BHOPAL : बदल रहा है मध्यप्रदेश की राजनीति का मिजाज, आम आदमी पार्टी और जयस को हल्के में लेना बीजेपी-कांग्रेस को पड़ सकता है भारी

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Rahul Garhwal
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BHOPAL : बदल रहा है मध्यप्रदेश की राजनीति का मिजाज, आम आदमी पार्टी और जयस को हल्के में लेना बीजेपी-कांग्रेस को पड़ सकता है भारी

BHOPAL. मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव और जिला पंचायत चुनाव के नतीजे आए इसके बाद प्रदेश के दो प्रमुख दल बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने कहा कि उन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया। लेकिन इन चुनावों में  मतदाताओं का जो मिजाज नजर आया है वो जरूर आने वाले विधानसभा चुनाव की एक तस्वीर पर सोचने को मजबूर कर रहा है  और अब सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या मप्र लंबे समय से चली आ रही दो दलीय व्यवस्था से बाहर आकर अब यूपी, बिहार, दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र जैसे राज्यों की राजनीतिक व्यवस्था की तरफ बढ़ेगा।





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नगरीय निकाय चुनाव ने दिए भविष्य की राजनीति के संकेत





मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव हो गए। भले सरकार की इच्छा नहीं थी लेकिन अदालत की फटकार के बाद ही सही चुनाव हुए। चुनाव हुए और नतीजे भी आ गए। जो नतीजे आए उसे लेकर बीजेपी और कांग्रेस जश्न के मूड में है। 11 नगर निगम ने बीजेपी ने 9 नगर निगम जीते, कांग्रेस ने पांच नगर निगम पर कब्जा जमाया। हालांकि नगर पालिका और नगर परिषदों पर बीजेपी का कब्जा हुआ। 76 नगर पालिकाओं में भी बीजेपी के 54.31 फीसदी और कांग्रेस के 31.81 फीसदी पार्षद जीते हैं। वहीं नगर परिषद की बात करें तो पार्षदों की 52.29 प्रतिशत सीटें बीजेपी को मिली हैं। जबकि कांग्रेस के खाते में केवल 28.39 प्रतिशत सीटें आई हैं। ये तो हुआ बीजेपी और कांग्रेस का एनालिसिस लेकिन इन चुनावों में आम आदमी पार्टी और जयस का जिस तरह से प्रदर्शन रहा है वो भविष्य की राजनीति की तरफ संकेत दे रहा है।





क्या मध्यप्रदेश की चुनावी राजनीति का मिजाज महाराष्ट्र और बिहार की तरह हो सकता है ?





ये सवाल इसलिए भी पूछा जा रहा है क्योंकि मध्यप्रदेश में 80 के दशक के बाद तो दो दलीय राजनीतिक व्यवस्था ही ज्यादा रही है। 1990 में बीएसपी ने एमपी की चुनावी राजनीति में कदम जरूर रखा, लेकिन वो कभी भी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं रही। इतना जरूर है कि बीएसपी का वोट प्रतिशत चुनाव दर चुनाव बढ़ता गया। 2008 के विधानसभा चुनाव में तो बीएसपी का वोट परसेंट 8.7 फीसदी था जो अब तक का सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत रहा है लेकिन बीएसपी विधायकों की संख्या 7 से ज्यादा कभी नहीं रही जबकि समाजवादी पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी कभी भी सत्ता की चाबी अपने हाथ नहीं रख सके। 2018 के चुनाव में जरूर बीएसपी के 2, सपा के 1 और चार निर्दलीय विधायकों की स्थिति सरकार बनाने में रही, क्योंकि 2018 के चुनाव में कांटे का मुकाबला हुआ कांग्रेस को 114 सीटें मिली और बीजेपी को 109 बहुमत का आंकड़ा 116 है जिसे छूने के लिए कांग्रेस को सपा-बसपा और निर्दलीयों का सहारा लेना पड़ा था।





2023 में कैसी तस्वीर बन सकती है ?





अब नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव के जो नतीजे आए हैं वो क्या ऐसी तस्वीर 2023 में भी बना सकते हैं राजनीति के जानकारों की माने तो ऐसी संभावना नजर आती है। क्योंकि जयस और आप ने इन चुनावों में जो प्रदर्शन किया है उससे दो से तीन दर्जन सीटों पर उलटफेर की संभावना बन सकती है। आम आदमी पार्टी ने मेयर की एक सीट सिंगरौली जीती है। इस सीट पर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी सभा की थी और दिल्ली का मॉडल जनता के सामने रखा शायद लोगों को ये बात पसंद आई और आम आदमी पार्टी की रानी अग्रवाल मेयर चुनी गईं। आम आदमी का प्रदर्शन यहीं तक सीमित नहीं है आप के कुल 64 पार्षद जीते हैं और पार्टी का दावा है कि 150 सरपंच आप समर्थित हैं। 18 जिला पंचायत सदस्य बने हैं और 35 जनपद सदस्यों ने जीत हासिल की ग्वालियर में आप की मेयर कैंडिडेट 45 हजार वोट हासिल हुए हैं और वो तीसरे नंबर पर रही हैं। 7 पार्षद उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे हैं और आप इससे उत्साहित है।





आदिवासी इलाकों में जयस का बढ़ता प्रभाव





दूसरी तरफ है जय युवा आदिवासी संगठन यानी जयस जो अभी एक राजनीतिक दल नहीं है लेकिन जयस का प्रभाव आदिवासी क्षेत्रों पर बढ़ता जा रहा है। जयस ने शहरी इलाकों के बजाय ग्रामीण आदिवासी इलाकों पर फोकस करते हुए पंचायत चुनाव में अपने समर्थित उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। जयस का दावा है कि उसके 864 सरपंच, 97 जनपद सदस्य और 25 जिला पंचायत सदस्य चुने गए हैं।





रोचक और अलग होगा 2023 का घमासान





अब आम आदमी पार्टी और जयस दोनों ने राजनीति की शुरुआत बीएसपी, एसपी और गोंडवाना के उलट तरीके से की है। बीएसपी कभी भी स्थानीय निकाय और पंचायत के चुनाव मध्यप्रदेश में नहीं लड़ी। ऐसा ही कुछ सपा और गोंडवाना के साथ रहा। इन्होंने सीधे विधानसभा और लोकसभा में अपनी किस्मत आजमाई, जबकि आप और जयस ने छोटे चुनाव से शुरुआत की है। जो जनाधार बढ़ाने में अहम माने जाते हैं। ऐसे में राजनीति के जानकारों की माने तो जमीनी स्तर से बना जनाधार बड़े चुनाव में फायदा पहुंचाता है। इसलिए कहा जा रहा है कि 2023 का घमासान कुछ रोचक और अलग नजर आ सकता है।



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