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 ‘द्रौपदी मुर्मू’ भारतीयों की राष्ट्रपति बन रही हैं या सिर्फ ‘आदिवासियों’ की ?

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The Sootr CG
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 ‘द्रौपदी मुर्मू’ भारतीयों की राष्ट्रपति बन रही हैं या सिर्फ ‘आदिवासियों’ की ?

 ‘ माननीय ‘द्रौपदी मुर्मू’ के भारत की अगली राष्ट्रपति चुने जाने की संभावना को देखते हुए उन्हें हार्दिक अग्रिम बधाइयां। चूंकि वे देश की सर्वोच्च संवैधानिक पद ‘राष्ट्रपति’ के लिये चुनी जा रही हैं। अतः एक नागरिक का यह अधिकार व कर्तव्य है कि वह बधाई दे, शुभकामनाएं दे, व उनके उज्जवल भविष्य की कामना करे। ‘राष्ट्रपति’ के रूप में अगले पांच सालों में वे देश का सफल नेतृत्व कर विश्व धरातल पर देश का नाम रोशन कर और ऊंचाइयों पर ले जाएं, इन्ही सब शुभकामनाओं के साथ पुनः बधाइयां।





देश का एक नागरिक होने के नाते मैं भी उन्हें बधाई देता हूं। इसलिए नहीं कि वे देश की प्रथम आदिवासी राज्यपाल होकर, अब देश की प्रथम आदिवासी राष्ट्रपति होने जा रही हैं, बल्कि सामान्य पृष्ठभूमि से निकल कर वे देश के सर्वोच्च पद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समान पहुंची हैं। इसके लिए वे एक मूल भारतीय होने के नाते बधाई की पात्र हैं। आज ही ब्रिटेन में भारत मूल के ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने की संभावना के समाचार आ रहे हैं। इससे मुर्मू की सफलता महत्वपूर्ण हो जाती है। 



यह हमारे तंत्र खासकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के मूल मंत्र अंत्योदय अर्थात आखिरी पायदान पर खड़ा व्यक्ति भी सर्वोच्च पद पर पहुंच सकता है जिसकी प्रशंसा की जाना चाहिए, परन्तु पता नहीं मेरी जागरूकता में कहां,  कोई, कमी रह गई है?  जिसे शायद मैं देख नहीं पा रहा हूं। समझ नहीं पा रहा हूं कि द्रौपदी मुर्मू को देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने पर बधाई दी जा रही है अथवा आदिवासी होने के कारण बधाई दी जा रही है या विरोधी उन पर तंज कसे जा रहे हैं।





क्या गैर आदिवासी भारत में नहीं मनेगा जश्न





जब हम समरसता की बात कर रहे हैं, सर्व समाज की बात करते हैं जात-पात की निंदा करते हैं। अर्थात ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास’ प्रधानमंत्री के बहुप्रचारित भाव की उक्त मूल बाते हैं। ये सब बातें सार्वजनिक व राजनीतिक जीवन की किताबों में न केवल लिखी हैं, बल्कि देश के लगभग प्रत्येक नागरिक या राजनीतिक पार्टी या नेता उसे शब्दशः सही मान कर पालन करने की घोषणा भी करते हैं, परंतु वास्तविकता क्या है? व्यवहार व धरातल पर स्थिति क्या है? यह हम सब से छिपी नहीं है! अतः वस्तुतः इसी कड़ी के रूप में वे शायद इस वास्तविकता को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से द्रौपदी मुर्मू को देश का प्रथम आदिवासी राष्ट्रपति बनाये जाने पर न केवल बधाई देने का सिलसिला चल रहा है, बल्कि उनके पद ग्रहण करने के बाद पूरे देश में देश की सत्ताधारी व विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ने लगभग 1.30 लाख आदिवासियों गांवों में जश्न बनाने की घोषणा की है। क्या माननीय मुर्मू देश के शेष गांवों के निवासियों की राष्ट्रपति नहीं होगी? जहां जश्न मनाने की नीति की आवश्यकता पार्टी ने महसूस नहीं की?

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जनजातियों को करना समाज में समाहित





