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अंगदान महादान: सभी धर्म इस पर राजी; मुस्लिमों में अंग लेना कुबूल, देना नहीं!

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अंगदान महादान: सभी धर्म इस पर राजी; मुस्लिमों में अंग लेना कुबूल, देना नहीं!

भोपाल। दुनिया में अंगदान यानी ऑर्गन डोनेशन (Organ Donation) को जीवन का सबसे पवित्र और महादान बताया गया है। सूत्रधार की कवर स्टोरी में आज हम आपको अंगदान से जुड़ी कुछ रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी बताएंगे। प्रदेश में सबसे ज्यादा अंगदान, नेत्रदान और देहदान (body donation) इंदौर में होते हैं। इसके बाद भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर का नंबर आता है। अंगदान के मामले में हिंदू, जैन, सिख और सिंधी समाज के पुरुष, महिलाओं से कहीं आगे हैं। लेकिन क्या आपको मालूम है कि मुस्लिम धर्म (Muslims) मानने वाले लोग जीवन के लिए जरूरत पड़ने पर किसी से भी अंग ले तो लेते हैं, लेकिन अपना अंगदान नहीं (Muslim not donate Organs) करते। आइए आपको बताते हैं आखिर मुस्लिम समाज के लोग अंगदान क्यों नहीं करते और इस मामले में मुस्लिम स्कॉलर्स की क्या राय है...





देश और मप्र में अंगदान का प्रतिशत अभी बहुत कम: मुस्लिमों के अंगदान ना करने की वजह जानने से पहले नजर डालते हैं प्रदेश में अंगदान की स्थिति पर। मध्य प्रदेश में दूसरों की जीवनरक्षा के लिए अंगदान या देहदान वालों की संख्या पहले के मुकाबले बढ़ी है। लेकिन अभी यह अंगदान की जरूरत के मुकाबले बहुत कम है। वैसे भी अंगदान के मामले में दूसरे देशों की तुलना में हमारा देश और अन्य प्रदेशों की तुलना में हमारा प्रदेश बहुत पीछे है। इसकी बड़ी वजह जन जागरूकता की कमी और धार्मिक रुकावटें भी हैं। भारत में हर दस लाख में सिर्फ 0.08 डोनर ही अंगदान (organ donation in india) करते हैं। जबकि, अमेरिका, यूके, जर्मनी में 10 लाख में 30 डोनर और सिंगापुर, स्पेन में हर 10 लाख में 40 व्यक्ति अंगदान (organ donation data) करते हैं।





मनुष्य के 40 अंग किए जा सकते हैं ट्रांसप्लांट, मप्र में अभी सिर्फ 6: मध्य प्रदेश में अभी इंदौर और भोपाल में ही अंगदान के लिए जरूरी मेडिकल सुविधाएं मौजूद हैं। एमपी ऑथराइजेशन कमेटी ऑफ ऑर्गन डोनेशन के मेंबर डॉ. राकेश भार्गव के मुताबिक, मानव शरीर के 40 ऑर्गन किसी दूसरे व्यक्ति का जीवन बचाने के लिए ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं। फिलहाल एमपी में किडनी, लिवर, हार्ट, कॉर्निया, आंखें और स्किन ही ट्रांसप्लांट (organ transplant) किए जा रहे हैं। समाज में अंगदान का प्रतिशत बढ़ना क्यों जरूरी है, यह इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रदेश में कम से कम 5 हजार लोग ऐसे हैं जो किडनी खराब होने के कारण सालों से डायलिसिस पर हैं। इन सभी को सामान्य जीवन जीने के लिए किडनी की सख्त जरूरत है। इसी तरह करीब 500 मरीज ऐसे हैं, जिन्हें लिवर की जरूरत है।





प्रदेश में अब तक हुए 53 ऑर्गन डोनेशन: प्रदेश में सबसे पहला ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन 7 अक्टूबर 2015 को इंदौर में हुआ था। भोपाल में 14 अप्रैल 2016 को पहला ऑर्गन ट्रांसप्लांट किया गया। इंदौर में ऑर्गन ट्रांसप्लांट (mp organ transplant) के अब तक 41 और भोपाल में 13 ऑपरेशन किए जा चुके हैं। इंदौर में हुए ऑर्गन डोनेशन के 41 मामलों में से 28 मेल बॉडी, वहीं भोपाल में ऑर्गन डोनेशन के 13 में से 10 मेल बॉडी से किए गए। प्रदेश में फीमेल बॉडी से अब तक 16 ऑर्गन डोनेशन हुए हैं।

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इंदौर में 2015 से इन्होंने अंगदान किया: शशांक कोराने, हर्षिता कौशल, वीना परयानी, तारादेवी नेमनानी, शिरोमणी खजांची, संजना नागर, नेहा चौधरी, हर्षिता सिंह कुशवाह, अर्चना जोशी, अनामिका जैन, श्रद्धा देवी मौर्य, रामेश्वर खेड़े, विवेक नायर, विनय बानिक, सुनील पेरुनिया, सुमित जैन, शुभम अचेदिया, संजय कुकडेश्वर, रमेश असरानी, रेखावचंद जैन, प्रियंक गुप्ता, पप्पू डाबर, लालचंद किंगरानी, कचारा भाई, गौरव जैन, गोपाल तेली, दुर्गेश मालवीय, दीपक डकेता, बाबूलाल सूर्यवंशी, अशोक तडवेचा, अशोक जैन, अरविंद वेशानी, प्रत्यूश व्यास, चंद्रपाल सिंह राजावत, अंजली तलरेजा, सोनिया चौहान, संगीता पाटिल, विश्वास दोषी, राजेंद्र भागवत, मास्टर दर्शन गुर्जर। यदि आप इंदौर में अंगदान करने वाले 41 नामों पर नजर डालेंगे तो इनमें कोई भी मुस्लिम नहीं है।





