पंकज स्वामी, JABALPUR. जबलपुर में अगर चाट का स्वाद लेना है तो जुबान पर एक ही नाम आता है, प्रकाश चाट। चाट को जबलपुर की पहचान और ब्रांड बनाने वाले जयप्रकाश गुप्ता ने 5 दिसंबर को दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन वे अपने पीछे छोड़ गए हैं, चाट का ऐसा जायका कि आने वाली कई पीढ़ियां इसका स्वाद लेती रहेंगी।
प्रकाश चाट 3 पीढ़ियों की पसंद
शास्त्री ब्रिज चौराहे के पास प्रकाश चाट। ये 3 पीढ़ियों की लगभग 52 सालों तक पसंद बनी रही। दादा, पिता, बेटे, तीन पीढ़ियां परिवार सहित सप्ताह या महीने में एक बार प्रकाश चाट के चटकारे लेने एक बार जरूर उनके ठेले पर पहुंचते थे।
ठेले से ही बनी प्रकाश चाट की पहचान
मॉडल रोड बनने से पहले जयप्रकाश का चाट का ठेला पुराने मोटर स्टैंड से शास्त्री ब्रिज चौराहा मार्ग में नाले के ऊपर लकड़ी के पट्टे पर रोज शाम को खड़ा होता था। मॉडल रोड बनने के बाद उनका ठेला विपरीत दिशा में इम्पीरियल होटल के नीचे पक्की दुकान में तो आ गया लेकिन ठेला प्रकाश चाट की पहचान बना रहा। इस ठेले से ही जयप्रकाश की पहचान बनी थी। ठेला उनके लिए शुभ था इसलिए दुकान होने के बावजूद उनके चाट का कारोबार ठेले से ही संचालित होता रहा।
प्रकाश चाट की कई हस्तियां मुरीद
जबलपुर में चाट की कई प्रसिद्ध ठेले या दुकानें हैं लेकिन जो बात प्रकाश की चाट की है, वो कहीं नहीं मिलती। जयप्रकाश की चाट की कई हस्तियां मुरीद रहीं। इनमें शरद यादव और रघुवीर यादव जैसे लोग भी हैं। राजनीति, साहित्य, चिकित्सा, पत्रकारिता सभी क्षेत्र के लोग प्रकाश के ठेले पर खड़े होकर चाट खाते रहे हैं। जबलपुर से बाहर नौकरी या व्यवसाय करने वाले जब भी जबलपुर आते तो वे एक बार प्रकाश की चाट खाने जरूर जाते हैं।
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प्रकाश चाट में नहीं होता लहसुन-प्याज का इस्तेमाल
प्रकाश चाट उत्तर प्रदेश के पैटर्न पर बनती है। इसमें प्याज और लहसून नहीं रहता। इस वजह से जबलपुर के जैन और वैष्णव ग्राहक भी यहां की चाट खाने के शौकीन हैं। प्रकाश चाट की एक खूबी ये रही कि इसका स्वाद पिछले 52 सालों से एक जैसा है। उसमें कोई बदलाव नहीं आया है। शायद इसलिए प्रकाश चाट के चर्चे दूर-दूर तक हैं।