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गरीबी में पैदा हुआ था लड़का, पिता के दोस्त के कहने पर मेंडोलिन सीखा, लता को प्रभावित किया और बन गया LP की जोड़ी का लक्ष्मीकांत

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जो आपके मन-मस्तिष्क को ऊर्जा से भर दे, वो संगीत है। जो हर मौके पर आपका साथ दे, वो संगीत है। आज की कहानी भी संगीत के सितारे से जुड़ी है। इस संगीतकार जोड़ी ने कई शानदार गाने रचे। आज इसी जोड़ी के एक जोड़ीदार की कहानी सुना रहा हूं। इसी महीने उनका जन्मदिन भी रहता है। यूं कहूं कि एक हफ्ते पहले ही उनका बर्थडे निकला है। आज की कहानी को मैंने नाम दिया है- एक कमरे में बंद होने की कहानी... 

मैं जिनकी बात कर रहा हूं, उन्होंने जाने वालो जरा, मुड़के देखो मुझे, रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, मेरी उमर के नौजवानों जैसे गाने उन्होंने रचे थे। आज बात कर रहा हूं लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी में लक्ष्मीकांत जी की यानी लक्ष्मीकांत कुदलकर की। लक्ष्मीकांत जी का जन्म 3 नवंबर 1937 में हुआ था। जिस दिन उनका जन्म हुआ, उस दिन लक्ष्मी पूजा यानी दीवाली थी। जाहिर है कि लक्ष्मी पूजन के दिन उनका जन्म हुआ तो उनके पिताजी ने उनका नाम लक्ष्मीकांत ही रख दिया। उन्होंने मुंबई के विर्ले पार्ले की झुग्गियों में अपना जीवन बिताया। वह एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे।

लक्ष्मीकांत बहुत छोटे थे, जब उनके पिता का निधन हुआ। घर की माली हालत खराब थी, इसलिए वे अपनी शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाए। उनके पिता के दोस्त एक संगीतकार थे, तो उन्होंने लक्ष्मीकांत को सलाह दी कि वो और उनके भाई संगीत की तालीम लें। इसके बाद लक्ष्मीकांत ने मेंडोलिन बजाना सीखा और उनके भाई ने तबला। मशहूर मेंडोलिन प्लेयर हुसैन अली के पास उन्होंने दो साल बिताए। इसके बाद लक्ष्मीकांत ने शुरुआत में म्यूजिक कॉन्सर्ट्स आयोजित करना शुरू किया, ताकि वो कुछ पैसे कमा सकें और घर का गुजर बसर हो जाए.

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1940 के दशक में उन्होंने बाल मुकुंद इंदोरकर से मंडोलिन बजाने की आगे की तालीम ली। इसके साथ ही उन्होंने हुस्नलाल भगतराम फेम हुस्नलाल से वायलिन बजाना भी सीखा। संगीत की दुनिया में कदम रखने से पहले उन्होंने फिल्म जगत में बाल कलाकार के तौर पर भी काम किया। लेकिन नाम तो शायद उन्हें संगीतकार के रूप में ही कमाना था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1949 की फिल्म ‘भक्त पुंडलिक’ और 1950 में आई फिल्म ‘आंखें’ से की। लक्ष्मीकांत जब 10 साल के थे, जब एक बार उन्होंने लता मंगेशकर के कॉन्सर्ट के लिए मेंडोलिन बजाया था। लता दीदी उनसे काफी प्रभावित भी हुई थीं।

बाद में लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल ने एक बार जब लता मंगेशकर से मुलाकात की, तो उन्हें लक्ष्मीकांत की खराब हालत के बारे में पता चला। लता मंगेशकर ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को नौशाद, और एसडी बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकारों से मिलवाया, जिसके बाद उनकी जिंदगी की ट्रेन पटरी पर आई। इसके बाद लक्ष्मीकांत ने प्यारेलाल के साथ मिलकर शागिर्द, पत्थर के सनम, सुहाग, खिलौना और परवरिश जैसी कई फिल्मों के गानों को अपने संगीत से सजाया। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने 1963 से लेकर 1998 तक साथ में काम किया और 635 फिल्मों में म्यूजिक दिया।

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने पहली बार राज कपूर के साथ 1973 में आई बॉबी के लिए काम किया। एक इंटरव्यू में लक्ष्मीकांत ने बताया था कि जब उन्हें पहली बार राज कपूर के साथ ‘बॉबी’ में काम करने का मौका मिला और कैसे उन्हें इस फिल्म के गाने ‘हम तुम एक कमरे में बंद हों…’ का आइडिया आया?

लक्ष्मीकांत जी ने बताया था कि बॉबी में म्यूजिक कंपोज करना हमारे लिए एक बड़ा थ्रिल था। आनंद बक्शी साहब को गानों के लिरिक्स लिखने थे। हमने कभी राज कपूर के साथ काम नहीं किया था, पर हम ये जानते थे कि उन्हें कौनसा राग पसंद है। उदाहरण के तौर पर, उनका राग भैरवी से गहरा जुड़ाव था। कई सालों से वह शंकर-जयकिशन के साथ काम कर रहे थे और उनके कई गाने राग भैरवी पर आधारित होते थे, तो ये चीज हमारे दिमाग में थी।

लक्ष्मीकांत का मुंबई के जुहू में एक घर है। जिसका नाम है पारसमणि। ये उस वक्त की बात है जब लक्ष्मीकांत जी का घर बन रहा था। इसी घर में लक्ष्मीकांत जी ने एक गाने की कहानी इंटरव्यू में नसरीन मुन्नी को बताई थी। उन्होंने कहा- उन दिनों यह घर बन रहा था। अक्सर ऐसा हुआ करता था कि सुबह 10 बजे मैं यहां का काम देखने के लिए आया करता था। एक दिन आनंद बक्शी साहब भी मेरे साथ आए। काम के चक्कर में यह पता करना मुश्किल था कि कौन सा कमरा कहां है। मैंने उन्हें एक कमरे में छोड़ा और कहीं चला गया। आनंद बख्शी ने मुझे बुलाया, क्योंकि वह मुझे नहीं ढूंढ पा रहे थे। जब मैं वापस उनके पास गया तो उन्होंने पूछा- ‘तुम क्या बना रहे हो? ये भूल भुलैया की तरह है। अगर कोई एक कमरे में बंद हो जाए, तो कोई भी उसे दोबारा ढूंढ नहीं पाएगा।’ मैंने उनसे कहा- क्या हम इस पर कुछ बना सकते हैं? उन्होंने मुझसे पूछा- तुम कहना क्या चाहते हो? तब मैंने उनसे कहा- कोई कमरे में बंद हो जाए और चाबी खो जाए। हमने सोचा कि हम इस आइडिया को गाने में लगा सकते हैं। बख्शी को आइडिया जम गया और बन गया गाना...हम तुम कमरे में बंद हों और चाबी खो जाए। बस यही थी आज की कहानी...

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