कुछ साल पहले तक जनवार गांव के लोग जीवन निर्वाह के लिए जंगल से लकड़ी लाकर बेचा करते थे। इस गांव में सड़क और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हुआ करती थी। पन्ना जिले के इस गांव की आबादी लगभग 1400 है। ये एक आदीवासी बाहुल्य गांव है। यहां अब गांव के ज्यादातर परिवार आजीविका के लिए खेती करते हैं।
क्या कहते हैं गांव के लोग
यहां ही मिठाईलाल गोंड रहते है, जो 45 साल के है। उनका परिवार भी लकड़ी काटकर आजीविका चलाता था लेकिन अब वो जैविक खेती करते हैं। मिठाईलाल बताते हैं, " मेरे पास करीब ढ़ाई एकड़ जमीन है जिसमें जैविक तरीके से सब्जियों की खेती करता हूं। खेत से जब सब्जियां निकलती हैं पन्ना में बेच आता हूं तो ठीक पैसे मिल जाते हैं।" यही के निवासी 65 साल के लखनलाल कुशवाहा भी सब्जी की खेती में दूर तक अपनी पहचान बना चुके है। वो करीब 15-16 एकड़ में बाग और सब्जियों की खेती करते हैं। बागवानी में आम और अमरुद के पेड़ लगे हैं।लखनलाल बताते हैं कि "ज्यादातर जमीन पर जैविक तरीके से सब्जियां उगाता हूं। यहां तक कोरोना के दौरान भी हमें सब्जियां बेचकर रोजाना 5000-6000 रुपए मिल रहे थे।" जनवार पन्ना शहर से काफी पास है तो गांव के लोगों को समस्या नहीं होती है। पन्ना के सहायक संचालक उद्यानिकी बताते हैं, " पूरे गांव में करीब 40 परिवार 50 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन में सब्जियों की खेती होती है, जिसमें ज्यादातर आदिवासी हैं।
स्केटबोर्ड वाला गांव
जनवार गांव 5-6 साल पहले स्केटबोर्डिंग के लिए सुर्खियों में आया था। कुछ वर्ष पूर्व तक इस गांव में सड़क व बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं थी। गांव की आदिवासी महिलाएं जंगल से लकड़ी का गट्ठा सिर में रखकर पन्ना बेचने के लिए आती थीं। इसी से उनके परिवार का गुजारा होता था, लेकिन स्केटिंग ने बीते 5-6 सालों में ही इस गांव की तस्वीर को बदल दी है। स्केटिंग में माहिर इस छोटे से गांव के बच्चे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर धूम मचा रहे हैं। इन्हीं के कारण ये गांव फैमश हुआ है और अब हर स्तर पर तरक्की कर रहा है।