Advertisment

पत्नी का कटु व्यवहार बदल सकता है, आईना देखना क्यों जरूरी है, ये बताते हैं ग्रीक दार्शनिक सुकरात

author-image
New Update

सुकरात बहुत बड़े विद्वान और दार्शनिक थे। सारा यूनान उनका आदर करता था, परंतु उनकी पत्नी हर समय उनसे लड़ती रहती थीं। जैसे मीठा बोलना उन्होंने सीखा ही नहीं था। जब सुकरात घर पर मौन बैठते तो वह चिल्लाना शुरू कर देतीं- हर समय चुप ही बैठे रहते हैं। जब वे कोई पुस्तक पढ़ते तो भी चिल्लातीं- आग लगे, इन पुस्तकों को! इन्हीं के साथ शादी कर लेनी थी।

एक दिन जब सुकरात घर आए तो पत्नी ने बुरा-भला कहना शुरू कर दिया, लेकिन सुकरात चुप रहे। सुकरात के कुछ विद्यार्थी भी उनके साथ थे। जब पत्नी ने उन्हें मौन देखा तो उनका गुस्सा और बढ़ गया। वह तेज आवाज में बोलने लगीं। सुकरात फिर भी चुपचाप बैठे रहे। तब पत्नी ने क्रोध से पागल होकर मकान के बाहर पड़ा गंदा कीचड़ एक बर्तन में भरकर सुकरात के सिर पर डाल दिया। सुकरात ने हंसकर कहा, ‘देवी! कहावत है कि गरजने वाले बरसते नहीं। लेकिन आज देखा कि जो गरजता है, वह बरसता भी है।’ सुकरात हंसते रहे, परंतु उनके एक विद्यार्थी को क्रोध आ गया। उसने चिल्लाकर कहा, ‘यह स्त्री तो चुड़ैल है। आपके योग्य नहीं।’ सुकरात बोले, ‘नहीं यह मेरे ही योग्य है। यह ठोकर लगा-लगाकर देखती रहती हैं कि सुकरात कच्चा है या पक्का।’

जब पत्नी ने ये शब्द सुने तो उसके पश्चात्ताप की कोई सीमा न रही। वह रोती हुई बोलीं, ‘आप तो देवता हैं। मुझे क्षमा कर दीजिए। मैंने आपको पहचाना नहीं। आप सत्य कहते हैं कि सहनशीलता से अंत में विजय प्राप्त होती है। 

Advertisment

सुकरात दिखने में कुरूप थे। वह एक दिन अकेले बैठे हुए आईना हाथ मे लिए अपना चेहरा देख रहे थे। तभी उनका एक शिष्य कमरे मे आया ; सुकरात को आईना देखते हुए देख उसे कुछ अजीब लगा । वह कुछ बोला नही सिर्फ मुस्कराने लगा। विद्वान सुकरात शिष्य की मुस्कराहट देख कर सब समझ गए और कुछ देर बाद बोले, “मैं तुम्हारे मुस्कराने का मतलब समझ रहा हूं…। शायद तुम सोच रहे हो कि मुझ जैसा कुरूप आदमी आईना क्यों देख रहा है?”

शिष्य कुछ नहीं बोला, उसका सिर शर्म से झुक गया। सुकरात बोले, “शायद तुम नहीं जानते कि मैं आईना क्यों देखता हूं।” शिष्य बोला- “नहीं।” सुकरात ने कहा कि मैं कुरूप हूं, इसलिए रोज आईना देखता हूं। आईना देख कर मुझे अपनी कुरूपता का भान हो जाता है। मैं अपने रूप को जानता हूं। इसलिए मैं हर रोज कोशिश करता हूं कि अच्छे काम करूं, ताकि मेरी यह कुरूपता ढंक जाए।”

शिष्य को ये बहुत शिक्षाप्रद लगा, लेकिन उसने एक शंका जताई कि सर, इस तर्क के अनुसार सुंदर लोगों को तो आईना नही देखना चाहिए?” सुकरात ने कहा कि ऐसी बात नही! उन्हें भी आईना देखना चाहिए, वो इसलिए ताकि उन्हें ध्यान रहे कि वे जितने सुंदर दिखते हैं, उतने ही सुंदर काम करें, कहीं बुरे काम उनकी सुंदरता को ढक ना लें और उन्हें कुरूप ना बना दें।

Advertisment