BHOPAL: बीजेपी ने गाइडलाइन नहीं तोड़ी, कांग्रेस में गाइडलाइन हुई साइडलाइन

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Vijay Mandge
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BHOPAL: बीजेपी ने गाइडलाइन नहीं तोड़ी, कांग्रेस में गाइडलाइन हुई साइडलाइन

भोपाल: भारतीय जनता पार्टी ने सभी 16 नगर निगम के लिए मेयर पद के उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है, कांग्रेस की तरफ से रतलाम नगर निगम के मेयर पद के उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया गया है। उम्मीदवारों को चुनने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने गाइडलाइन बनाई थी। बीजेपी ने अपनी गाइडलाइन को पूरी तरह से फॉलो किया जबकि कांग्रेस ऐसा करने में नाकाम साबित हुई है। यहां सवाल उठ रहे हैं कि  क्या बीजेपी को गाइडलाइन फॉलो करना भारी पड़ने वाला है या फिर बीजेपी उस रास्ते पर हैं कि बड़ी जंग जीतने के लिए दो कदम पीछे हटना भी पड़े तो हटना चाहिए





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11 जून 2022 को बीजेपी की पहली बैठक





इसी तारीख को बीजेपी ने पहली बार मेयर पद के प्रत्याशियों को चुनने के लिए बैठक की थी। बीजेपी संगठन ने कई सारें नाम तय किए थे लेकिन  ये नाम एक एक कर गिरते चले गए। इसके बाद दूसरे दिन 12 जून को भी बीजेपी ने प्रत्याशी चयन के लिए मैराथन बैठक की लेकिन उम्मीदवारों के नामों पर आम सहमति नहीं बन सकी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिल्ली रवाना हुए और टिकट फाइनल करने में आ रही दिक्कतों से आलाकमान को अवगत कराया, मगर बात नहीं बनीं। सूत्र बताते हैं कि आलाकमान ने दो टूक लहजे में कह दिया कि जो गाइडलाइन बनाई गई है उसे ही फॉलो किया जाए।





राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तय की थी गाइडलाइन





 पिछले दिनों नड्डा जब भोपाल के दौरे पर आए थे तो साफ साफ शब्दों में कह गए थे कि 











  1. विधायक को टिकट नहीं दिया जाएगा



  •  पार्टी नेता के परिजन को भी टिकट नहीं मिलेगा


  • उम्रदराज नेताओं को टिकट से दूर रखा जाए






  • इन तीन क्राइटेरिया को फॉलो करना बीजेपी के लिए जरूरी थी और ये तीनों क्राइटेरिया संगठन पर ऐसे भारी पड़े कि बीजेपी  5 दिन की मशक्कत के बाद सभी 16 नगर निगम की सीटों पर उम्मीदवार के नाम फाइनल कर सकी। जो चेहरे लाए गए हैं उनमें से कई तो जीत की गारंटी भी नहीं है क्योंकि ये पॉलिटिकल फेस नहीं है। आम जनता के बीच ये अनाम चेहरें है। 7 प्रत्याशी तो संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े हैं। RSS समाज के बीच काम करता है लेकिन उसके कार्यकर्ता सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर रहते हैं। इन 16 सीटों पर बीजेपी ने ना तो विधायक को टिकट दिया ना ही  परिजन को और उम्रदराज नेताओं  को भी टिकट देने से परहेज किया।





    क्या ये फैसला बीजेपी को भारी पड़ेगा ?





    इस सवाल का जवाब भी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ही दिया था। भोपाल आए नड्डा ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि मप्र में हाल ही में हुए उपचुनाव में भी पार्टी ने गाइडलाइन को फॉलो किया था और नेताओं के परिजन को टिकट देने से दूरी बनाई थी। नड्डा ने इशारा करते हुए ये भी कहा था कि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा  और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनसे कहा था कि ऐसे तो सीट संकट में फंस जाएगी तब उन्होंने कहा कि फंस जाएगी तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन गाइडलाइन नहीं तोड़ सकते। नड्डा ने इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये भी कहा था कि जब घाव हो जाता है तो उसकी सर्जरी की जाती है और बीजेपी ये सर्जरी करने जा रही है।यानी बीजेपी की तैयारी है कि यदि चुनाव हार जाए तो हार जाए मगर गाइडलाइन या क्राइटेरिया से समझौता नहीं होगा।





    बीजेपी ऐसा क्यों कर रही है ?





    राजनीति के जानकारों का मानना है कि ये फैसला लेकर बीजेपी  एक नई लीडरशिप तैयार करने की कोशिश कर रही है।





    कांग्रेस ने फॉलो नहीं की गाइडलाइन





    दूसरी तरफ कांग्रेस को देखें तो कांग्रेस ने भी  गाइडलाइन तैयार की थी लेकिन कांग्रेस गाइडलाइन को तोड़ती चली गई, उदयपुर की बैठक में कांग्रेस ने फैसला किया था  कुछ शर्तों के साथ



     





    1. एक परिवार को एक टिकट मिलेगा



    2. एक व्यक्ति एक पद पर रहेगा



    3.पैराशूट उम्मीदवार नहीं उतारे जाएंगे



    4. कार्यकर्ताओं को तवज्जो दी जाएगी




     





    महिलाओं के लिए तो कांग्रेस ने ऐलान कर दिया था कि चाहे महिला कैंडिडेट हारे या जीते तवज्जो कार्यकर्ता को ही मिलेगी लेकिन कांग्रेस अपनी किसी भी गाइडलाइन पर अडिग नहीं रही। 16 नगर निगम में से 15 उम्मीदवारों को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है  उसमें  







    1.आधे नाम या तो मौजूदा विधायक के हैं 



    2. राजनीतिक परिवार की बहू या बेटी के हैं



    3. मेयर उम्मीदवारों में तीन विधायक है



    4. 5 महिलाएं राजनीतिक परिवार से आती हैं 





    यानी कांग्रेस ने जीतने की संभावना के चलते ये कॉम्प्रोमाइज किया है.. लेकिन चुनाव में जीत हार जनता पर निर्भर करती है। कांग्रेस लंबे समय से विपक्ष में है और राजनीति के जानकार मानते हैं कि  कांग्रेस को इतने सालों में मौका मिला था नई लीडरशिप तैयार करने का मगर कांग्रेस ने ये मौका गंवाया है। शायद यही अंतर है बीजेपी और कांग्रेस में, बीजेपी को इसलिए पार्टी विथ डिफरेंस कहा जाता है और कांग्रेस है कि बदलने को तैयार नहीं।



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