BHOPAL : मध्यप्रदेश में अपने ही सर्वे में बीजेपी को मात, क्या कांग्रेस की जम रही धाक !

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BHOPAL : मध्यप्रदेश में अपने ही सर्वे में बीजेपी को मात, क्या कांग्रेस की जम रही धाक !

हरीश दिवेकर, BHOPAL. मध्यप्रदेश में सत्ता का सेमीफाइनल हो चुका है। बीजेपी जहां जीत की खुशियां मनाकर अपना परचम फहरा रही है तो वहीं कांग्रेस भी दावा कर रही है कि उसने बीजेपी के मुगालते दूर कर दिए हैं। गांव और नगर की सरकार में जिस तरह की मारामारी इस चुनाव में देखने को मिली उसे देखकर कहा जा सकता है कि 2023 में होने वाला सत्ता का फाइनल रोचक होगा।





बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस ने लगाई सेंध





जनपद, जिला पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में जीत का दावा करने वाली बीजेपी नेता भले ही जीत का जश्न मना रही हो लेकिन शीर्ष नेतृत्व हकीकत जानता है कि सत्ता के बल पर किस तरह साम-दाम-दंड-भेद से पार्टी ने ये फतह हासिल की है। बीजेपी की जीत की हकीकत की रिपोर्ट संघ तैयार कर चुका है। वहीं बीजेपी हाईकमान को भी आईबी की रिपोर्ट पहुंच चुकी है। इसमें माइक्रो लेवल की समीक्षा की जा रही है कि आखिर चूक कहां रह गई। किस फैक्टर ने बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस को सेंध लगाने का अवसर दे दिया। आखिर क्या वजह है कि बीजेपी के कद्दावर नेताओं से भरा पड़ा चंबल बगावत पर अमादा हो गया। क्यों विंध्य का मतदाता बीजेपी से मुंह मोड़ रहा है। 





निकाय के परिणामों पर मंथन कर रही बीजेपी





मध्यप्रदेश में पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों के परिणाम के बाद प्रदेश से लेकर केन्द्रीय संगठन अब मंथन करने में जुट गया है कि आखिर कमी कहां रह गई। केन्द्रीय नेतृत्व इस जीत से खुश नहीं है। क्योंकि उसे पता है कि ये जीत किस तरह हासिल की गई है। केंद्रीय संगठन जानना चाहता है कि सत्ता में रहने के बावजूद सरकार से कहां कमी रह गई जो मतदाताओं को वे लुभा नहीं पाए। 16 नगरीय निकायों पर राज करने वाली बीजेपी के हाथ से इस बार सात नगर निगम निकलने के बाद संघ और संगठन दोनों चिंतित हैं। उनकी चिंता जायज भी है। अब भी नहीं जागे तो 2023 हाथ से निकल जाएगा। उसका सीधा असर 2024 पर भी आएगा।





निकाय में चमत्कार नहीं कर सकी शिव-विष्णु की जोड़ी





संघ और आईबी की रिपोर्ट की मानें तो इस बार शिव और विष्णु की जोड़ी निकायों में कोई करिश्माई चमत्कार नहीं दिखा सकी। हालांकि जीत का डंका फिर भी पीटा जा रहा है। जबकि चंबल, विंध्य और यहां तक कि महाकौशल का मतदाता भी अपनी नाराजगी दिखाने में पीछे नहीं रहा। केन्द्र और प्रदेश की सत्ता में सबसे ज्यादा रसूख रखने वाले ग्वालियर-चंबल में मतदाताओं का बागी मूड उभरकर आया। अब तक अपराजेय रही ग्वालियर सीट अच्छे खासे अंतर से बीजेपी हारी। दिग्गज नेताओं के राजसी रोड शो के रथ को मुरैना के मतदाताओं ने पंचर कर दिया। नगर पालिका और नगर परिषद के चुनावों में भी कांग्रेस ने दबदबा कायम किया है। महाकौशल की जबलपुर, छिंदवाड़ा, कटनी और विन्ध्य की रीवा, सिंगरौली बीजेपी के खिलाफ गई। सतना में बसपा की बदौलत बीजेपी की लाज बच गई। महत्वपूर्ण घटनाक्रम प्रदेश की राजनीति में सिंगरौली के जरिए आम आदमी पार्टी का प्रवेश है। अब नगरीय निकाय की सीटों के जरिए विधानसभा सीटों की गणित भी समझ लें।





अंचलवार विधानसभा सीटें







  • ग्वालियर चंबल में 34 विधानसभा सीटें



  • महाकौशल में 45 विधानसभा सीटें


  • विंध्य में 30 विधानसभा सीटें






  • इन सीटों का जोड़कर देखें तो 109 सीटें होती हैं। प्रदेश में कुल 230 विधानसभा सीटें है। 109 का आंकड़ा अगर समझा जाए तो ये प्रदेश की एक तिहाई सीटों से बहुत ज्यादा है और आधी सीटों से सिर्फ 6 सीट कम है। इस आंकड़े को देखकर ये तो माना नहीं जा सकता कि बीजेपी के राजनीतिक धुरंधरों ने अब तक अपनी हार या जीत का आंकलन नहीं किया होगा। जीत के जश्न और चेहरे पर खिंची मुस्कानों के जरिए क्या माथे पर पड़ी चिंता की लकीरों को छुपाने की कोशिश की जा रही है। क्योंकि जिन सीटों की हम यहां बात कर रहे हैं ये नगर निगम की सीटें मतदाताओं के मूड की तरफ इशारा करती हैं क्योंकि ये सभी नगर सरकारें अपने-अपने इलाके की मिनी-कैपिटल से कम नहीं हैं। जो अक्सर प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा भी तय करती हैं।





