BEIJING: चीन में बैंकों से पैसा निकालने पर रोक, प्रदर्शनों के खिलाफ सरकार ने सड़क पर टैंक उतारे, 33 साल पहले की घटना की यादें ताजा

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Atul Tiwari
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BEIJING: चीन में बैंकों से पैसा निकालने पर रोक, प्रदर्शनों के खिलाफ सरकार ने सड़क पर टैंक उतारे, 33 साल पहले की घटना की यादें ताजा

BEIJING. चीन की कम्युनिस्ट सरकार अब नए आरोपों के घेरे में है। देश में बैंकों से पैसा निकालने पर रोक लगा दी गई है। बैंक ऑफ चाइना ने कहा है कि यहां जमा पैसा एक इन्वेस्टमेंट है। इसे निकाला नहीं जा सकता। चीन सरकार के इस फैसले के खिलाफ देश में प्रदर्शन हो रहे हैं। उधर, सरकार ने भारी संख्या में टैंकों को सड़कों पर उतार दिया है।





इस घटना ने पूरी दुनिया को फिर से थ्यानमेन स्क्वेयर की याद दिला दी है। 33 साल पहले 1989 में सरकार के खिलाफ बीजिंग के थ्यानमेन स्क्वेयर पर प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ भी टैंक उतारे गए थे। इस भयंकरतम कार्रवाई में 10 हजार लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर छात्र थे। अब इसे थ्यानमेन 2.0 कहा जा रहा है।





यहां हो रहे प्रदर्शन





चीन के हेनान प्रोविंस में पिछले कई हफ्तों से पुलिस और बैंक में पैसा जमा करने वाले लोगों के बीच झड़प जारी है। लोगों का कहना है कि अप्रैल 2022 से ही उन्हें सेविंग्स निकालने से रोका जा रहा है। इन प्रदर्शनों के बीच चीनी लिबरेशन आर्मी (PLA) के टैकों के फोटो-वीडियो सोशल मीडिया वायरल हो रहे हैं। इसे प्रदर्शनकारियों को डराने के लिए लगाया गया है। 10 जुलाई को हेनान के झोंगझोऊ में बैंक ऑफ चाइन की ब्रांच के सामने 1000 से ज्यादा प्रदर्शनकारी जुटे थे और जोरदार प्रदर्शन किया, लेकिन अब तक चीनी अधिकारी उनकी मांगों को अनसुना करते आए हैं। 





किस्तों में पैसा मिलेगा





टैंकों को सड़कों पर इसलिए उतारा गया है ताकि लोग बैंकों तक ना पहुंच पाएं। हेनान की राजधानी झेंगझोऊ में प्रदर्शन के हिंसक होने के बाद अथॉरिटीज ने कहा कि वे बैंकों से लोगों के फंड को किश्तों में रिलीज करेंगे। हेनान में कई रूरल बैंकों ने लोगों के पैसों को कई महीनों से रोक रखा है।15 जुलाई को बैंकों को वादे के मुताबिक, लोगों को पहली किस्त देनी थी, लेकिन केवल कुछ ही लोगों को पैसे मिल पाए। अब सवाल ये है कि क्या चीनी बैंकों के पास देने के लिए पैसा ही नहीं बचा है। क्या चीनी बैंक दिवालिया हो गए हैं?





चीन में कहां से आता है पैसा?





चीन में स्थानीय सरकारों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा जमीन को खासतौर पर रियल एस्टटे डेवलेपर्स को लीज पर देने से आता है, लेकिन कई प्रोजेक्ट्स के अधूरे पड़े होने से कंस्ट्रक्शन कंपनियों ने फिर से जमीन नहीं खरीदी। इससे स्थानीय सरकार की कमाई पर असर पड़ा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन में घर खरीदारों के लोन ना चुकाने की समस्या से तुरंत इसलिए नहीं निपटा जा रहा, क्योंकि रियल एस्टेट के सीनियर अधिकारियों को छोड़ दिया जाए तो चीन में हर सफल रियल एस्टेट डेवलेपर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी यानी CPC के कुछ ताकतवर लोगों से जुड़ा है। 





