इनकम टैक्स रिटर्न: आखिरी तारीख और कार्यसंस्कृति में अनुशासन

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The Sootr CG
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इनकम टैक्स रिटर्न: आखिरी तारीख और कार्यसंस्कृति में अनुशासन

बहुत दिनों से जारी कयास के बीच इनकम टैक्स विभाग ने इस बार आयकर रिटर्न जमा करने की तारीख बढ़ाने से इनकार कर दिया। सोशल मीडिया पर तमाम तरह के मीम्स चले और एक तरह का अभियान छेड़ दिया गया लेकिन इस बार इनकम टैक्स विभाग ने 31 जुलाई को अपनी खिड़की बंद कर दी। बेशक आगे भी रिटर्न फाइल होते रहेंगे लेकिन जुर्माने के साथ। अब ये बहस छिड़ी है कि तारीख बढ़ाना चाहिये था या नहीं ! हर काम टालने के अभ्यस्त भारतीयों की आस अभी भी नहीं टूटी है और कई संगठनों ने वित्तमंत्री को पत्र लिखकर 31 अगस्त तक की मोहलत माँगी है।





हमारी कार्यसंस्कृति में लेटलतीफी और टालमटोली इतनी घुल गयी है कोई भी काम समय पर पूरा हो जाना एक खबर बन जाता है। ऐसे में अगर कहीं से सुधार का एक छोटा सा प्रयास हुआ है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिये। इनकम टैक्स विभाग धन्यवाद का पात्र है कम से कम उसने तारीख न बढ़ा कर एक कड़ा संदेश देने की शुरुआत तो की। लोगों को समझना चाहिये कि हर काम की एक डेडलाइन होती है, एक आखिरी तारीख होती है।





मगर भारतीय कार्यसंस्कृति की स्थिति चिंताजनक है और उससे ज्यादा चिन्तनीय यह तथ्य है कि हम इस लेटलतीफी की आदत सुधारने के प्रति बिल्कुल लापरवाह हैं। हमेशा देखता हूँ कि किसी रेलवे स्टेशन पर समय से छूटने वाली ट्रेन को पकड़ने के लिए भी बहुत से लोग दौड़ते नजर आते हैं। जब हमें जब कोई ससम्मान बुलाता है तो हम बिल्कुल ठीक समय पर जाना अपना अपमान समझते हैं और जानबूझकर देर से जाते हैं। अगर मेजबान देरी का कारण पूछे तू दाँत निपोर कर कर ट्रैफिक में फँसने का झूठा बहाना बना देते हैं। स्टेशन पर खड़े होकर जब हम ट्रेन के इंतजार से बोर हो रहे होते हैं तो रेलवे को जी भर के कोसते हैं कि देश में समय की कोई पाबंदी नहीं। किसी कार्यक्रम में अगर आप समय पर पहुंच जाएं तो बहुत संभव है कि खाली कुर्सियाँ आपका इंतजार करते मिलें। अगर श्रोतागण काफी तादाद में पहुंच भी जायें तो कार्यक्रम शुरू नहीं होता क्योंकि मुख्य अतिथि बहुत इत्मीनान से आता है। और अधिकांश लोगों को यह सहज स्वीकार है कि वीआईपी है इसलिए उसका देर से आना बिल्कुल जायज है। अपने या दूसरों के समय की कोई कीमत हमारी संस्कृति ने विकसित नहीं की। अगर खुद मुलाजिम हैं तो हम अपने ऑफिस में देर से जाते हैं और ऑफिस बंद होने के समय से पहले उठ जाते हैं। बीच में चाय-पानी और लंच के समय का तो कोई ठिकाना ही नहीं। आधे घंटे का लंच ब्रेक एक घंटे तक करने में हमें कोई शर्म नहीं। चाहे दीवार पर हो या हाथ में, घड़ी भारतीय संस्कृति में सिर्फ सजावट की वस्तु बन कर रह यी है।





दूसरों से समय की पाबंदी की उम्मीद रखने वाला भी कभी दूसरे के समय का ध्यान नहीं रखता। और तो और इस लेटलतीफी पर ना तो हमें कभी कोई अफसोस होता है और न ही यह एहसास होता है कि अन्य समाजों की तुलना में हम समय के प्रति कितने लापरवाह हैं। हैरानी की बात यह है कि हमने अपनी लेटलतीफी की आदत को "इंडियन टाइम" का भद्दा मुखौटा पहना दिया है। मेरे विदेश स्थित कई मित्र बताते हैं कि किसी कार्यक्रम में साथ चलने की बात हो तो आपस में तय किया जाता है कि इंडियन टाइम पर पहुँचना है या एक्चुअल टाइम पर। लिहाजा इंडियन टाइम एक मखौल भरा जुमला बनकर हमारी कार्यसंस्कृति का प्रतिबिंब बन चुका है।