भोपाल में अंगदान करने वालों की सूची: अमित भार्गव, अशोक पाटिल, श्रद्धा रघुवंशी, विष्णु कुमार, अजय शिर्के, शशांक कोराने, एपी श्रीवास्तव, राजेंद्र सिंह राजपूत, अतुल लोखंडे, विमला अजमेरा, तापसी चक्रवती, केदार प्रदसाद द्विवेदी, सुनील देवकर। इसी तरह भोपाल में अब तक अंगदान करने वालों में भी एक भी मुस्लिम नहीं है। 





इंदौर में सबसे ज्यादा नेत्रदान: सरकारी महकमे के साथ सामाजिक संस्थाओं की सक्रियता की वजह से इंदौर में सबसे ज्यादा नेत्रदान (eye donation in indore) होते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता जीतू बगानी बताते हैं कि बीते 10 साल में इंदौर में 12 हजार से ज्यादा नेत्रदान हुए। देश में सबसे ज्यादा नेत्रदान करने में इंदौर ने रिकॉर्ड (indore eye donation record) बनाया है। वहीं भोपाल में बीते तीन साल में 44 और जबलपुर में बीते 5 साल में 42 नेत्रदान हुए हैं। 

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प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेजों में होता हैं देहदान: मेडिकल स्टूडेंट्स की पढ़ाई के लिए ह्यूमन बॉडी का इस्तेमाल किया जाता हैं। लिहाजा सभी मेडिकल कॉलेजों में देहदान होता है। बीते 12 साल में भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज (Gandhi medical college) में 35 देहदान हुए हैं। वहीं, जबलपुर में बीते दो साल में 150 से ज्यादा लोगों ने देहदान के इच्छापत्र कलेक्ट्रेट में जमा किए हैं। 





सामर्थ्य हैं तो दान करना चाहिए: रामकृष्ण मिशन भोपाल (ramakrishna mission bhopal) के सदस्य स्वामी कृष्ण ध्यानानंद का कहना हैं कि दान तो हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। दान देने से आत्मा का विकास होता है। शास्त्रों में दान के लिए मार्गदर्शन दिया गया है। हम जो कुछ अर्जन करते हैं, उसका एक चौथाई समाज को दान देना चाहिए। धर्म हमें किसी भी तरह के दान से नहीं रोकता, चाहे वो अन्न दान हो या अंगदान।





अंगदान से परहेज क्यों: राजधानी भोपाल में ऑर्गन डोनेशन को बढ़ावा देने के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था किरण फाउंडेशन के सचिव डॉ. राकेश भार्गव बताते हैं कि अंगदान को लेकर समाज में पहले की अपेक्षा जागरूकता तो बढ़ी है, लेकिन कुछ समुदाय विशेष के लोगों को समझाना नामुमकिन लगता है। सऊदी अरब में भी लोग अंगदान करते हैं। वहां के स्कॉलर्स लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित करते हैं। जब हम पैदा होते हैं तो औसतन करीब 3 किलो के होते हैं और जब जीवन की सांसें थमती हैं तो वजन लगभग 70 किलो का होता हैं। जब शरीर का विकास धरती पर ही होता है तो फिर यहां अंगदान से परहेज क्यों करना चाहिए।

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लोग खुदा के हुक्म का गलत अर्थ निकालते हैं: मुस्लिम मामलों के जानकार और ऑल इंडिया मुस्लिम त्योहार कमेटी के अध्यक्ष औसाफ शाहमीर खुर्रम कहते हैं कि दुनिया के सभी धर्मों में लोगों की मदद का हुक्म दिया गया है, लेकिन कुछ लोग समाज को गुमराह करते हैं। कुरान में एक ऑर्डर जरूर है कि जैसा तुम्हें इस जहां में जैसा भेजा गया है, वैसा ही वापस जाना है। इस ऑर्डर का मतलब है कि हमें यहां से अल्लाह के पास निष्पाप जाना है। जमीन पर जो भी पाप हमने किए हैं, मरने से पहले उनकी माफी मांग लेनी हैं। लोग इस ऑर्डर का गलत मतलब निकाल लेते हैं। शारीरिक तौर पर हमें जैसा भेजा गया है, ठीक वैसे जाना संभव ही नहीं है। कई बार एक्सीडेंट या किसी गंभीर बीमारी की वजह से भी जान बचाने के लिए लोगों के अंग निकालने पड़ते हैं।





(भोपाल से अंकुश मौर्य, इंदौर से योगेश राठौर, जबलपुर से ओपी नेमा की रिपोर्ट।)



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