News Strike: PM Modi के बार बार MP आने के पीछे है बड़ा चुनावी सबब !

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हरीश दिवेकर, BHOPAL. अपने जन्मदिन के मौके पर मध्यप्रदेश को चीतों की सौगात देकर गए पीएम नरेंद्र मोदी एक बार फिर मध्यप्रदेश का रुख करने वाले हैं। एक महीने के अंदर एमपी में ये उनका दूसरा बड़ा दौरा होगा। क्या आपको ऐसा कोई और वक्त याद आता है जब पीएम मोदी ने इतनी जल्दी जल्दी एमपी के फेरे किए हैं। इन दौरों को बस यूं ही आम विजिट मत समझिए। चीतों को खुशामदीद कहते हुए बटन दबाने और फिर महाकाल के दरबार में आने तक हर कदम का एक गहरा सियासी मतलब है।

चुनाव में बीजेपी नहीं लेना चाहती कोई रिस्क

सवा साल बाद होने वाले चुनाव के लिए बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। पार्टी के स्थानीय नेता भले ही अपने एसी कमरों में आराम फरमाते हुए सिर्फ हुक्म जारी कर रहे हैं। लेकिन आलाकमान पुरसुकून नहीं है। दिल्ली के स्तर से मध्यप्रदेश को लेकर कोई कोताही बरती नहीं जा रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह इस बार कांग्रेस को कोई मौका देने के मूड में नहीं है। 2018 में मिली चुनाव का जख्म इतना गहरा है कि उसकी टीस अब भी बीजेपी को सताती है। यही वजह है कि अब ये तिकड़ी नए जख्म झेलने का इरादा नहीं रखती। नरेंद्र मोदी के तेजी से हो रहे एमपी दौरे इसी ओर इशारा करते हैं। हर दौरे के दौरान होने वाली उनकी मुलाकातें और बातें एमपी की चुनावी सियासत से ताल्लुक रखती हैं।

बीजेपी के हर बड़े नेता का मध्यप्रदेश पर फोकस

नवंबर 2023 में पांच राज्यों के चुनाव हैं। इन पांच राज्यों में बीजेपी के आलानेताओं की आवाजाही सबसे ज्यादा एमपी में बढ़ी है। यूपी चुनाव निपटने के बाद भी बीजेपी ने अपना चुनावी खटका बंद नहीं किया है। बल्कि उसे बूस्टर मोड पर डाल दिया है। यूपी चुनाव के साथ से लेकर अब तक बीजेपी का हर बड़ा नेता एमपी को अपने फोकस में लेकर चल रहा है। बीते नवंबर से लेकर अब तक पीएम नरेंद्र मोदी के दो दौरे हो चुके हैं। तीसरा बस कुछ ही दिन में होना है। वो एक बार फिर एमपी का रुख करेंगे आने वाली 11 अक्टूबर को। जब वो महाकाल के नए परिसर का उद्घाटन करेंगे।

मध्यप्रदेश को मिल रही तवज्जो

पीएम मोदी के अलावा अमित शाह और जेपी नड्डा के भी दौरे लगातार जारी हैं। इन सबके बीच जब वक्त मिलता है तब एमपी के नेता ही उनके दरबारों में हाजरी लगाने पहुंच जाते हैं। कहने का मतलब साफ है। इस बार बीजेपी मध्यप्रदेश को उसी तरह तवज्जो दे रही है, जिस तरह साल की शुरूआत में हुए चुनावों के बीच उत्तरप्रदेश को अहमियत दी गई थी। जबकि इससे पहले साल 2018के चुनाव में मोदी और शाह के दौरे हुए जरूर थे। लेकिन उनमें इतनी तेजी नहीं थी। पिछले चुनाव में बीजेपी ने ऑपरेशन पंद्रह दिन चलाया था। जो चुनाव से कुछ ही दिन पहले शुरू हुआ था। इस अभियान के तहत भी पीएम मोदी और अमित शाह के धुआंधार दौरे हुए। लगातार पांच दिन रैलियां और सभाएं जारी रहीं। इसके बावजूद बीजेपी को एमपी में हार का मुंह देखना पड़ा।

हर दौरे के पीछे बड़ी चुनावी प्लानिंग

पिछले चुनाव के नतीजे और कांग्रेस की सक्रियता को देखकर बीजेपी इतना तो भांप ही गई है कि एन वक्त पर चुनाव की बागडोर अपने हाथ में लेकर कोई तीर नहीं मारा जा सकता। यही वजह है कि इस बार बीजेपी ने यूपी की तर्ज पर ही मध्यप्रदेश की रणनीति तैयार की है। कब कहां कौन सा नेता सभा या रैली करेगा। किस क्षेत्र में जाकर किन मुद्दों को टारगेट किया जाएगा। इसकी पूरी गहराई से प्लानिंग की गई है। कूनो में चीतों का आना। यहां आकर पीएम मोदी का उन्हें जंगल में छोड़ना। इसके अलावा स्वसहायता समूहों से बातचीत और अब महाकाल में विजिट। हर दौरे के पीछे बड़ी चुनावी प्लानिंग है। जिसका असर धीरे धीरे दिखाई भी देने लगेगा। राजनीतिक जानकार भी ये मान रहे हैं कि बीजेपी जिस तरह माइक्रो लेवल का सर्वे करके हर जगह के अनुसार रणनीति तैयार करती है। इस बार मध्यप्रदेश के चुनाव में भी उसी तरह की रणनीति दिखाई देगी।

