ग्वालियर- चंबल की बीहड़ में इन डाकुओं का था आतंक
मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कई कुख्यात डाकुओं ने आतंक फैलाया था। इनकी कहानियां आज भी लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी रहती हैं।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कई कुख्यात डाकुओं ने आतंक फैलाया था। इनकी कहानियां आज भी लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी रहती हैं।
फूलन देवी को बैंडिट क्वीन के नाम से जाना जाता था। उन्होंने चंबल के बीहड़ों में अपनी दस्यु गतिविधियों के लिए प्रसिद्धि पाई। बाद में उन्होंने आत्मसमर्पण किया और राजनीति में कदम रखा।
चंबल के सबसे कुख्यात डाकुओं में से एक थे। उन्होंने 1980 के दशक में आत्मसमर्पण किया और उन्हें डाकू राजा के नाम से जाना जाता था।
एक खतरनाक और कुख्यात डाकू, जिनके खिलाफ कई गंभीर अपराधों के मामले थे। वह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में एक्टिव था।
एक अन्य महिला डाकू जिसने चंबल के बीहड़ों में अपना आतंक फैलाया। उन्होंने भी बाद में आत्मसमर्पण किया था।
एक और कुख्यात डाकू, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने कई अपराधों को अंजाम दिया और बीहड़ों में आतंक का माहौल बनाया। लक्ष्मण सिंह लोग सामने से अपना कीमती सामान उसे सौंप देते थे।
चंबल के एक और प्रमुख डाकू थे, जिनकी गतिविधियाँ पूरे क्षेत्र में जानी जाती थीं। उसे चंबल का आखिरी डाकू भी कहा जाता था। उसे देखकर ही लोगों की पतलून गीली हो जाती थी।
एक और महिला डाकू थी। इसने अपने गिरोह के साथ चंबल के बीहड़ों में खूब आतंक मचाया था। हालांकि पुलिस के सामने आखिर महिला डाकू ने घुटने टेक दिए थे।
कुसमा नाइन बीहड़ का जाना माना नाम था। उसे बेरहमी के लिए जाना जाता था। कानपुर देहात के बेहमई कांड का बदला लेने के लिए वह डाकू बन गई थी।
13 साल की सीमा परिहार का अपहरण बीहड़ के डाकुओं ने कर लिया था। इसके बाद सीमा बीहड़ में रहने के दौरान डकैतों की जीवन शैली पसंद आई कि उसने भी डाकू बनने की ठान ली। जवानी की दहलीज तक पहुंचते-पहुंचते सीमा परिहार का नाम चंबल में आतंक बन गया था।
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