चीन के सबसे बड़े प्रॉपर्टी डेवलेपर एवरग्रांड के शी जियायिन और CPC राजनेता झेंग क्विंगहोंग की भतीजी झेंग बाओबाओ पैसे बनाने के लिए सीधे तौर पर रियल एस्टेट कारोबार से जुड़े रहे हैं। साधारण रियल एस्टेट डेवलेपर्स को भी अपने कामों को पूरा कराने के बदले में सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देनी पड़ती है। ऐसे में अगर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेता अधूरे प्रोजेक्ट्स और रियल एस्टेट में करप्शन की जांच करना चाहते हैं, तो उन्हें अपनों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी पड़ेगी।





हाल ही में वायरल हुए एक वीडियो में बीजिंग की सिंघुआ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर झेंग युहुआंग ने कहा था कि 2022 चीन के लिए मुश्किल साल है। झेंग के अनुसार 2022 के पहले क्वॉर्टर में चीन में 4.60 लाख कंपनियां बंद हो चुकी हैं और 31 लाख बिजनेस परिवार दिवालिया हो गए हैं। इस साल 1.76 करोड़ कॉलेज ग्रेजुएट निकले हैं, जिससे नौकरियों का संकट पैदा हो गया है। चीन में करीब 8 करोड़ युवा बेरोजगार हैं।





चीन में इकोनॉमी तो बढ़ी, लेकिन कई समस्याएं भी 





80 के दशक में चीन बड़े-बड़े बदलावों से गुजर रहा था। चीनी कम्युनिस्ट नेता डेंग जियाओपिंग ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। इसकी बदौलत देश में विदेशी निवेश बढ़ा और प्राइवेट कंपनियां आने लगीं। इससे चीन की इकोनॉमी ने रफ्तार तो पकड़ी, लेकिन भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याएं भी बड़े रूप में सामने आईं। चीन के लोग जब अमेरिका, ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक देशों के संपर्क में आए तो उनमें भी लोकतंत्र के प्रति दिलचस्पी बढ़ने लगी। 





धीरे-धीरे इन समस्याओं ने चीन में आंदोलन का रूप लेना शुरू कर दिया। जियाओपिंग ने इसके लिए कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव हू याओबांग को जिम्मेदार माना। हू याओबांग चीन में राजनीतिक सुधारों की पैरवी करते आए थे। चीन की राजधानी बीजिंग के थ्यानमेन स्क्वेयर पर 2 जून 1989 को चीनी सरकार के मार्शल लॉ लागू करने के बावजूद लोकतंत्र की मांग करते हुए लाखों चीनी नागरिक जुट गए थे। मार्शल लॉ लगाने के बाद कम्युनिस्ट सरकार ने हजारों प्रदर्शनकारी नेताओं को जेल में डाल दिया था। 4 मई 1989 को स्थानीय कॉलेज और यूनिवर्सिटी के 7 हजार से ज्यादा छात्रों ने तानाशाही को खत्म करने और लोकतंत्र के लिए थ्यानमेन स्क्वेयर तक मार्च किया था।







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2 जून को थ्येनमेन स्क्वेयर पर प्रदर्शन करते लोग।







क्या हुआ था उस दिन...







4 जून 1989 के दिन थियानमेन स्क्वायर पर लाखों छात्र और लोग शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे, तभी रात के अंधेरे में हथियारों से लदे चीनी सैनिक अपने साथ टैंक लेकर आने लगे। सेना ने पूरे स्क्वायर को घेर लिया और गोलियां बरसाना शुरू कर दिए। उस वक्त वहां पर 10 लाख से ज्यादा प्रदर्शनकारी मौजूद थे। इनमें से ज्यादातर छात्र थे। प्रदर्शनकारियों को अनुमान नहीं था कि उनके ही देश की सेना उन पर इस तरह से गोलियां बरसाएगी। इस कार्रवाई में 10 हजार लोग मारे गए थे। वहीं चीन की सरकार सिर्फ 200 लोगों के मरने का दावा करती है। चीन ने थियानमेन पर हुए नरसंहार को इतिहास से मिटाने की पूरी की कोशिश की। चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने आज भी इस नरसंहार पर चीन में किसी भी तरह की चर्चा पर रोक लगा रखी है। यहां तक कि चीन में इंटरनेट और किताबों में भी इसके जिक्र पर रोक है।





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