पीएम के दौरे के साथ 2023 के विधानसभा चुनाव का आगाज

पीएम बनने के बाद मोदी ने पहली बार अपना जन्मदिन मध्यप्रदेश में मनाया है। जिसके बाद से ही इसके सियासी मायने निकाले ही जा रहे हैं। वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि चीतों के रूप में उन्होंने एमपी को बड़ी सौगात दी है। जिसका असर आसपास के टूरिज्म और ग्रामीणों पर भी पड़ेगा। इसे चुनावी चश्मे से देखने की वजह एक ही है कि पीएम के एक दौरे कई मतलब होते हैं। राजनीतिक जानकारों का तो यहां तक मानना है कि पीएम मोदी के इस दौरे के साथ 2023 के विधानसभा चुनाव का आगाज भी हो जाएगा। क्योंकि एमपी को अफ्रीका  से आए चीतों की सौगात के साथ स्वसहायता समूह से जुड़ी 57 हजार महिलाओं से पीएम मोदी ने संवाद भी किया। क्योंकि स्वसहायता समूह वो यूनिट हैं जो सरकारी योजनाओं को जमीन तक पहुंचाने की मजबूत कड़ी कही जाती हैं। ग्रामीण वोटर तक पहुंच बनाने का सबसे मजबूत सेतु भी इसे कहा जा सकता है। खास ये भी है पीएम से रुबरू होने के लिए जिन तीन महिलाओं का चयन किया गया था वो आदिवासी ही थीं।

दौरे का एक सियासी मकसद

स्वसहायता समूह शहरी से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में सरकार और समाज के बीच की सबसे मजबूत कड़ी माने जाते हैं। इन समूहों के जरिए सरकारी योजनाओं का प्रचार प्रसार होता है। इनकी महिलाओं की समाज में सीधी पैठ होती है और ये ग्रामीण भारत की नब्ज होते हैं जिनसे कई घर चलते हैं। इसी वजह से ये दौरा एक सियासी मकसद के साथ पूरा हुआ माना जा रहा है।

आदिवासी वोट बैंक पर बीजेपी का फोकस

फिलहाल बीजेपी का सबसे ज्यादा फोकस आदिवासी वोटबैंक पर बना हुआ है। क्योंकि 17 सितंबर को पीएम मोदी के दौरे की तस्वीरों से ये  साफ हो गया कि 2023 के विधानसभा चुनाव व 2024 के आम चुनाव में बीजेपी का फोकस आदिवासी वोटर पर है। मध्यप्रदेश की विधानसभा में 47 आदिवासी सीटें हैं। लंबे वक्त तक जो कांग्रेस को जीत का सेहरा बांधती रही हैं। बीजेपी की तैयारी कांग्रेस के इस स्थाई वोट बैंक की तासीर बदल देने की है। यही वजह है कि केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक सत्ता में सीधी भागीदारी से लेकर सम्मान और समाधान तक आदिवासी बीजेपी की प्राथमिकता में शामिल हो चुके हैं।

ग्वालियर-चंबल में श्योपुर आदिवासी इलाका

ग्वालियर-चंबल में आने वाला श्योपुर आदिवासी इलाका है। भाजपा ने 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर ही चोट खाई थी। इस बार उस चोट को भरने की कोशिश है। खास बात ये है कि पीएम मोदी से लेकर सीएम शिवराज तक अपनी सरकार की योजनाओं का लाभ लेने में भी माहिर हैं। इसलिए माना जा रहा है कि  कूनो का कार्यक्रम भी एमपी के 2023 के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बहुत अहम साबित होगा। इसके बाद बारी आएगी महाकाल की। 11 अक्टूबर को महाकाल के दरबार में शीष झुकाकर बीजेपी के आला नेता एक बार फिर हिंदुत्व की अलख जगाएंगे।

भारत जोड़ो यात्रा को बेअसर करने में जुटी बीजेपी

2018 के चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष रहे राहुल गांधी ने एमपी में जमकर दौरे किए थे। जिसका नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस बीजेपी की नींव हिलाने में कामयाब रही। एक बार फिर राहुल गांधी मध्यप्रदेश में रहने वाले हैं। उनकी भारत जोड़ो यात्रा एमपी के कई जिलों से गुजरेगी। उससे पहले ही पीएम मोदी समेत बीजेपी के आला नेताओं ने मध्यप्रदेश का रूख करना शुरू कर दिया है। ये राहुल गांधी की यात्रा को बेअसर करने के साथ ही प्रदेश में लगातार एक्टिव हो रही कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने की बड़ी चुनावी कवायद ही नजर आती है।