रेस्टोरेंट में अगर वेटर खाना लाने में देर कर दे या सुबह का अखबार देर से आये या कचहरी का बाबू आपकी खसरे की नकल देने में तारीख पर तारीख देता रहे तो आपको बहुत परेशानी होती है और आप देश, प्रजातंत्र, कानून और सिस्टम को कोसने लगते हैं लेकिन यह हम कभी नहीं सोचते कि हमारे लापरवाही और टालमटोली के व्यवहार से दूसरों को क्या तकलीफ हो सकती है।





शायद लोग भूल चुके होंगे कि पैन नम्बर को आधार से जोड़ने का अभियान 4-5 साल से जारी है। न जाने कितनी बार तारीखें बढ़ाई जा चुकी हैं। आखिर 30 जून 2022 को सरकार ने सामान्य प्रक्रिया बन्द कर के जुर्माने समेत आखिरी तारीख 31 मार्च 2023 कर दी है। मालूम नहीं कि तब तक भी हर भारतीय ये काम कर पायेगा या नहीं। 





बहरहाल वापस इनकम टैक्स रिटर्न की बात करें तो लोगों के पास बहुत सारे बहाने हैं। जिनमें एक यह है इनकम टैक्स का सिस्टम काम ठीक से नहीं करता दूसरा यह कि बैंकों से स्टेटमेंट समय पर नहीं मिल रहा है तीसरा यह कि हर साल एक नया फार्म आ जाता है और इनकम टैक्स नियम सरलीकरण के बजाय और जटिलताएं पैदा करते जा रहे हैं। कुछ समस्याएं जरूर हैं लेकिन उनके बावजूद सरकारी आंकड़ों के अनुसार आखिरी दिन यानी 31 जुलाई को 60 लाख से ज्यादा रिटर्न जमा हुये। पिछले साल का कुल रिटर्न का आँकड़ा लगभग 7 करोड़ था। यानी सिस्टम इतना सक्षम है कि प्रतिदिन 60 लाख के हिसाब से दो सप्ताह के भीतर 7 करोड़ तक रिटर्न फाइल किये जा सकें। मगर हम आदत से मजबूर आखिरी तारीख बढ़ने का इंतजार करते हैं।





इन सब समस्याओं के बीच एक बात तो तय है कि सरकार इनकम टैक्स रिटर्न जमा करने के लिए पर्याप्त समय देती है इसलिए अगर जल्दी शुरुआत कर दी जाए तो कोई कारण नहीं कि 31 जुलाई तक लोगों के रिटर्न आसानी से फाइल हो जायें। सकते हैं लेकिन जिस तरह हम ट्रेन को सही टाइम से पकड़ने के लिए घर से नहीं निकलते क्योंकि हमें पूरा विश्वास है की ट्रेन देर से आएगी, उसी तरह इनकम टैक्स रिटर्न इसीलिए जल्दी नहीं भरते कि सरकार हर साल की तरह आखिरी तारीख बढ़ा देगी।





कभी ना कभी तो कभी ना कभी तो हमें हर काम की आखिरी तारीख तय करना ही पड़ेगी वरना अगर हम हर साल सरकार से यह उम्मीद करते रहें कि इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की तारीख फिर से बढ़ा देगी तो फिर आप ये भी मान के चलिए कि न तो कभी ट्रेन समय पर आएगी और ना आपको कचहरी का बाबू समय पर मिलेगा। हम अनुशासनहीनता के संस्कारों के साथ बेशक आगे बढ़ते रहेंगे लेकिन शायद देश आगे ना बढ़ सके।





बहुत सारे लोगों को इसे तकलीफ होने वाली है लेकिन किसी भी सिस्टम को सुधारने के लिए तकलीफ उठाना पड़ती है। जिन देशों में अनुशासन और समय की पाबन्दी है उन ने बिना तकलीफ उठाये ये हासिल नहीं किया होगा। और इसी से किसी भी समाज में कानून व्यवस्था की स्थिति सुधरती है।





एक व्यक्ति अगर चाहे तो अपने प्रयासों से आप सुधर सकता है लेकिन अगर सिस्टम को सुधारना है तो बहुत सारे व्यक्तियों को न केवल संयुक्त प्रयास करना पड़ेगा बल्कि बहुत सी सहूलियतों का त्याग भी करना पड़ेगा। हम खुद तो हमेशा लेटलतीफी करें तो फिर देश सरकार और सिस्टम से यह अपेक्षा करें कि सब कुछ समय पर हो, निहायत बेवकूफी और बेईमानी है।





यह समझना होगा कि तेज विकास के लिये अनुशासन और समय की पाबंदी सबसे जरूरी फैक्टर हैं। क्या हमारा माइंडसेट बदलेगा ताकि हम आखिरी तारीख बढ़ने का इंतजार न करें। और अगर बदलेगा तो क्या हम इस छोटे से प्रयास से अपने देश को कुछ बेहतर बना पाएंगे, यह सोचना आज की जरूरत है। 



 



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