जबलपुर केंट सीट ''''दादा'''' के नाम पर चल रही, बेटा 4 बार से विधायक, बेतरतीब ट्रैफिक और पीने के पानी की समस्या

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Atul Tiwari
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जबलपुर केंट सीट ''''दादा'''' के नाम पर चल रही, बेटा 4 बार से विधायक, बेतरतीब ट्रैफिक और पीने के पानी की समस्या

JABALPUR. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले द सूत्र एक मुहिम चला रहा है। मूड ऑफ एमपी-सीजी (mood of mp cg) के तहत हमने जाना कि विधानसभा में मौजूदा हालात क्या हैं, जनता क्या सोचती है। अगले विधानसभा चुनाव में क्षेत्र का गणित क्या रहेगा। इसी कड़ी में हमारी टीम जबलपुर की केंट विधानसभा सीट पर पहुंची...





जबलपुर को जानें





जबलपुरप मध्यप्रदेश की संस्कारधानी के नाम से विख्यात है। ऋषि जाबाली के नाम पर इस शहर का नाम जबलपुर पड़ा। जबलपुर 1781 में मराठों का मुख्यालय रहा। 1864 में यहां नगर पालिका का गठन हुआ। मध्य प्रदेश की पहली नगर निगम जबलपुर में ही थी। प्राकृतिक सौंदर्य और चाट के लिए मशहूर इस शहर की राजनीति का भी प्रदेश में विशेष स्थान  है। जबलपुर में सेना की छावनी है, साथ ही सेना की वाहन फैक्ट्री भी है। सेना की छावनी होने की वजह से ही इस विधानसभा का नाम जबलपुर कैंट है।





जबलपुर का राजनीतिक मिजाज





जबलपुर को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। विधानसभा से लेकर लोकसभा तक यहां लगभग हर चुनाव में बीजेपी बड़े अंतर से चुनाव जीतती है। यहां की कैंट सीट पर रोहाणी परिवार का एकतरफा कब्जा रहा है। 1993 से लेकर 2018 तक ईश्वर दास रोहाणी (दादा रोहाणी के नाम से मशहूर हैं) और उनके निधन के बाद उनके बेटे अशोक रोहाणी विधायक बने। यहां से लोकसभा चुनाव में बीजेपी के राकेश सिंह लगातार 4 बार सांसद चुने गए हैं।





जबलपुर का सियासी समीकरण





इस विधानसभा में प्रमुख तौर पर बीजेपी-कांग्रेस के बीच चुनाव जंग होती है। जनता को दोनों ही पार्टियों में चेहरे तय होने का इंतजार रहता है। कांग्रेस में जहां कई दावेदार मैदान में है, वहीं बीजेपी में मौजूदा विधायक को छोड़कर शेष दावेदार पर्दे के पीछे से चेहरा बदलने में जुटे हैं। हालांकि, बीजेपी टिकट बदलेगी, इसकी संभावना कम दिखाई दे रही है। कांग्रेस से यहां 4 बार आलोक मिश्रा चुनाव लड़ चुके है और हार चुके है। कांग्रेस प्रत्याशी बदलती है तो कुछ बात बन सकती है। कांग्रेस नेता अभिषेक चिंटू चौकसे भी टिकट की रेस में हैं।





जातिगत समीकरण





जबलपुर कैंट शहरी सीट है, लिहाजा यहां जातिगत समीकरण विधानसभा चुनाव पर कोई असर नहीं डालता। यहां सभी वर्गों के मतदाता हैं और यहां उम्मीदवार की छवि और काम करवाने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए जनता वोट देती है। इसलिए इस सीट को बीजेपी का गढ़ कहा जा सकता है। कांग्रेस यहां से खाता खोलने की स्थिति में नजर नहीं आती।





जबलपुर केंट सीट के मुद्दे





यहां अतिक्रमण और बेतरतीब ट्रैफिक बड़े मुद्दे हैं। नर्मदा किनारे स्थित इस शहर के कैंट इलाके में ही कई परिवार पीने के पानी की राह तक रहे हैं तो वहीं इस इलाके में रोजगार एक बड़ा मुद्दा है। यहां बीजेपी विधायक पर गरीबों के बजाय अपने ही कार्यकर्ताओं को स्वेच्छानुदान से राशि वितरण करने का भी आरोप लगता है।  





द सूत्र की चौपाल में उठे मुद्दे





इन तमाम मुद्दों पर जब हमने राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदों से बात की तो वे एक-दूसरे पर आरोप लगाते नजर आए। इसके अलावा द सूत्र ने इलाके के प्रबुद्धजनों, वरिष्ठ पत्रकारों और आम जनता से बात की तो कुछ सवाल निकल कर आए...







  • 1. इलाके में रोजगार की समस्या से युवा वर्ग परेशान है, आपने क्या प्रयास किए ?



  • 2.अतिक्रमण-ट्रैफिक को लेकर भारी परेशानी है, आपने इसे दूर करने क्या कोशिश की ?


  • 3.कैंट इलाके में ही कई लोगों को पीने का पानी नहीं मिल रहा, इसका कारण ?


  • 4.आप अपने ही कार्यकर्ताओं को स्वेच्छानुदान की राशि देते हैं, क्या कहेंगे ?


  • 5. इलाके के लोगों को पीएम आवास योजना का लाभ नहीं मिल रहा है, ऐसा क्यों ?






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