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जानिए बीजेपी के किस फरमान से जिलाध्यक्षों में मचा हड़कंप, क्या मंत्रियों का होगा अगला नंबर !

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Rahul Garhwal
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जानिए बीजेपी के किस फरमान से जिलाध्यक्षों में मचा हड़कंप, क्या मंत्रियों का होगा अगला नंबर !

हरीश दिवेकर, BHOPAL. बीजेपी के कार्यकर्ता पहले से ही उदासीन माने जा रहे थे। अब पार्टी के एक फरमान ने उनकी फिक्र और बढ़ा दी है। ये ऐसा फरमान है जिसे सुनने के बाद जिलास्तर के कई नेताओं में खलबली मची हुई है। मुश्किल ये है कि पार्टी  का ये फरमान नहीं माना तो उनका पद और रुतबा दोनों छीना जा सकता है। फरमान अभी जिलाध्यक्षों के लिए है जो कभी मंत्रियों तक पहुंच जाए, ये अंदेशा सबको बना हुआ है। ऐसा हुआ तो शिवराज कैबिनेट के कई मंत्रियों की मुश्किलें भी बढ़ जाएंगी।





न्यूज स्ट्राइक देखें..









जंग सिर्फ चुनाव मैदान में नहीं, वर्चुअल वर्ल्ड में भी होगी

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मध्यप्रदेश विधानसभा की चुनावी जंग इस बार सिर्फ चुनावी मैदान में नहीं होगी। इसके लिए एक मैदान इंटरनेट की दुनिया में भी तैयार होगा। चुनाव सालभर बाद है लेकिन वर्चुअल वर्ल्ड में ये जंग बस शुरू होने को है। सिर्फ जंग ही नहीं है ये एक पैमाना भी ये आंकलन करने का कि पार्टी के पदाधिकारी अपने अपने जिले कितने सक्रिय हैं। बीजेपी ने तो अपने जिलाध्यक्षों को सख्त ताकीद भी कर दिया है कि इस जंग में पिछड़े तो चुनाव की जंग में दौड़ने लायक भी नहीं बचेंगे। खबर है कि इस फरमान ने जिलाध्यक्षों की नींद उड़ा दी है। मुश्किल है कि जिस दुनिया के तार ही नहीं उसके जरिए वोटर्स से संपर्कों के तार जोड़ना सबके बस की बात नहीं है।





वोट बैंक के लिए बीजेपी की नई रणनीति





बात सिर्फ वोटर्स की नहीं यूथ कनेक्ट की भी है। जिसके लिए अब बीजेपी ने नई रणनीति तैयार की है। जाहिर है जो भी रणनीति होगी उसे मुकम्मल करने की जिम्मेदारी पार्टी के दूसरे पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं पर ही होगी। ये जिम्मेदारी भी उन्हीं के सुपुर्द हुई है। खासतौर से जिलाध्यक्षों के। जिन्हें ये जिम्मेदारी दी गई है कि वो अपने अपने जिलों में ज्यादा से ज्यादा लोगों से जुड़ें। ये जुड़ाव न सिर्फ जमीनी स्तर पर होगा बल्कि सभी पदाधिकारियों को वर्चुअली भी ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपना फॉलोअर बनाना होगा। यही वर्चुअल दुनिया इस बार उनकी काबिलियत तय करेगी। प्रदेश की जनता में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए बीजेपी ने यही नई रणनीति बनाई है कि पार्टी के हर जिलाध्यक्ष को फेसबुक पर कम से कम 1 लाख फॉलोअर्स बनाने होंगे। इसका मकसद है कि सोशल मीडिया पर उनके नेता ज्यादा से ज्यादा सक्रिय हों। आम लोगों के अलावा पार्टी कार्यकर्ताओं को जिलाध्यक्ष को फॉलो करना जरूरी होगा।

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फॉलोअर्स नहीं तो पद पर खतरा





कुछ ही दिन पहले पार्टी के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव ने ये ताकीद कर दिया है कि जिस जिलाध्यक्ष के फेसबुक पर 1 लाख और ट्विटर पर दस हजार फॉलोअर्स नहीं हैं, वह पद पर रहने लायक नहीं माना जाएगा। सिर्फ फेसबुक पर ही नहीं जिलाध्यक्षों को ट्विटर पर भी अपने फॉलोअर्स की संख्या बढ़ानी है। ट्विटर की तासीर को समझते हुए यहां सिर्फ 10 हजार फॉलोअर्स बढ़ाने की शर्त रखी गई है। लेकिन ये भी सारे जिलाध्यक्षों के लिए पीस ऑफ केक नहीं है। प्रदेश प्रभारी के इस फरमान के बाद से कई जिलाध्यक्षों की नींद उड़ी हुई है। फॉलोअर्स कैसे बढ़ेंगे उसके लिए क्या करना होगा। ये तो बाद की बात है। फिलहाल तो मुसीबत ये है ट्विटर और फेसबुक पर सक्रिय कैसे होंगे ये तो समझ में आए।





क्यों परेशान हैं जिलाध्यक्ष

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जिलाध्यक्षों की मुश्किल ये है कि उनमें से कईयों ने कभी डिजिटल मीडियम में ज्यादा रुचि ली ही नहीं। कुछ टेक्नोसेवी नहीं हैं और कुछ इस प्लेटफॉर्म को गैरजरूरी समझते रहे। कुछ दिए हुए टारगेट से इतनी दूर हैं कि पद बचने तक टारगेट छू भी पाएंगे या नहीं इसी बात को लेकर परेशान हैं।





