीब्यूटर को दो गाने दिखाए- पिया तोसे नैना लागे रे'और गाता रहे मेरा दिल। डिस्ट्रीब्यूटर इन गानों के पिक्चराइजेशन को देख कर दंग रह गया। इससे पहले किसी ने इस तरह से गाने नहीं शूट किए थे। उसने कहा- मैं आपकी फिल्म तुरंत खरीद रहा हूं।

देवानंद ने फ़िल्म जगत के कुछ चुने हुए लोगों के लिए 'गाइड' का एक विशेष शो रखा। लोग फिल्म देखने आए, लेकिन उन्होंने शो के बाद एक शब्द भी नहीं कहा। उस जमाने में किसी फ़िल्म के प्रीमियर के दौरान एक तरह का शादी का माहौल रहता था, लेकिन जब मराठा मंदिर में 'गाइड' का प्रीमियर हुआ तो माहौल इस तरह का था जैसे किसी का अंतिम संस्कार हो रहा हो। बीआर चोपड़ा तो ये तक बोले कि फिल्म का सिर-पैर ही समझ में नहीं आया, लेकिन धीरे-धीरे फिल्म को अच्छे रिव्यू मिलने लगे। पहले इसे एक 'अच्छी' फिल्म कहा गया, फिर इसे 'बहुत अच्छी' फिल्म कहा जाने लगा, आज इसे 'क्लासिक' फिल्म कहा जाता है। इस फिल्म ने गोल्डी को भारत के टॉप डायरेक्टर्स की श्रेणी में खड़ा कर दिया। देवानंद और वहीदा रहमान को फिल्मफेयर का बेस्ट एक्टर और एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला। बस यही थी आज की कहानी....