Indore High Court bench के एक फैसले को लेकर The Sootr की मुहिम का असर अब दिख रहा है। rape accused की सजा कम करने का है विरोध
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चार साल की मासूम के दुष्कर्मी की सजा कम करने के कोर्ट के फैसले पर रंग लाई द सूत्र की मुहिम, सुप्रीम कोर्ट में जल्द दायर होगी SLP

Sunil Shukla
26,अक्तूबर 2022, (अपडेटेड 26,अक्तूबर 2022 07:58 PM IST)

BHOPAL. इंदौर में चार साल की मासूम के साथ दुष्कर्म करने वाले अपराधी की अपील पर उसकी आजीवन जेल की सजा कम करने के हाईकोर्ट बेंच के फैसले के खिलाफ प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने का फैसला लिया है। बता दें कि इस मामले में 23 अक्टूबर को हाईकोर्ट की इंदौर बेंच का फैसला सामने आने के बाद द सूत्र ने इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया था। इस मामले में महिला अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करने वाले जन संगठनों और कानूनविदों ने द सूत्र के माध्यम से आवाज उठाते हुए सरकार से इस बेहद संवेदनशील फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में यथाशीघ्र एसएलपी यानी स्पेशल लीव पिटीशन (विशेष अनुमति याचिका) दायर करने का आग्रह किया था, ताकि एक अबोध बच्ची के खिलाफ जघन्य वारदात को अंजाम देने वाला अपराधी जेल से बाहर न आ पाए। 

इंदौर बेंच के फैसले पर छिड़ी बहस 

हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के फैसले पर छिड़ी बहस और सवालों पर द सूत्र से चर्चा करते हुए हाईकोर्ट जबलपुर में एडवोकेट जनरल प्रशांत सिंह ने बताया कि फैसले का अध्ययन करने के बाद सरकार ने इस मामले सुप्रीम कोर्ट में जल्द ही एसएलपी दायर करने का फैसला किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इंदौर में एक बच्ची के साथ दुष्कर्म के मामले में आजीवन जेल की सजा काट रहे रामू उर्फ रामसिंह की क्रिमिनल अपील पर हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के फैसले में अपराधी की करतूत को अमाननीय और क्रूर माना गया है लेकिन उसकी सजा घटाकर 20 साल करने के आधार में विरोधाभास है। बता दें कि हाईकोर्ट के 23 अक्टूबर के फैसले में लिखा गया कि आरोपी पर्याप्त दयालु था, उसने पीड़िता को जिंदा छोड़ दिया, इसलिए उसकी सजा अधिकतम 20 साल की जाती है। इस फैसले से जेल में बंद रामसिंह के जल्द बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है। 


मप्र स्टेट बार काउंसिल अध्यक्ष ने किया समर्थन

इस मामले को लेकर कानून के जानकारों का एक वर्ग हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के फैसले को सही ठहरा रहा है। उनका कहना है कि किसी भी मामले में कोर्ट पीड़ित और आरोपी से जुड़े सभी पहलुओं और पक्षों पर विचार करने के बाद ही फैसला देती है। मप्र स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष एडवोकेट विजय चौधरी का कहना है कि उन्होंने कोर्ट के फैसले की कॉपी देखी है। दंड के मामले में कोई भी कोर्ट विक्टिम और मुजरिम दोनों के पहलुओं पर विचार करती है। मेरी राय में यह फैसला उचित है। कोर्ट को ये भी पावर हैं कि वो स्पष्ट कर दे कि दोषी कितने साल तक जेल में रहेगा। 

याचिका दायर करने जनमत की तैयारी 

बता दें कि हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के इस फैसले को लेकर समाज और कानून जगत में गंभीर बहस छिड़ गई है। इस फैसले से प्रदेश सरकार के उस कानून के लिए भी चुनौती खड़ी हो गई है जिसमें महिलाओं के खिलाफ दुष्कर्म जैसे संगीन जुर्म के आरोपियों को जीवन की आखिरी सांस तक जेल में बंद रखने का प्रावधान किया गया है। कानून के कई जानकार और महिला अधिकारों की आवाज उठाने वाले संगठन हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के लिए जनमत तैयार करने में जुट गए हैं।

दो महीने पहले ही नया कानून लागू हुआ

 उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने करीब दो महीने पहले ही उम्रकैद के कानून में बदलाव कर एक नया कानून लागू किया है कि अब बेटियों, महिलाओं से दुष्कर्म के बाद हत्या करने वाले, ड्यूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारियों  के हत्यारे, आतंकी गतिविधियों में शामिल रहने वाले और नशे का कारोबार करने वाले अपराधी अब जेल से कभी बाहर नहीं निकल पाएंगे। इससे पहले प्रदेश में उम्रकैद की सजा 14 से 20 साल तक होती थी। ये सजा पूरी होने के बाद कैदी के व्यवहार को देखकर 15वें से लेकर 20वें साल के बीच जेल से रिहाई हो जाती थी।  लेकिन नया कानून लागू होने से ऐसा नहीं होगा। अब जघन्य श्रेणी के अपराध के कैदियों को जीवन की अंतिम सांस तक जेल में ही रहना होगा।

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