जिलाध्यक्ष ही नहीं, कई मंत्रियों का भी सोशल मीडिया पर बुरा हाल





जिलाध्यक्षों का हाल तो बुरा है ही मंत्रियों की बात करें तो वहां भी सबके हालात सोशल मीडिया पर कुछ खास अच्छे नहीं है। खासतौर से सीएम शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले फॉलोअर्स के मामले में मंत्री काफी दूर हैं। फेसबुक पर तमाम जिलाध्यक्षों को कम से कम 1 लाख फॉलोअर्स होने का टारगेट दिया गया है। ये टारगेट सिर्फ जिले के नेता के लिए है। अगर यही फरमान मंत्रियों  के लिए जारी हो जाए तो टारगेट कितना होगा। ये सोच कर ही नेताओं के पसीने छूट रहे हैं। क्योंकि फेसबुक पर बढ़त बनाना और उससे पहले सलीके से सक्रिय होना सबके बस की बात नहीं है। सिवाय सीएम शिवराज सिंह चौहान के ऐसा कोई मंत्री नहीं है जो फेसबुक पर जबरदस्त फॉलोइंग रखता हो।

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सीएम के वेरिफायड फेसबुक अकाउंट पर उनके 48 लाख फॉलोअर्स हैं। इसी वेरिफायड अकाउंट पर उनके कुछ चुनिंदा मंत्रियों का हाल देखिए।





नरोत्तम मिश्रा





शिवराज कैबिनेट के सबसे एक्टिव मंत्री नरोत्तम मिश्रा के फेसबुक पर 1 लाख 59 हजार फॉलोअर्स हैं।

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गोपाल भार्गव





फेसबुक पर गोपाल भार्गव के नाम से कोई वेरिफाइड अकाउंट नहीं है। उनके नाम से अलग-अलग अकाउंट मौजूद हैं। एक अकाउंट में उनके 95 हजार और दूसरे में 35 हजार फॉलोअर्स हैं।





भूपेंद्र सिंह

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भूपेंद्र सिंह का भी फेसबुक पर कोई वेरिफाइड अकाउंट नहीं है। उनके नाम से पब्लिक ग्रुप जरूर है जिसे कोई भी ज्वॉइन कर सकता है।





तुलसी सिलावट





तुलसी सिलावट के फेसबुक पर 2 लाख 51 हजार फॉलोअर्स हैं। अकाउंट भी वेरिफाइड है।





गोविंद सिंह राजपूत





गोविंद सिंह राजपूत के 1 लाख 18 हजार फॉलोअर्स हैं। अकाउंट भी वेरिफाइड है।





बिसाहू लाल सिंह





बिसाहू लाल सिंह के फेसबुक पर सिर्फ 13 हजार फॉलोअर्स हैं।





यशोधरा राजे सिंधिया





यशोधरा राजे सिंधिया भी 1 लाख का आंकड़ा नहीं छू सकीं, उनके फेसबुक पर 91 हजार फॉलोअर्स हैं।





जगदीश देवड़ा





शिवराज कैबिनेट के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा भी फेसबुक पर सक्रिय नजर नहीं आए।





कुंवर विजय शाह





कुंवर विजय शाह का भी वेरिफाइड अकाउंट मौजूद नहीं है। उनके नाम से 2-3 अलग-अलग अकाउंट हैं, एक भी वेरिफाइड नहीं है।





रामखेलावन पटेल





रामखेलावन पटेल के फेसबुक पर 24 हजार फॉलोअर्स हैं।





हरदीप सिंह डंग





हरदीप सिंह डंग के फेसबुक पर 24 हजार फॉलोअर्स हैं।





जिलाध्यक्षों के लिए आसान नहीं होगी डगर





ये हाल शिवराज कैबिनेट के चंद मंत्रियों का है। इसे देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब सोशल मीडिया पर मंत्री ही लखटकिया नहीं हो सके तो ये काम जिलाध्यक्षों के लिए कैसे आसान हो सकेगा। जिलाध्यक्ष भले ही इसे जी का जंजाल मान लें। लेकिन इस फरमान से पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता। क्योंकि समय के साथ चलने के लिए बीजेपी सोशल मीडिया पर पकड़ मजबूत करने को जरूरी मान चुकी है। बीजेपी ही क्यों कांग्रेस भी सोशल मीडिया पर तेजी से पैर पसार रही है। नए और पुराने वोटर्स को जोड़ने के लिए ये अब जरूरी कवायद भी हो ही चुकी है।





जिलाध्यक्षों में हड़कंप





इस नए फरमान के पालन के लिए हर जिलाध्यक्ष के लिए जरूरी होगा कि वो अपनी सोशल मीडिया टीम तैयार करे और उस पर एक्टिव रहे। सोशल मीडिया को समझना और उस पर एक्टिव बने रहना हर किसी के बस की बात नहीं है। यही वजह है कि जिलाध्यक्षों में हड़कंप है। फिक्र ये है कि अगर जमीनी स्तर पर अच्छे संपर्क हुए लेकिन सोशल मीडिया पर बात नहीं बनी तो फिर पार्टी का क्या फैसला होगा। वैसे भी बीजेपी कुछ जिलाध्यक्षों को बदलने का फैसला पहले ही ले चुकी है, रही सही कसर सोशल मीडिया वाला फरमान पूरी कर देगा। क्या इस सख्ती से निचले स्तर के नेताओं में तेजी आएगी या पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।



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