दो कंपनियों के बीच फंसी मरीजों की जान, एनएचएम के अधिकारियों को परवाह नहीं

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Anjali Singh
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दो कंपनियों के बीच फंसी मरीजों की जान, एनएचएम के अधिकारियों को परवाह नहीं

भोपाल. प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं वेटिंलेटर पर हैं, ये हम नहीं, बल्कि बिगड़ते हालात बता रहे हैं। बीते दिनों छतरपुर में एक महिला की डिलेवरी जिला अस्पताल के गेट पर ही हो गई थी। समय पर सरकारी एंबुलेंस यानि जननी एक्सप्रेस न मिलने की वजह से प्रसूता को अस्पताल पहुंचाने में देरी हुई थी। बीते 6 महीनों में इस तरह की घटनाओं में इजाफा हुआ है। द सूत्र की पड़ताल में जो वजह निकलकर आई है, उससे साफ होता हैं कि नेशनल हेल्थ मिशन यानि एनएचएम के अधिकारियों के ढुलमुल रवैये की वजह से मरीजों की जान खतरे में पड़ गई है।









मध्यप्रदेश में इंटीग्रेटेड रेफरल ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आईआरटीएस) यानि इमरजेंसी एंबुलेंस सर्विस का ठेका





छत्तीसगढ़ के रायपुर की कंपनी जय अंबे इमरजेंसी सर्विस को मिला है। अक्टूबर 2021 में जय अंबे को काम मिलने की टेंडर प्रक्रिया पूरी हो गई थी। लेकिन 6 महीने बाद भी कंपनी काम को टेकओवर नहीं कर पाई है। आज भी प्रदेश में एंबुलेंस और जननी एक्सप्रेस के संचालन का काम जिकित्जा हेल्थ लिमिटेड ही कर रही है।            









गैरेज में खड़ी हैं 20 फीसदी एंबुलेंस





प्रदेश में जिगित्जा हेल्थ केयर लिमिटेड 606 एंबुलेंस और 839 जननी एक्सप्रेस वाहनों का संचालन कर रही है। ज्यादातर एंबुलेंस गाड़ियां सरकारी हैं, वहीं जननी एक्सप्रेस किराए पर लेकर संचालित की जा रही हैं। इन 606 एंबुलेंस में से 20 फीसदी यानी 120 गाड़ियां ऑफरोड हैं। गाड़ियों में 50 हजार से ज्यादा का मेंटेनेंस हैं, लिहाजा जिगित्जा हेल्थ केयर लिमिटेड गाड़ियों में काम ही नहीं करा रही। वहीं 100 से ज्यादा जननी एक्सप्रेस ऑफरोड हैं। जिसका सीधा असर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ रहा है।









गाड़ियां ऑफरोड होने की वजह से बढ़ा रिस्पांस टाइम





20 फीसदी से ज्यादा गाड़ियों के ऑफरोड होने की वजह से एंबुलेंस सेवा का रिस्पांस टाइम बढ़ गया है। नियम के मुताबिक शहरी इलाकों में एंबुलेंस 20 मिनट और ग्रामीण इलाकों में 30 मिनट के अंदर पहुंचना होता हैं। लेकिन गाड़ियों की कमी की वजह से रिस्पांस टाइम बिगड़ गया है। यहीं वजह हैं कि विभिन्न जिलों से एंबुलेंस या जननी एक्सप्रेस के मौके पर न पहुंचने खबरें सामने आ रही हैं। वहीं एनएचएम के सूत्रों का कहना हैं कि रिस्पांस टाइम में करीब 10 मिनट का इजाफा हो गया है।









दोगुनी गाड़ियों की जरूरत





राज्य सरकार को भी पता हैं कि एंबुलेंस सर्विस को सुचारू रूप से चलाने के दोगुनी गाड़ियों की जरूरत है। यहीं वजह हैं कि जय अंबे इमरजेंसी सर्विस को प्रदेश में 1002 एंबुलेंस और 1050 जननी एक्सप्रेस संचालित करने का ठेका दिया गया है।









एनएचएम के अधिकारियों ने साधी चुप्पी





नेशनल हेल्थ मिशन मध्यप्रदेश के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी केके रावत का कहना हैं कि जल्द ही जय अंबे इमरजेंसी सर्विस काम को टेकओवर कर लेगी। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि कंपनी के प्रति एनएचएम की इस दरियादिली की क्या वजह हैं कि उसे 2-2 महीने करके तीन बार समय दिया जा चुका हैं क्या एनएचएम ने कंपनी पर कोई पेनाल्टी लगाई हैं, या नोटिस जारी किया हैं ? इस सवाल पर रावत चुप्पी साध गए।









नियम के मुताबिक लगनी चाहिए पेनाल्टी





रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल यानी आरएफपी के मुताबिक टेंडर लेने वाली कंपनी जय अंबे इमरजेंसी सर्विस को 2 महीने में काम शुरु कर देना चाहिए था। आरएफपी के नियम कहते हैं कि अगर कंपनी 2 महीने बाद भी काम शुरु नहीं करती तो रोजाना प्रति एंबुलेंस 500 रुपए जुर्माना वसूला जाएगा। लेकिन एनएचएम के अधिकारी पेनाल्टी लगाना तो छोड़िए जय अंबे कंपनी को नोटिस तक जारी नहीं कर रहे। बीते 4 महीने में जुर्माना लगाया गया होता तो 2 हजार गाड़ियों पर 12 करोड़ रुपए तो सिर्फ पेनाल्टी ही निकलती। 









कंपनी ने माना, गाड़ियां कंडम हो चुकी हैं





वहीं जिगित्जा हेल्थ केयर लिमिटेड के ऑपरेशन हेड अमित पटकी का कहना हैं कि कुछ गाड़ियां ढ़ाई लाख किलोमीटर से ज्यादा चल चुकी हैं, इसलिए ऑफरोड हैं। गाड़ियां सरकारी हैं लिहाजा सरकार को ही बदलनी थी। लेकिन उससे पहले नया टेंडर जारी कर दिया गया है।









आधी गाड़ियों के साथ करेंगे शुरुआत





काम मिलने के 6 महीने बीत जाने के बाद भी जय अंबे इमरजेंसी सर्विस आधी तैयारी ही कर पाई है। जय अंबे के स्टेट हेड सुमित वासु का कहना हैं कि 1 मई से कंपनी टेकओवर कर लेगी। फिलहाल 600 एंबुलेंस और 600 जननी एक्सप्रेस सड़कों पर उतरेगी।



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