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जुबैर और नुपुर शर्मा के साथ पूरा इंसाफ

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The Sootr CG
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 जुबैर और नुपुर शर्मा के साथ पूरा इंसाफ

डॉ. वेदप्रताप वैदिक. सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) और मोहम्मद जुबैर (Mohammad Zubair) के साथ पूरा न्याय किया है। उसने दोनों के खिलाफ की गई दर्जनों पुलिसिया शिकायतों (FIR) को रद्द करते हुए कहा है कि उनके खिलाफ जो भी मुकदमे चलें, वे किसी एक ही शहर में चलें। कई शहरों में अगर उन पर मुकदमे चलते रहे तो कई समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। सबसे पहली तो यही कि कई फैसले परस्पर विरोधी भी हो सकते हैं। दूसरी समस्या यह कि आरोपी व्यक्ति कितने शहरों की अदालतों का चक्कर लगाता रहेगा?  तीसरी समस्या उसकी अपनी सुरक्षा की है। वैसे जुबैर को उनके विवादास्पद ट्वीट (Tweet) पर वैसी धमकियां नहीं मिल रही हैं जैसी कि नूपुर शर्मा को मिल रही है।





पत्रकार की अभिव्यक्ति की आजादी में कोई बाधक कैसे ? 





कानून की जिन लोगों को थोड़ी भी समझ है, उन्हें पता है कि जुबैर और नूपुर दोनों को ही अदालत निर्दोष घोषित करनेवाली हैं। नूपुर की गिरफ्तारी तो अभी तक नहीं हुई है लेकिन जुबैर को हफ्तों जेल में डाले रखा गया है। उन्हें जमानत भी नहीं मिली थी। सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें तुरंत रिहा किया और उसने उप्र की सरकार और पुलिस की भी कड़ी आलोचना की है। सर्वोच्च न्यायालय के जजों ने कहा है कि किसी भी पत्रकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कोई भी बाधक कैसे बन सकता है? 





किसी फिल्म के संवाद को ट्वीट करना क्या इतना बड़ा गुनाह ?  

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यदि जुबैर ने 2018 में किसी फिल्म के संवाद को ट्वीट कर दिया तो क्या उसने इतना खतरनाक काम कर दिया है कि उसे जेल में बंद कर दिया जाए, उसे जमानत भी नहीं दी जाए और उसे दंगे भड़काने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाए? जजों ने इस तथ्य पर भी एतराज जाहिर किया है कि जुबैर के खिलाफ कई एजेंसियां जांच-पड़ताल में जुट गई हैं। जुबैर पर उत्तर प्रदेश की पुलिस ने तरह-तरह के आरोप लगाए हैं। उसका तर्क था कि जुबैर पत्रकार नहीं है। वह ‘अल्ट न्यूज़’ नामक संस्था चलाता है और उसके जरिए वह दो करोड़ रु. सालाना कमाता है।





सुप्रीम कोर्ट का फैसला धर्म-निरपेक्ष भारत में उचित और शोभनीय    





2018 में उसने एक फिल्म के एक चित्र को फिर से ट्वीट करके लिख दिया था- ‘2014 से पहले हनीमूल होटल, 2014 के बाद हनुमान होटल’। इसी तरह के अन्य कई आरोप जुबैर पर लगाए गए थे। इन सब आरोपों की जांच अब दिल्ली की अदालत करेगी। इससे भी अधिक दयनीय मामला नुपुर शर्मा का है। एक टीवी संवाद में जब एक वक्ता ने शिवलिंगों का मजाक उड़ाया तो नुपुर ने जवाब में एक हदीस को उद्धृत कर दिया। इसे पैगंबर की शान में गुस्ताखी माना गया और उसके चलते दो लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई, नुपुर की हत्या की धमकियां दी गईं और उस पर मुकदमे दायर हो गए। जुबैर के खिलाफ सरकारी रवैए और नूपुर के खिलाफ कुछ लोगों के रवैए से ऊपर उठकर सर्वोच्च न्यायालय ने जो निष्पक्ष रवैया अपनाया है, वही धर्म-निरपेक्ष भारत में उचित और शोभनीय है। 



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