हमारा जीवन लंबा लेकिन सेहतमंद नहीं, इन 5 देशों में ज्यादा जीते हैं लोग

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हमारा जीवन लंबा लेकिन सेहतमंद नहीं, इन 5 देशों में ज्यादा जीते हैं लोग

समय के साथ लोगों ने अपनी जीवनशैली काफी बदली है। यही नतीजा है कि अब लोग ज्यादा जी रहे हैं, लेकिन उनका जीवन सेहतमंद नहीं है। लोगों को आरामदायक जीवनशैली से उपजी बीमारियों ने घेर लिया है। 40 से 50 साल की बीच के उम्र के लोग डायबिटीज, बीपी और हाइपरटेंशन जैसे रोग का शिकार हो रहे हैं। आज विश्व स्वास्थ्य दिवस पर लोगों की मौजूदा सेहत पर एक नजर डालते हैं...









50 साल में बढ़ी औसत उम्र





बीते 50 सालों में हमारी औसत उम्र करीब 22 साल बढ़ी। लेकिन उम्र ज्यादा होने से स्वस्थ जीवन में कोई खास इजाफा नहीं हुआ। अब हम पहले के मुकाबले ज्यादा बीमारियों के साथ जीने लगे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ताजा रिपोर्ट के हिसाब से बीमारों की देखभाल में तो भारत का प्रदर्शन पहले से अच्छा रहा है। लेकिन जीवन शैली से जुड़े डायबिटीज जैसे रोगों ने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। कभी पोलियो, खसरा, टीबी और एड्स से लड़ता रहा भारत आज डायबिटीज 'कैपिटल' बन गया है। 2025 तक सात करोड़ से ज्यादा लोग इससे ग्रसित होने के आसार हैं। 









हार्ट अटैक से सबसे ज्यादा मौत





पिछले 30 सालों में हार्ट पेशेंट की संख्या दोगुनी हुई है। हृदय रोग कभी 5वें पायदान पर था लेकिन अब यह देश में सबसे बड़ी बीमारी बन गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बीते तीन दशकों के दौरान लोगों की स्वास्थ्य क्षति में सबसे बड़ा योगदान हार्ट, सीओपीडी, डायबिटीज जैसे रोगों का है।









युवाओं की बिगड़ी जीवनशैली





खराब जीवनशैली की बीमारियों ने 35 साल तक की युवा आबादी को तेजी से अपनी गिरफ्त में लिया है और यह मौत का सबसे बड़ा कारण है। इसका असर कोरोना महामारी में साफ देखने को मिला, जिसमें जान गंवाने वाले आधे भारतीय पहले से ही डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसे रोगों के शिकार थे। हार्ट डिसीज और डायबिटीज के चलते इस दशक के अंत तक भारत को 6.2 खरब डॉलर का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ेगा। 









सरकारी व्यवस्था सुधारने की जरूरत





देश में अभी 70 फीसदी ओपीडी सेवाएं, 58 फीसदी भर्ती मरीज और 90 फीसदी दवाएं और जांच निजी हाथों में हैं। अच्छा इलाज आम आदमी की पहुंच से बाहर है। भारत में सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की जरूरत है। भारत जीडीपी का सिर्फ 1.5 फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जबकि जरूरत तीन फीसदी की है। यूरोपीय देश जीडीपी का आठ फीसदी तक खर्च करते हैं।









10 हजार लोगों पर सिर्फ 9 डॉक्टर





1970 में औसत उम्र 47.7 साल थी, जो 2020 में बढ़कर 69.6 साल हो गई है। डॉक्टर और नर्सों का अनुपात तुलनात्मक रूप से सुधरा है पर व्यापक रूप से हालात अभी कमजोर हैं। 10 हजार लोगों पर 9 डॉक्टर और 24 नर्सें हैं। इतने ही लोगों पर महज नौ फार्मासिस्ट हैं।









इन 5 देशों में सबसे स्वस्थ लोग 





मोनाको : इस देश में धरती पर सबसे ज्यादा औसत आयु है। पश्चिमी यूरोपीय सीमा पर हर इंसान की उम्र औसतन 89.4 साल है। इसके पीछे मामूली खर्च वाला सरकारी स्वास्थ्य तंत्र, ताजा खान-पान और कम तनावपूर्ण जीवन माना जाता है।





जापान : दुनिया में भूकंप और सुनामी जैसी आपदाओं से जूझने वाले जापान में औसत आयु 85.3 साल है। WHO कहता है कि जापानी 75 साल तक बिना किसी अक्षमता के स्वस्थ जीवन जीते हैं। दरअसल जापानियों के ज्यादा जीने के पीछे स्वस्थ भोजन, नियमित व्यायाम और अधिक वर्षों तक कामकाजी जीवन की अहम भूमिका रहती है।





सिंगापुर : यहां लोग औसतन 85.2 साल तक जीते हैं। रोगों की समय पर पहचान और रोकथाम ने जीवन पर काफी सार्थक प्रभाव डाला है, जिससे उनकी उम्र बढ़ी है।





सान मारिनो : यूरोपीय देश सान मारिनो में औसतन उम्र 83.3 साल दर्ज की गई है। यहां भी ताजा खान-पान, तनाव मुक्त जीवन और उच्च रोजगार दर लंबे समय तक स्वस्थ रहने में मददगार है।





आइसलैंड : यहां लोगों की औसतन उम्र 83.1 साल है। इसके पीछे की वजह है कि लोग ओमेगा-3 वाली मछलियों का भरपूर सेवन करते हैं, जो इन्हें हृदय रोगों से बचाता है। साथ ही आनुवांशिक कारकों का भी योगदान माना जाता है।



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