News Strike: अभी और अफसरों को लगेगी सरेआम फटकार! 2023 में जीत का ये है Shivraj singh chouhan का प्लान!

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हरीश दिवेकर, BHOPAL. मध्यप्रदेश में अब अफसरों को सरेआम फटकार लगाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। अब ये मान लीजिए कि अफसर वो मुर्गा हैं जो किसी भी जनसभा में सबके सामने हलाल किए जा सकते हैं। भई अब सरकार तो सरकार हैं जब चाहें फटकार लगा दें लेकिन सरकार की ये फटकार जनता की भलाई के लिए नहीं बल्कि सत्ता में वापसी के लिए है।

कलेक्टर को मंच पर फटकार लगाना

खचाखच भरे जनता के हुजूम के बीच सरकार का कलेक्टर को बुलाना और मंच पर फटकार लगाना। सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा लगाकर थक चुके मतदाता को ये नजारा देखकर ही तसल्ली मिल जाती है। भोली जनता ये मान बैठती है कि सरकार उनके लिए किस कदर फिक्रमंद हैं। पर नादान ये नहीं समझ पाती कि इस फटकार से फायदा उनसे ज्यादा सरकार को ही होने वाला है। जनता का भला हो न हो लेकिन इन सियासी फटकारों से सत्ता तक वापसी का रास्ता पहले से ज्यादा आसान हो जाता है।

जनता तक पहुंचता है मैसेज

भरे मंच से सीएम अगर किसी अफसर को फटकार लगा दें तो जनता तक ये मैसेज पहुंचना लाजमी है कि सरकार उनके लिए कितनी फिक्रमंद है। मौसम चुनावी हो चला है तो ऐसे नजारे भी आम होने लगे हैं। अफसर को मंच पर बुलाना और ऐसी योजनाओं से जुड़े सवाल पूछना जिनका सरोकार सीधे जनता से है। उसके बाद मनमाफिक जवाब न मिलने पर अफसरों को कसकर हड़काना। अफसरों की बैंड बजती जाती है और जनता के दिल की भड़ास निकलती जाती है। कलेक्ट्रेट के गलियारों में जो अफसर उन्हें आसानी से घास नहीं डालते वो उनके सामने सिर झुकाए खड़े नजर आते हैं और सिवाय जी के मुंह से एक शब्द नहीं फूटता। बस जनता ये मान जाती है कि उनके बीच पहुंचा हुक्मरान उनका किस कदर हिमायती है कि बिना कुछ कहे उनका दर्द समझ रहा है। ये नजारे भी कुछ ऐसे ही हैं। आयुष्मान योजना के कार्ड बनने के काम में कितनी तेजी आई है। कितने शिविर लगे कितने लगने बाकी हैं। ये सवाल सीएम ने कलेक्टर को बुलाकर भरे मंच से पूछा। कलेक्टर भी इस स्ट्राइक के लिए पूरी तरह तैयार थे जो सारे दस्तावेज लेकर ही  मंच पर पहुंच गए। ये नजारा सौंसर के जनशिविर का है। जहां सीएम ने सबसे पहले मंच से उन योजनाओं के बारे में पूछा जिनका लाभ जनता को नहीं मिल रहा। उसके बाद कलेक्टर और सीएमएचओ को तलब कर मंच से ही उनसे भी सवाल किए।

कमलनाथ के गढ़ में लगाई अफसरों की क्लास

कमलनाथ के गढ़ में पहुंचकर सरकार ने मंच से अफसरों की क्लास लगा दी। ताज्जुब इस बात का है कि एक सभा में अफसर उसी योजना के दस्तावेज लेकर पहुंचे थे जिसके बारे में सीएम सवाल करने वाले थे और हर सवाल का जवाब भी उनके पास मौजूद था। ठीक वैसे ही जैसे स्कूल जाने वाले बच्चे को मैडम होमवर्क देती है और निश्चित डेट बता देती है जब उस होमवर्क कॉपी को लेकर स्कूल पहुंचना होता है। साफ नजर आता है कि बेहतरीन स्क्रीनप्ले के साथ एक ड्रामा पेश किया। ड्रामे की कामयाबी का सबूत ये कि वहां खड़ी जनता ने जमकर तालियां भी पीटीं। इस वीडियो को गौरे से देखें तो सीएम के पीछे खड़े कलेक्टर बीच-बीच में हंसते हुए भी नजर आ जाएंगे।

मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान शुरू हो चुका है, इसका आगाज अफसरों को डांटने-फटकारने से हुआ है। सीएम से लेकर मंत्री सारा ठीकरा अफसरों पर फोड़ रहे हैं। शिवराज कैबिनेट में मंत्री कमल पटेल भी एक सभा में इसी अंदाज में दिखाई दिए। इसका मतलब अब हर जिले मे अफसरों की बैंड बजाकर वाहवाही लूटी जाएगी। जनता को ये जताने की कोशिश है कि ये सरकार आपकी कितनी चिंता करती है। ये नजारा कोई पहली बार दिखाई नहीं दे रहा। पिछले उपचुनावों से पहले भी सीएम अफसरों के साथ कुछ इसी अंदाज में पेश आए थे। इसके बाद तो अफसर टांग दिए जाएंगे या बदल दिए जाएंगे जैसे जुमले बड़े आम हो गए। हर बार चुनाव से पहले मंच पर अफसरों को यूं ही डांट खाते देखने की अब जनता भी आदी हो चुकी है। चुनाव आने से पहले मंच पर अफसरों को ठांसने का ये ड्रामा अब उन्हें ज्यादा नहीं रिझाता। वो ये समझ चुकी है कि अफसरों को हिट करके अब सरकार खुद चुनाव में हिट विकेट होने से बचना चाहती है। अब इस चुनावी चाल में फंसने की जगह मतदाता भी यही सवाल पूछते हैं कि 15 महीनों को छोड़कर 18 साल से शिव की सरकार है ऐसे मे बेलगाम अफसरशाही का जिम्मेदार कौन है?

क्यों लग रही अफसरों की क्लास ?

क्या बेलगाम अफसशाही के आरापों में घिरी शिवराज सरकार को अफसरों को हड़काने का दिखावा करना पड़ रहा है। क्योंकि इस छोटी-सी स्क्रिप्ट ने वो कर दिखाया जो शिवराज काफी वक्त से नहीं कर पा रहे थे। जनता से तो वाहवाही मिली ही मीडिया में भी शिवराज छाए रहे। दिनभर रीजनल चैनल यही राग अलापते रहे कि शिवराज ने जनता की खातिर अफसरों की क्लास लगा दी। सिर्फ शिवराज ही क्यों इस काम में उनके मंत्री भी अब कदम आगे बढ़ा रहे हैं। पर सवाल ये है कि मंच पर पहुंचकर ऐन वक्त पर ऐसे सवाल जवाब पूछने की नौबत ही क्यों आई। क्या सरकार का मॉनिटरिंग सिस्टम इतना लचर हो चुका है कि सीएम को मंत्रालय से निकलकर सभाओं में जाकर इस तरह पूछताछ  करनी पड़ रही है। या इन फटकारों की वजह कुछ और है।

सीएम शिवराज सिंह चौहान ने लगाई सख्ती दिखाने की हैट्रिक

  • 20 सितंबर-छात्रों से बदतमीजी के मामले पर झाबुआ एसपी और कलेक्टर को हटाना
  • 21 सितंबर-जनसभा में उमरिया पहुंचकर मंच से ही अफसरों से सवाल जवाब
  • 22 सितंबर-उमरिया की तर्ज पर सौंसर में मंच पर अफसरों को फटकारना