    बीजेपी के लिए हकीकत समझना जरूरी





    जीत के जश्न से फारिग होकर सीएम शिवराज सिंह चौहान और प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के  लिए अब हकीकत को समझना जरूरी हो गया है। तीन मुख्य अंचलों की अनदेखी पार्टी पर कितनी भारी पड़ सकती है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। हर अंचल की जमीनी हकीकत बीजेपी को डराने वाली है। सत्ता पर काबिज होने की भूख इस कदर थी कि कांग्रेस से नेता उधार लेकर सत्ता खरीद ली गई। लेकिन उधार तो उधार ही होता है और ये तो ऐसा उधार है जो बीजेपी न चाहे फिर भी कांग्रेस की जेब में कब वापस लौट जाएगा कहा नहीं जा सकता। लेकिन ऐसे उधार के नेताओं को साधने के चक्कर में बीजेपी का अपना संतुलन पूरी तरह गड़बड़ा गया है। नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे ये जाहिर भी कर रहे हैं कि अब डैमेज कंट्रोल के लिए देर भी हो चुकी है।





    क्या सिंधिया का जादू ग्वालियर चंबल में बरकरार है ?





    सत्ता में आने के लिए बीजेपी ने सबसे बड़ा दांव खेला ग्वालियर चंबल के नेताओं पर। वहां से महाराज कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए तो उनके कुछ खास दरबारियों को भी पाला बदलना ही था। अपना रसूख बनाए रखने के लिए महाराज के लिए ये जरूरी कदम था। उन्हें वो पावर वापस मिल गई और उनके चक्कर में दरबारियों को भी मंत्रिमंडल में जगह मिली। लेकिन मूल बीजेपी कार्यकर्ता नजरअंदाज हो गया। जिसकी नाराजगी अब नजर आने लगी है। शिवराज कैबिनेट में महाराज के समर्थकों का दबदबा देखने लायक है। लेकिन ग्वालियर की नगर निगम की सीट तकरीबन आधी सदी बाद कांग्रेस की झोली में गिरी है तो ये सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि क्या सिंधिया का जादू ग्वालियर चंबल में बरकरार है।





    अब मतदाता का मूड बदल रहा है





    महाकौशल और विंध्य की सीटों पर तो बीजेपी अपनी ही गलती और अपने ही आपसी मतभेद की गलती भुगतती आ रही है। विंध्य तो वो क्षेत्र है जहां पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ी जीत मिली। शिवराज की नाक थोड़ी बहुत बच सकी। जहां सीएम भी शुक्रगुजार नजर आए वहां की ऐसी अनदेखी हुई कि अब मतदाता घरवापसी यानी कांग्रेस के पास वापस जाने के लिए तैयार नजर आ रहा है। रीवा लंबे समय तक कांग्रेस के कब्जे में रहा। बमुश्किल ये सीट बीजेपी के प्रभाव में आई लेकिन अब मतदाता का मूड फिर बदल रहा है। इसके अलावा चुरहट, सीधी से सिंगरौली तक बीजेपी एक तरह से साफ है। शिवराज कैबिनेट की मंत्री मीना सिंह का मानपुर और राज्यमंत्री रामखेलावन का अमरपाटन भी सफा है।





    दिग्गजों की अनदेखी का खामियाजा बीजेपी ने भुगता





    विधानसभा स्पीकर गिरीश गौतम अपने बेटे को ही जीत नहीं दिला सके। राजेंद्र शुक्ल जैसे दिग्गज नेता की अनदेखी का खामियाजा यहां बीजेपी भुगतती नजर आई। महाकौशल भी किस तरह बिसरा दिया गया है ये देखा जा सकता है। जहां से किसी नेता का प्रतिनिधित्व शिवराज कैबिनेट में नजर नहीं आता। संगठन में पद के नाम पर वीडी शर्मा खुद को महाकौशल का बताकर बात टालने की कोशिश करते हैं। लोकसभा चुनाव जीते राकेश सिंह के हाथ भी कुछ नहीं है। अजय विश्नोई और गौरीशंकर बिसेन जैसे नेता हाशिए पर हैं। आदिवासी मतदाताओं के बीच गोंडवाना गणंतत्र पार्टी और जयस पैठ बनाने में जुटी हुई हैं। ये हालात साफ जाहिर करते हैं कि तमाम दावों के बावजूद बीजेपी जीत से दूर होती जा रही है। डैमेज कंट्रोल के लिए भी वक्त अब बहुत कम बचा है।





    निकाय चुनाव के नतीजों से मुंह नहीं फेर सकती बीजेपी





    संघ और आईबी की रिपोर्ट साफ तौर पर कहती है कि निकायों के चुनावी नतीजों से मुंह नहीं फेरा जा सकता। ये तो वो आइना है जो तमाम जश्न और खुशी से लबरेज चेहरों के बीच भी हकीकत दिखाने से बाज नहीं आता। क्योंकि ये आइना मतदाताओं के चेहरे पढ़ लेता है। इस बार भी आइना महाकौशल, विंध्य और ग्वालियर चंबल की सही तस्वीर दिखा रहा है और इसमें भी कोई शक नहीं कि बाहर ढोल की आवाज पर झूमने वाले नेता बंद कमरों में मायूस जरूर होंगे। बीजेपी नेतृत्व को शायद ये समझ आ जाना चाहिए कि अब जरूरत कांग्रेस की हार को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की नहीं। बल्कि अपनी हालत पर गौर करने की है। नहीं तो बीजेपी के लिए 2023 के नतीजे 2018 के नतीजों से भी बुरे हो सकते हैं।



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