सतना का सब्जीवाला बना सिविल जज, पैसे नहीं थो तो किताब की फोटोकॉपी कर पढ़ाई की

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Sootr Desk rajput
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सतना का सब्जीवाला बना सिविल जज, पैसे नहीं थो तो किताब की फोटोकॉपी कर पढ़ाई की

SATNA. सतना के अमरपाटन तहसील में सब्जी बेचने वाले शिवकांत कुशवाहा का सिलेक्शन सिविल जज के लिए हुआ। शिवकांत ने यह कमाल पांचवें प्रयास में किया। उन्होंने OBC कैटेगरी में प्रदेश में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। शिवकांत का जीवन संघर्षों से भरा रहा। उन्होंने सब्जी का ठेला लगाकर पढ़ाई की और सफलता हासिल की। उनका कहना है कि मैं अपनी मां की गरीबी दूर करना चाहता था, लेकिन अब मां नहीं रही।









कोरोना बनकर आया अवसर





शिवकांत ने बताया कि मैं पढ़ाई में बहुत होशियार नहीं हूं, बस लगन से पढ़ाई करता रहा तो सिलेक्ट हो गया। कोरोना मेरे लिए बूरा वक्त नहीं अवसर बनकर आया। मैं सब्जी का ठेला लगाया करता था, लेकिन लॉकडाउन के समय दुकानें जल्दी बंद करा दी जातीं। इससे पढ़ने के लिए ज्यादा समय मिला। प्री और मेंस की परीक्षा घर से ही पढ़कर पास की। इंटरव्यू के लिए कुछ लोगों से सहायता ली।









ज्यूस निकालते वक्त कटी उंगली





प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा अमरपाटन से हुई। यहीं से ग्रेजुएशन भी किया। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। पिता होटल चलाते थे। मैं भी उनके साथ ही काम करता था। कुछ दिन बाद होटल बंद हो गया। मैंने गन्ने के ज्यूस का ठेला लगाया। एक दिन ज्यूस निकालते वक्त उंगली कट गई, जिसके बाद मुझे ठेला बंद करना पड़ा। 





ग्रेजुएशन के अंत में मेरी मुलाकात एक जज साहब से हुई। उन्होंने कहा- LLB कर लो। इससे पहले तक मन में जज बनने का ख्याल नहीं आया था। बस सोचता था कि पढ़कर एक दिन घर की गरीबी दूर करनी है। 2010 में LLM किया। इसके बाद लगातार परीक्षा की तैयारी में लगा रहा।









तूफान ने करवाया गरीबी से रूबरू





शिवकांत बताते है कि बचपन में एक दिन अम्मा ने आटा खरीदने के लिए पैसे दिए। मैं आटा लेकर लौट ही रहा था कि तूफान आ गया। तेज बारिश होने लगी। स्ट्रीट लाइट बंद हो गई, तो मैं पुल के पास छिपने लगा। इसी बीच पैर फिसला और मैं पुल से गिर गया। सारा आटा पानी में बह गया। मैं बेहोश हो गया। रात के 10:30 बजे गए, तो अम्मा खोजते हुए पहुंची। घर पहुंचने के बाद बस यही सोचता रहा कि क्या करूं, जिससे घर की गरीबी दूर हो जाए।





आज अम्मा हमारे बीच नहीं है। कैंसर के चलते उनका देहांत हो गया। हमने उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन बचा नहीं सके। सरकार स्कॉलरशिप देती थी, जिससे पढ़ाई पूरी हुई। किताबें महंगी हैं, इसलिए फोटो कॉपी से काम चला लिया करता था।









मेडिटेशन 'राजयोग' ने काफी मदद की





शिवकांत ने बताया कि मैं परीक्षा में चार बार विफल रहा। इसके बाद भी मेरा खुद पर और संविधान से विश्वास कम नहीं हुआ। स्कूल में जब पढ़ता था, तो घर के पास ही आध्यात्मिक संस्था ब्रह्मकुमारी का केंद्र था। वहां कोकिला बहन ने मुझे राजयोग सिखाया। वो मेरी गुरु हैं। 





वो भी अब इस दुनिया में नहीं है। घरवाले कहते थे कि पढ़ाई-लिखाई छोड़ काम-धाम में लग जा। कोई एग्जाम निकलने वाला नहीं है, लेकिन मेडिटेशन ने काफी मदद की। मैं सुबह तीन बजे उठकर मेडिटेशन किया करता था। सिविल जज के लिए चयन होने के बाद बहुत खुश हूं। मुझे विश्वास था कि सफलता जरूर मिलेगी। 









शिवकांत का युवा पीढ़ी के लिए संदेश





शिवकांत ने कहा कि युवाओं यही संदेश देना चाहता हूं कि खूब पढ़ाई कीजिए। खुद पर विश्वास रखिए। समाज के वो बच्चे, जिनके पास पैसे नहीं हैं, सुविधाएं नहीं हैं, पहाड़ों में रहते हैं, जिनके माता-पिता किसान हैं, अगर वो ईमानदारी और सच्चाई के साथ पढ़ाई करें, तो समाज का नाम रोशन कर सकते हैं।



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