देव श्रीमाली, GWALIOR. देश के स्वतंत्रता आंदोलन में तिरंगा का बहुत बड़ा योगदान रहा है और इसने एक अस्त्र के रूप में काम किया था। गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस तिरंगा को फहराकर ही देश गौरवांवित होता है और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की शपथ दोहराता है। इसके निर्माण की प्रक्रिया भी ध्वज संहिता में वर्णित है और हर कोई व्यक्ति इसका निर्माण नहीं कर सकता। सरकार ने देश की दो संस्थाओं को ही इसके निर्माण का अधिकार दिया है और ये ही देश भर में झंडे सप्लाई करने के लिए अधिकृत है और इनमें से एक है ग्वालियर का मध्य भारत खादी संघ। यह उत्तर भारत में इकलौती संस्था है। स्वतंत्रता दिवस पर शासकीय और अशासकीय संस्थाओं पर जितने भी ध्वजारोहण होते हैं, वे ग्वालियर से ही बनकर जाते हैं।
देश में सिर्फ दो जगह बनते हैं राष्ट्रीय ध्वज, उत्तर भारत में सिर्फ ग्वालियर में
संघ के सचिव राजकुमार शर्मा का कहना है कि हर ग्वालियरवासी ही नहीं बल्कि पूरे एमपी के लोगों के लिए यह गर्व की बात है कि जहां भी ध्वजारोहण होना होता है, वहां ऑर्डर देने की प्रक्रिया के साथ ही ग्वालियर का जिक्र जरूर होता है। इसके निर्माण की लंबी प्रक्रिया है, जिसमें तय मानक का धागा तैयार करने से लेकर तिरंगे में डोरी लगाने तक का काम किया जाता है। आईएसआई तिरंगे देश में कर्नाटक के हुगली और ग्वालियर के केंद्र में ही बनाए जाते हैं।
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ध्वज बनने में लगते है पांच से छह दिन
मध्य भारत खादी संघ संस्था के मंत्री का कहना है कि किसी भी आकार के तिरंगे को तैयार करने में उनकी टीम को 5 से 6 दिन का समय लगता है। इन दिनों हमारी यूनिट में 26 जनवरी के लिए राष्ट्रीय ध्वज तैयार किए जा रहे हैं। यहां बनने वाले तिरंगे मध्य प्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात सहित 16 राज्यों में पहुंचाए जाते हैं। हमारे लिए गौरव की बात तो यह है कि देश के अलग-अलग शहरों में स्थित आर्मी की सभी इमारतों पर ग्वालियर में बने तिरंगे की शान बढ़ाते हैं। साथ ही उनका कहना है कि यहां जो तिरंगे तैयार किए जाते हैं, उसका धागा भी हाथों से इसी केंद्र में तैयार किया जाता है।
बीस तरह की होती है टेस्टिंग
मध्यभारत खादी संघ की ध्वज निर्माण इकाई की प्रबंधक नीलू बताती है कि ध्वज निर्माण की प्रक्रिया यहां 25 साल से चल रही है और केंद्र सरकार से 2016 में हमें आईएसआई का दर्जा दिया। ध्वज निर्माण प्रक्रिया की बारीकी बताते हुए नीलू बताती हैं कि इसमें यार्न से लेकर फिनिशिंग तक अनेक टेस्टिंग से गुजरना पड़ता है। पहले यार्न की टेस्टिंग करते हैं। फिर बुनाई के बाद टेस्टिंग करवाते हैं। इसके बाद तीन कलर में इसकी डाई करवाई जाती है। स्टिचिंग के बाद भी डायमेंशन की कड़ी चेकिंग की जाती है कि ध्वज संहिता के सभी मानक पूरे रहें। इन टेस्टिंग के बाद इसे आईएसआई टैग दिया जाता है।
इतनी कैटेगरी के झंडे होते हैं तैयार
नीलू बताती हैं कि अभी मध्यभारत खादी संघ ग्वालियर 9 से 10 साइज के राष्ट्रीय ध्वज निर्माण कर देश को उपलब्ध कराता है। लेकिन मुख्य डिमांड तीन साइज के ध्वजों की रहती है,जिनका सबसे ज्यादा निर्माण हो रहा है। इनमें 2 बाय 3 से 6 बाई 4 तक के झंडे शामिल हैं। ध्वजारोहण में सबके ज्यादा इन्हीं आकर वाले झंडों का उपयोग किया जाता है।
हर साल 10 से 12 हजार ध्वज होते हैं तैयार
केंद्र में एक साल में लगभग 10 से 12 हजार खादी के झंडे तैयार किए जाते हैं। खादी केंद्र के पदाधिकारी बताते हैं कि इस केंद्र की स्थापना साल 1925 में चरखा संघ के तौर पर हुई थी। साल 1956 में मध्य भारत खादी संघ को आयोग का दर्जा मिला। इस संस्था से मध्य भारत के कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियां भी जुड़ी हैं। उनका मानना है कि किसी भी खादी संघ के लिए तिरंगे तैयार करना बड़ी मुश्किल का काम होता है, क्योंकि सरकार की अपनी गाइडलाइन है? उसी के अनुसार तिरंगे तैयार करने होते हैं। यही कारण है कि जब यहां तिरंगे तैयार किए जाते हैं तो उनकी कई बार बारीकी से मॉनिटरिंग करनी पड़ती है।