पति को अनसुना कर पिता के यहां गईं सती, यज्ञ कुंड में खुद को भस्म किया, शिव का रुदन और बन गए 51 शक्तिपीठ

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 चैत्र नवरात्रि शुरू हो चुकी हैं। मां फिर मायके आ चुकी हैं। आप सभी को शक्ति के पर्व की, मां के आगमन की बहुत शुभकामनाएं। यूं तो मुख्य रूप से 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं, लेकिन देवी भागवत पुराण में 108, कालिका पुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा सप्तशती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। आज आपको सुना रहा हूं ये शक्तिपीठ कैसे बने। आज की कहानी को मैंने नाम दिया है- जब शिव से दूर गईं शक्ति...

देवी पुराण के मुताबिक 51 शक्तिपीठ में से कुछ विदेश में भी स्थापित हैं। भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 और नेपाल में 2 शक्तिपीठ हैं। राजा प्रजापति दक्ष की बेटी के रूप में मां दुर्गा ने सती के रूप में जन्म लिया था। भगवान शिव से उनका विवाह हुआ था। एक बार मुनियों के एक समूह ने यज्ञ आयोजित किया। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए, लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष यानी ससुर साहब बेहद क्रोधित हुए। जबकि ससुर जानते थे कि उनका दामाद देवाधिदेव है।

अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए प्रजापति दक्ष ने भी कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ किया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने जान-बूझकर अपने दामाद भगवान शिव को इस यज्ञ का निमंत्रण नहीं भेजा। भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए। लेकिन होना था कुछ और ही था। 

जब नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है, लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। यह जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की जरूरत नहीं होती। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि हमें न्योता नहीं आया, तुम मत जाओ। लेकिन सती नहीं मानी। शिव ने जाने से मना कर दिया। 

भगवान शंकर के रोकने पर भी जिद कर सती यज्ञ में शामिल होने चली गईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से अपने पति शिव को आमंत्रित ना करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष, भगवान शंकर के बारे में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित सती ने यज्ञ-कुंड में कूदकर अपनी आहुति दे दी।

भगवान शंकर को जब यह पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। उनकी पत्नी चली गई थीं। शिव की पत्नी चली गई थीं। देवाधिदेव शिव। तीसरा नेत्र खुला तो ब्रह्मांड में प्रलय और हाहाकार मच गया। शिव के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सजा दी। भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुखी होकर सारे भूमंडल में घूमने लगे।

भगवती सती ने शिवजी को दर्शन दिए और कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के अंग अलग होकर गिरेंगे, वहां महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर घूमते हुए तांडव करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति पैदा होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से माता के शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते।

शास्‍त्रों के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, उनके वस्त्र या आभूषण गिरे , वहां-वहां शक्तिपीठ का उदय हुआ। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता के शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने राजा हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को फिर से पति रूप में प्राप्त किया। बस यही थी आज की कहानी...

दोस्तो, शिव ग्रहस्थ हैं। वे शादी करते हैं। प्रेम करते हैं। पत्नी प्रेम में विह्वल होते हैं तो विनाश करते हैं। शिव और शक्ति एक ही हैं। दोनों के बिना एक-दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती। यानी आप शिव भक्ति करते हैं तो शक्ति का मिलना तय है। अगर आप शक्ति की उपासना करते हैं तो शिवत्व के दर्शन तय हैं।