शेख रेहान, KHNADWA. मिशन-2023 की तैयारियों में जुटी कांग्रेस ने संगठनात्मक ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन किए हैं। खंडवा में भी शहर और जिलाध्यक्ष बदले गए हैं। हालांकि यहां एक बार फिर अरुण यादव गुट के चेहरे ही पद पाने में सफल हुए हैं और इसी के साथ कांग्रेस के कुनबे में महाभारत शुरू हो गई है। अरुण यादव को घेरने में कांग्रेसी ही जुट गए हैं। उन पर गंभीर आरोप भी लग रहे हैं।
अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई है
खंडवा में कांग्रेस का ग्रामीण अध्यक्ष एडवोकेट मनोज भरतकर और शहर अध्यक्ष मोहन ढाकसे को बनाया गया है। ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी द्वारा नियुक्त किए गए ये दोनों अध्यक्ष, अरुण यादव के गुट के हैं। नामों की घोषणा होने के बाद से ही कांग्रेस का कलह सामने आने लगा। अब ये अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गया है। विधानसभा चुनाव-2018 में कांग्रेस के टिकट पर खंडवा से चुनाव लड़ने वाले कमलनाथ गुट के कुंदन मालवीय ने मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से इन नियुक्तियों पर आक्रोश जाहिर किया है। उन्होंने पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि आरएसएस और भाजपा की विचारधारा वाले मनोज भरतकर को अध्यक्ष बनाकर वे क्या साबित करना चाहते हैं। बकौल कुंदन मालवीय, इस फैसले से पार्टी के वरिष्ठ और कार्यकर्ता नाराज हैं।
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वहीं कांग्रेस ग्रामीण जिलाध्यक्ष भरतकर ने कहा- विचारधारा बदलती रहती है
कांग्रेस ग्रामीण जिला अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति होने के बाद पहली बार कांग्रेस के जिला कार्यालय गांधी भवन पहुंचे मनोज भरतकर ने संगठन का आभार जताया तो वहीं आरएसएस और भाजपा से जुड़े होने के आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि विचारधारा बदलती रहती है। अब मेरी विचारधारा कांग्रेस की है। मैंने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव भाजपा के प्रत्याशी को हराकर जीता है। राजनीति में मेरे आदर्श अरुण यादव हैं। हमारी कोशिश होगी कि हम पार्टी को सशक्त करें और गुटबाजी को खत्म करें। विधानसभा चुनाव- 2023 में जीत हासिल करना हमारी प्राथमिकता में है।
यह कलह पार्टी की मिशन-2023 की तैयारियों पर सवाल खड़े कर रहा है
कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव के बाद जिस तरह का कलह सामने आया है, वह पार्टी की मिशन-2023 की तैयारियों को झटका देते हुए नजर आ रहा है। अरुण यादव खंडवा से लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं। पिछली बार उन्होंने एनवक्त पर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। इस बार भी उन पर आरोप हैं कि वो रण छोड़ देंगे। इस पूरे मसले ने कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी को एक बार फिर से बाहर ला दिया है।