RAJGARH. मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में भी बाबा बागेश्वर धाम का दिव्य दरबार लग रहा है। ये दरबार पं. धीरेंद्र शास्त्री नहीं, बल्कि उनके शिष्य गुना जिले के मंशापूर्ण हनुमान मंदिर के बाबा हनुमतदास लगा रहे हैं। यहां भी रविवार व सोमवार को पंडाल में भीड़ उमड़ती है। लोगों को नाम से बुलाकर उनका पर्चा बनाया जाता है और उनकी समस्याएं बताकर उनके निदान का दावा किया जाता है।
बाबा गद्दी पर बैठे और नाम से बुलाकर पर्चा बनाने लगे
हनुमतदास ने कई लोगों के पर्चे अपने दरबार में बनाए। पंडाल में 400 से अधिक लोग बाबा का इंतजार करते दिखे। कुछ देर में एक कार से 29 साल का एक युवक धोती-कुर्ता पहने हुए उतरा। उसके हाथ में हनुमान जी की गदा और गले में लॉकेट था। बाबा के उतरते ही पांडाल में बैठे लोगों ने बाबाजी की जयकार शुरू कर दी। परिसर में बने मंदिरों में दर्शन करने के बाद बाबा गद्दी पर बैठे और भीड़ में से लोगों को नाम से पुकारकर पर्चा बनाने लगेय़ लोगों की समस्या बताकर उनके समाधान का भी दावा किया।
रविवार व सोमवार दो दिन दरबार लगता है
इस दरबार में राजस्थान के लोग भी पहुंचे थे। यह दरबार लगाने वाले बाबा का नाम हनुमतदास सेनिल है। वे गुना जिले के राघौगढ़ के निवासी हैं। उनके परिवार में माता-पिता के अलावा दो भाई और 1 बहन है। पिता निजी कंपनी में जॉब करते हैं। बाबा हनुमतदास ने बताया कि उन्होंने बीए तक पढ़ाई की है। बचपन से ही हनुमानजी की साधना कर रहे हैं। पिछले डेढ़ साल से हनुमानजी की कृपा से राघौगढ़ में मंशापूर्ण हनुमान मंदिर पर दिव्य दरबार लगा रहा हूं। राजगढ़ जिले में यह पहला मौका है, जब यहां दरबार लगाने की प्रेरणा मिली है। रविवार व सोमवार दो दिन दरबार लगता है।
'हमारे पास कोई दिव्य शक्ति नहीं, हनुमानजी की कृपा है'
जब हनुमतदास से पूछा कि लोगों को सीधे नाम लेकर बुलाने वाली शक्ति के बारे में आपको कैसे ज्ञात हुआ, इस पर बताया कि ये सब हनुमानजी महाराज की तरफ से प्रेरणा आती है। हमारे पास कोई दिव्य शक्ति नहीं है। जब ध्यान में बैठे होते हैं तो हनुमानजी महाराज की प्रेरणा व भगवान श्रीराम के आशीर्वाद से हमें जो अनुभव मिलता है, उसके जरिए हम पंडाल में से लोगों का नाम लेकर बुला लेते हैं। कब से दरबार लगा रहे हैं, इसके जवाब में हनुमतदास ने कहा कि डेढ़ साल से दरबार राघोगढ़ में हर मंगलवार को लग रहा है।
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कथा सुनकर धीरेंद्र शास्त्री से ली थी दीक्षा
जब गुरु के बारे में पूछा गया तो हनुमतदास ने कहा कि जब बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री को अशोकनगर में देखा था तो उनकी वहां कथा चल रही थी। मैं कैसे उनके पास तक पहुंचा, यह तो राम जानें। पिछले साल अशोकनगर की कथा हुई तो प्रेरणा हुई कि गुरुदीक्षा लेनी चाहिए। वहीं पर काफी बातचीत की और फिर गुरुदीक्षा ले ली। जब दरबार के बारे में पूछा गया कि आपके गुरु धीरेंद्र शास्त्री को पता है कि आप भी दरबार लगा रहे हैं तो इस पर हनुमतदास ने कहा कि अभी उन्हें नहीं पता कि मैं दिव्य दरबार लगा रहा हूं। हालांकि, अदृश्य रूप से प्रेरणा के जरिए उन्हें पता तो सब कुछ होता है। वे गुना में आ रहे हैं, शायद कृपा हो जाए।
राजगढ़ में ऐसे हुई दरबार लगने की शुरुआत
राजगढ़ के लोगों ने जब मंदिर परिसर में महेश शास्त्री और आकाश शास्त्री से कथा करवाई तो उस समय महेश शास्त्री ने समिति को राघौगढ़ के हनुमंत दास बाबा के बारे में बताया कि वे दिव्य दरबार लगाकर लोगों की समस्या बताते हैं। इस पर ग्रामीणों ने उन्हें गांव आने का न्योता दिया। उसके बाद हनुमतदास का रविवार और सोमवार दो दिन दिव्य दरबार लगने लगा। ग्राम जूनापानी के बाहर जंगल में 70 साल पुराना चगसजी महाराज का चबूतरा है। यहां दो वट वृक्ष हैं। इस धार्मिक क्षेत्र में 4 साल पहले ग्रामीणों के सहयोग से राधे-कृष्ण, बाल हनुमान और शिवजी के मंदिर का निर्माण हुआ। यहां हर महीने धार्मिक आयोजन करवाए जाते हैं।
'हनुमान जी कृपा से ही ऑटोमेटिक संकेत मिल जाते हैं'
हनुमतदास ने कहा कि पहली बात तो हमारे अंदर कोई दैवीय शक्ति नहीं है। हनुमान जी महाराज की प्रेरणा होती है। बैठते हैं, ध्यान करते हैं तो ऑटोमेटिक ही संकेत मिल जाते हैं। हनुमान जी महाराज कृपा कर देते हैं। हम उनको नाम से ही बुला लेते हैं। हमारे पास न कोई दैवीय शक्ति है, न कोई दैवीय चीज है। बस हनुमान जी महाराज की कृपा है। उन्होंने कहा कि बागेश्वर धाम सरकार का दरबार लगता है, हम उनके बारे में कुछ नहीं कह पाएंगे। वहां एक महासागर है। हम अभी उस स्तर पर नहीं हैं। वहां अपने स्तर पर काम कर रहे हैं, सेवा कर रहे हैं। यहां मैं डेढ़ साल से दरबार लगा रहा हूं। इससे पहले साधना मार्ग पूजा पाठ में था। प्रेरणा हुई कि सब कुछ छोड़कर साधना मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए। इसके बाद से 4 से 5 साल से निरंतर साधना कर रहा हूं।
हनुमान जी महाराज ने कहा कि यही लिखना, वही लिखा जाता है
बाबा ने कहा कि दैवीय दरबार का मतलब हनुमान जी महाराज ने जो प्रेरणा दे दी, बोल दिया कि इस नाम से आप को बुलाना है। उन्होंने बता दिया कि यहां लिखना है, वह लिखा हो जाता है, वह स्वतः ही सत्य हो जाता है। हनुमान जी महाराज ने कहा कि यही लिखना, सामने वाले की समस्या वही निकलती है। इसमें न हम अपनी मर्जी से लिखते हैं, ना कोई लिख सकता है। हम नाम से बुलाते हैं। बुलाने वाले हम नहीं, हनुमान जी महाराज हैं।