एकता, अखंडता व राष्ट्रीयता की बात करने वाले व पहचान बनाने वाले देश की एकमात्र राजनीतिक पार्टी भाजपा का यह अचंभित निर्णय एक चिंता का विषय हो गया है, क्योंकि यह नई प्रथा (कस्टम) का निर्माण कर भविष्य में जब कोई अन्य जाति जैसे उदाहरणार्थ मुस्लिम व्यक्ति राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर बैठेगा, तो काउंटर (पटल) में उस समाज के लोग भी यदि इस नई प्रथा की आड़ लेकर इसी तरह का निर्णय लेंगे, तब क्या होगा? भविष्य के गहराते बादलों में छुपी इस चिंता पर भी विचार करना होगा। वैसे भाजपा के अंदरखाने की बात की जाए तो भाजपा ने मुर्मू का चुनाव आदिवासियों और देश की आधी जनसंख्या महिलाओं के बीच तथा पूर्वी भारत में पार्टी के विस्तार के लिए किया है। परन्तु वास्तविक रूप से जब तक हम आदिवासियों (अनुसूचित जनजाति) और जनजाति का व्यापक समाज में विलीन होकर अस्तित्व हीन होकर समाज का अभिन्न (इंटीग्रल) हिस्सा नहीं बनेंगे और पिछड़ेपन के आधार पर अलग पहचान बनाये रखेंगे, तब तक उनकी समाज में समरसता व समग्र विकास संभव नहीं हो पायेगा। यदि वास्तव में ऐसा होता तो डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा संविधान बनाते समय प्रारंभ में उन्होंने उनके विकास के लिए मात्र 10 वर्ष का आरक्षण का प्रावधान नहीं रखते। जो भी सरकार रही है, ने वोट की राजनीति के लिए प्रत्येक 10 वर्ष बाद आरक्षण को बढ़ाया और आगे भी कब तक बढ़ेगा? इसकी अंतिम समय सीमा आज का कोई भी राजनीतिज्ञ नहीं बता सकता है।





प्रत्येक भारतीय को जश्न में किया जाए शामिल

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 आखिरकार देश की लगभग 140 करोड़ से अधिक जनसंख्या में, जिसमें समस्त वर्ग के लोग शामिल हैं, चाहे वह अगड़ा, पिछड़ा या अति पिछड़ा वर्ग, कुलीन वर्ग निर्धन मध्यम या अमीर सब शामिल हैं। एक आम सामान्य परिस्थिति से भारत के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के कारण ‘महामहिम मुर्मू’ की जीत का जश्न  मना कर हम प्रत्येक भारतीय को शामिल क्यों नहीं कर सकते? जिस प्रकार भारत के प्रधानमंत्री चाय वाले से जीवन प्रारंभ कर देश के सर्वोच्च कार्यपालिका के पद पर पहुंचे। ठीक इसी प्रकार द्रौपदी मुर्मू का जीवन भी प्रधानमंत्री के समान ही संघर्षशील रहा और वे भी संघर्ष करते हुए आज सर्वोच्च पद पर पहुंची हैं। टीचर की नौकरी के बाद क्लर्क की नौकरी करती हुई पार्षद बनकर राजनीतिक जीवन प्रारम्भ किया।





75 सालों मे भी हम नहीं बन पाए सच्चे भारतीय





देश स्वाधीनता का 75 वां  साल अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अमृत महोत्सव पर हम सब का यह प्राथमिक, संवैधानिक और सामाजिक दायित्व बनता है कि समाज की समरसता बनी रही, कोई वर्ग-विभेद न हो। स्वाधीनता का ‘अमृत’ अमृत वर्ष पर सब पर बरसे और हम जात-पात, क्षेत्रवाद (उत्तर-दक्षिण)से ऊपर उठकर सिर्फ और सिर्फ सच्चे अर्थों में एक भारतीय बने। 75 साल में यदि हम एक सम्पूर्ण भारतीय नहीं बन पाये हैं और न बना पाए हैं, तो हम देश के किस विकास? की बात करना चाह रहे है। जो कुछ विकास हुआ है, वह भारत देश का है या भारतीयों का है अथवा समाज के विभिन्न नामों व वर्गों से जाने वाले लोगों का है? यदि एक पिछड़े समाज के व्यक्ति के उच्चतम पद पर पहुंच जाने पर उस समाज का अवरूद्ध विकास विकासशील या विकसित हो जाता तब तो यह तर्क उचित लगता। परन्तु क्या वास्तव में ऐसा विकास हुआ है?

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कभी - कभी सर्व सम्मति भी देश के लिए द्यातक





अभी अनुसूचित जाति के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद निवृतमान हो रहे हैं। पूर्व में हमारे देश में मुस्लिम समाज के भी राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद हुए। हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति हुए। क्या सरकार या किसी एजेंसी के पास ऐसा कोई आंकड़ा है कि इन पांच सालों से दलित समाज से राष्ट्रपति होने के कारण पिछले पांच सालों की तुलना में किसी भी क्षेत्र में उनका ज्यादा विकास हुआ है? सरकार को इन आंकड़ों को जनता के बीच में लाना चाहिए। अन्यथा ये कथन/बयान/नारे सिर्फ वोटों की राजनीति के तहत ही माने जाएंगे। कोई भी पार्टी ‘दूध की धुली’ नहीं है। इस ‘राजनीतिक हमाम में सब नगे’ हैं। यह एक तथ्य जनता के बीच में स्वीकृति के रूप में सर्वानुमति से मान्य है। परंतु देशहित में कभी-कभी सर्वसम्मति नुकसानदायक होती है। इसलिए जिस दिन इस मुद्दे पर असहमति के बीज पैदा हो जाएंगें, उस दिन से वोट की यह राजनीति भी कमजोर पड़ती जाएगी, तब शायद देश स्वस्थ होकर मजबूती की ओर बढ़ेगा। 



(लेखक rajeevak2@gmail.com वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व सुधार न्यास अध्यक्ष है)



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