क्या ये है कोई चुनावी दांव

चुनाव मोड में आ चुके शिवराज सिंह चौहान का ये कोई चुनावी दांव है या वाकई वो अफसरशाही को ठीक करने की ठान चुके हैं या सरकारी तंत्र में कसावट न ला पाने की कसमसाहट है जो इस तरह भरी सभाओं में अफसरों पर निकल रही है। वैसे भी कांग्रेस की ओर से सबसे बड़ा मुद्दा यही बनाया जा रहा है कि अफसर शिवराज सरकार की नहीं सुनते। छतरपुर में तो हालात ये हो गए कि बीजे चंदला से बीजेपी विधायक राजेश प्रजापति को भेष  बदलकर निकलना पड़ा। लोगों की शिकायत पर वो लोकसेवा केंद्र के काउंटर पर नामांतरण के लिए पहुंचे। वो गिड़गिड़ाते रहे लेकिन उनका काम नहीं हुआ। जिसके बाद उन्हें कलेक्टर से मिलकर केंद्र का ठेका निरस्त करने तक के लिए कहना पड़ा। ये मुद्दा अब तो खुद बीजेपी के बड़े नेता भी उठाने लगे हैं। कुछ ही दिन पहले हुई एक बैठक में कैलाश विजयवर्गीय ने भी अफसरों के काम पर सवाल उठाए थे। जिसके जवाब में शिवराज ने कहा था कि अफसर कुछ अच्छा काम भी करते हैं। वही शिवराज अब भरी सभाओं में इस तरह अफसरों पर बिफरते दिखाई दे रहे हैं। जिस स्क्रिप्ट पर वो उमरिया की जनसभा में अफसरों पर गुस्साए दिखे। सेम स्क्रिप्ट पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने सौंसर में अफसरों की क्लास लगा दी। इस तरह शिवराज जनता के दिल में घर बनाने की कोशिश तो कर रहे हैं पर क्या सवाल खुद सरकार के मॉनिटरिंग सिस्टम पर नहीं उठ रहे। जो पूरी तरह फेल नजर आ रहा है।

मॉनिटरिंग सिस्टम को समझिए

  • अदने से कर्मचारी से लेकर सीएम तक पूरी एक सिस्टमेटिक चेन बनी हुई है
  • किसी योजना के लागू होने पर उसकी जानकारी अंतिम पंक्ति के कर्मचारी तक उसी चेन के जरिए पहुंचती है
  • उस योजना पर जमीनी स्तर पर क्या और कितना काम हो रहा है इसकी जानकारी सीएम तक भी उसी चेन के जरिए पहुंचती है

इस चेन को मोटेतौर पर ऐसे समझा जा सकता है.. 

पटवारी तहसीलदार-अपर कलेक्टर-कलेक्टर-एडिश्नल कमिश्नर-कमिश्नर-सेकेट्री-प्रमुख सचिव-मुख्य सचिव-मंत्री-मुख्यमंत्री

अफसरों को दोषी ठहराते हुए जनता का भरोसा जीतने की कोशिश

हर काम के लिए जो सिस्टम बना है उसके मॉनिटरिंग सिस्टम के तार छोटे से कर्मचारी से लेकर आला अफसरों से होते हुए मंत्री और मुख्यमंत्री तक जुड़े होते हैं। फिर क्या नौबत आ गई कि सीएम को जिले जिले में जाकर योजना पर हो रहे कामों की यूं इस तरह जानकारी लेनी पड़ रही है। सिस्टम वाकई लचर है। इस लचर सिस्टम के बहाने काम न होने पर अफसरों को दोषी ठहराते हुए खुद जनता का भरोसा जीतने की एक कोशिश है। अपने चौथे कार्यकाल में शिवराज लगातार अफसरों पर सख्ती दिखाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ये सख्ती किस काम की अगर सीएम को कुछ सरेआम अफसरों से जवाब तलब करने पड़ रहे हैं।

ड्रामे के पीछे कोई और कहानी

जो दिखाई दे रहा है उस ड्रामे के पीछे कहानी कुछ ओर ही नजर आती है। ये साफ दिखाई दे रहा है कि अब अफसरों को विलन बनाकर सरकार में बैठे हुक्मरान जनता की नजरों में हीरो बनना चाहते हैं। सीएम ने इस काम की शुरूआत भी कर दी है। ये सियासी तमाशा देखकर चंद लाइनें याद आती हैं।

आंख पर पट्टी रहे और अक्ल पर ताला रहे

अपने शाहे-वक्त का यूं मर्तबा आला रहे

जनता की आंख पर योजनाओं का लाभ मिलने के बाद पट्टी तो बंधना तय है। अक्ल भी क्या काम आएगी जब खुद मुखिया उनके हक की आवाज उठाएगा तो वो ही सबसे बड़ा हीरो नजर आएगा। बस यहीं से सरकार की कामयाबी का सफर शुरू हो जाएगा।