INDORE: कहां Cong की राह कठिन, शुक्ला की रॉबिनहुड इमेज पुष्यमित्र के लिए चुनौती

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INDORE. #MoodOfMadhyaPradesh #KaunBanegaMahapour कांग्रेस (Congress) ने इंदौर में बीते 22 सालों से नगर निगम चुनाव में जीत का सूखा खत्म करने के लिए अपने विधायक और बड़े ब्राह्मण चेहरे संजय शुक्ला (Sanjay Shukla)को मैदान में उतारा है। लंबी उठापटक और आंतरिक खींचतान के बाद बीजेपी (BJP) ने यहां से हाइकोर्ट के अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) पुष्यमित्र भार्गव (Pushyamitra Bhargava) को अपना प्रत्याशी (candidate) बनाकर चुनाव को हाईप्रोफाइल (high profile) बना दिया है। यहां से बीजेपी के कद्दावर नेता व विधायक रमेश मेंदोला (Ramesh Mendola)प्रबल दावेदार माने जा रहे थे,लेकिन पार्टी की गाइडलाइन में फंसे मेंदोला का दौड़ से बाहर होना बीजेपी के गले की फांस भी साबित हो सकता है। ऐसे में अब दोनों दलों के प्रदेश अध्यक्षों के लिए भीअब इंदौर मेयर की कुर्सी प्रतिष्ठा (prestige) का बड़ा सवाल बन गई है। दोनों ही दल यहां कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे और अपनी सारी ताकत झोंकते नजर आएंगे। आइए नजर डालते हैं इंदौर में महापौर पद के लिए दोनों प्रत्याशियों की ताकत और चुनौतियों पर।  

पुष्यमित्र भार्गव- भाजपा

ताकतः साफ-सुधरी ईमानदार छवि। युवा चेहरा। संगठन सबसे बड़ा सहारा। संघ परिवार से सीझे संबं​ध का फायदा। ब्राह्मण वर्ग के करीब तीन लाख वोटर्स के सहयोग और समर्थन की उम्मीद। बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा की पंसद। 

चुनौतीः अब तक नहीं लड़ा कोई चुनाव। बगैर कोई चुनाव लड़े सीधे मेयर का टिकट मिला। पार्टी में पहचान लेकिन जनता में सक्रियता कम। टिकट से वंचित बीजेपी के अन्य दावेदारों और समर्थकों को साधना। बड़े नेताओं की अंदरूनी नाराजगी। 

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संजय शुक्ला- कांग्रेस

ताकतः सरल,सहज उपलब्ध। ब्राह्मण होने के कारण शहर के करीब तीन लाख ब्राह्मण वोटर्स के समर्थन का दावा। कांग्रेस से सभी गुटों की मान्यता। सेबोटेज का खतरा कम। कोरोना काल में जनहित के कामों से जनता में पैठ बढ़ाई। आर्थिक रूप से सक्षम एवं दबंग नेता की छवि। अपनी एक नंबर विधानसभा में अपनी जेब से खर्च पर मतदाताओं को विभिन्न नागरिक सुविधाएं मुहैया कराईं। पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक। पिता और भाई भी बीजेपी की राजनीति में सक्रिय। एक नंबर विधानसभा क्षेत्र का चुनाव बीजेपी के मजबूत नेता सुदर्शन गुप्ता को हराकर प्रतिष्ठा बनाई। बीते तीन साल से लगातार जनता के बीच सक्रिय। शहर में करीब सवा लाख मुस्लिम कांग्रेस के परंपरागत वोटर।इनमें से अधिकांश इनकी विधानसभा क्षेत्र के वोटर हैं। 

चुनौतीः शहर में कांग्रेस का संगठन बेहद कमजोर। मेयर का सारा चुनाव खुद के बूते पर लड़ना है। बीजेपी की तरह कांग्रेस के पास शहर में कोई बड़ा और सर्वमान्य चेहरा नहीं जो उनके लिए मददगार साबित हो।इनकी सक्रियता एक नंबर विधानसभा तक ही सीमित। इंदौर विधानसभा क्रमांक- दो और चार में बीजेपी की लीड (जो 80 हजार तक हो जाती है) को कम करने का कोई रोडमैप नहीं। इन दोनों विधानसभाओं में बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस का संगठन कमजोर है जिसका असर संजय शुक्ला की चुनावी संभावनाओं पर पड़ सकता है।