MP: भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी, बीजेपी के विधायक उमाकांत शर्मा ने खोली पोल

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MP: भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी, बीजेपी के विधायक उमाकांत शर्मा ने खोली पोल

भोपाल. मध्यप्रदेश सरकार (Madhya Pradesh government) जीरो टॉलरेंस पॉलिसी (zero tolerance policy) की बात करता है। प्रदेश सरकार की इस पॉलिसी की पोल खोली बीजेपी के ही विधायक उमाकांत शर्मा (MLA Umakant Sharma) ने। मामला सिरोंज विधानसभा का है। मध्य प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में अनियमितता के मामले में भाजपा विधायक उमाकांत शर्मा ने अपनी ही सरकार को घेरा। सीईओ के निलंबन की मांग की। विधानसभा स्पीकर (Assembly Speaker) ने सरकार को जांच कराने के निर्देश दिए हैं। आईएएस कल्पना श्रीवास्तव (Kalpana Srivastava) का ट्रांसफर (Transfer) कर दिया गया है। आखिर जिस अधिकारी ने भ्रष्टाचार (Corruption) के मामले पर एक्शन लिया और भ्रष्टाचार को रोकने की कोशिश की, आखिरकार उसे क्यों पद से हटाया गया। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार (Shivraj Sarkar) भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का दावा करती है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। सचिवालय से लेकर प्रदेश के अधिकांश मलाईदार पदों पर, ऐसे IAS अधिकारी काबिज हैं, जिन के खिलाफ लोकायुक्त (Lokayukta) से लेकर ईओडब्ल्यू (EOW) तक में भ्रष्टाचार की जांच चल रही है।

जीरो टॉलरेंस पॉलिसी का पहला नमूना

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के सिरोंज में कोरोना काल में छह हजार शादियों को लेकर भाजपा विधायक उमाकांत शर्मा ने अपनी ही सरकार को घेरा। प्रश्नकाल शुरू होते ही भाजपा विधायक उमाकांत शर्मा ने जनपद सिरोंज में भवन और सन्निर्माण कर्मकार मंडल में पंजीकृत श्रमिकों की बेटियों का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि जब कोरोना काल में शादियां नहीं हो रही थी, तब यहां 6 हजार शादियां हो गई। 30 करोड़ रुपये का भुगतान भी मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत हो गया।

22 दिसंबर को विधानसभा में उन्होंने मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत 30 करोड़ रुपये से अधिक के भुगतान को लेकर सवाल उठाए। सीईओ के निलंबन और जांच की मांग की थी। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने जांच के निर्देश दिए हैं। 

जवाब में श्रम मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि 1 अप्रैल 2019 से अब तक जनपद पंचायत सिरोंज में 5,976 हितग्राहियों को 30.40 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है। इस जवाब से असंतुष्ट विधायक का कहना कि कन्यादान योजना में भ्रष्टाचार हुआ है। रिश्वत ले-देकर कामकाज हो रहा है। सीईओ को सस्पेंड किया जाए। 

जीरो टॉलरेंस पॉलिसी का दूसरा नमूना

कल्पना श्रीवास्तव का ट्रांसफर कर दिया गया है। मध्य प्रदेश में प्याज खरीद घोटाले में जांच के आदेश देना वरिष्ठ आईएएस अफसर कल्पना श्रीवास्तव (IAS Kalpana Srivastava) को भारी पड़ गया है। उद्यानिकी विभाग (MP Horticulture Department) द्वारा राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत किसानों के लिए प्याज की खरीदी गई थी। इस खरीद में भ्रष्टाचार की शिकायतों के बाद प्रमुख सचिव उद्यानकी कल्पना श्रीवास्तव ने एक्शन लेते हुए आयुक्त मनोज अग्रवाल से स्पष्टीकरण मांगा था। जिसके बाद 12 दिसंबर की रात को उनका तबादला कर दिया गया था।

कल्पना श्रीवास्तव को अब तक के कार्यकाल में अपने बेहतरीन काम के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। अधिकारी के ट्रांसफर के आदेश छुट्टी के दिन दिए गए हैं। जिसके बाद मध्य प्रदेश राज्य कर्मचारी संघ ने इस तबादले का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है।

तबादले का मुख्य कारण उद्यानिकी विभाग द्वारा इस साल 2 करोड़ रुपए में बिना टेंडर निकाले 90 कुंटल प्याज की खरीदी की गई थी। आरोप है कि सब्जी बीज बेचने की दर 1100 रुपए प्रति किलो है तो इसे 2300 रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदा गया।

जीरो टॉलरेंस पॉलिसी का तीसरा नमूना

सरकार द्वारा दी गई अधिकृत जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश के कई दर्जनों आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों में जांच चल रही है। जांच के दायरे में आए अफसरों में सबसे ज्यादा संख्या आईएएस अफसरों की है।

राज्य के 63 आईएएस और 37 आईएफएस अफसरों की जांच हो रही है। अच्छी बात यह है कि भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों की जांच के दायरे में आने वाले आईपीएस अफसरों की संख्या महज आधा दर्जन ही है। खास बात यह है कि यह जानकारी स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते रोज मंगलवार को कांग्रेस विधायक मेवाराम जाटव के सवाल के लिखित जवाब में राज्य विधानसभा में दी है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नति एवं चयन की कार्यवाही नियमावली 1955 के तहत की जाती हैं। जिन अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति, निलंबन और आरोप पत्र की कार्रवाई प्रचलित रहती है, उनके संबंध में संनिष्ठा प्रमाण पत्र जारी नहीं किए जाते हैं। शिकायतों के आधार पर संनिष्ठा रोकने का प्रावधान नहीं है। विधानसभा को दी गई जानकारी के अनुसार लगभग छह सालों की अवधि में लोकायुक्त में 35 आईएएस, 19 आईएफएस और 3 आईपीएस के खिलाफ जांच चल रही है। वर्ष 2009 से 2021 की अवधि में ईओडब्ल्यू में 28 आईएएस, 18 आईएफएस और 3 आईपीएस के खिलाफ जांच की जा रही है। पुलिस मुख्यालय की स्थानीय विजिलेंस भी 13 आईपीएस अफसरों की जांच कर रही है। उसके अलावा 13 आईपीएस की जांच एक अन्य एजेंसी कर रही है। जांच के दायरे में आने वाले राज्य प्रशासनिक सेवा और राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों की संख्या भी बहुत है। 

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