किसान का वैज्ञानिक बेटा : डॉ रमेश रालिया ने किसानों को दी नैनो तरल यूरिया की सौगात

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किसान का वैज्ञानिक बेटा : डॉ रमेश रालिया ने किसानों को दी नैनो तरल यूरिया की सौगात

भारत दुनिया का पहला देश बन गया है, जहां नैनो यूरिया तरल की लॉन्चिंग हुई है। इफ्को ने इसे तैयार किया है। लेकिन इसके पीछे एक किसान के बेटे की मेहनत है , नाम है डॉ. रमेश रालिया।

कौन है रमेश रालिया ?

डॉ. रमेश रालिया इफको की गुजरात के गांधीनगर के कलोल में स्थित रिसर्च सेंटर "नैनो जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र" के रिसर्च एंड डेवलपमेंट हेड और सेंटर के जनरल मैनेजर हैं। मूलरुप से राजस्थान में जोधपुर जिले के गांव खारिया खंगार से रहने वाले डॉ. रालिया केमाता-पिता गांव में ही रहते और खेती करते हैं। मां भंवरी देवी 5 वीं तक पढ़ी हैं। पिता बाऊजी पारसराम ने इंटर करने के बाद राजस्थान रोडवेज में कुछ महीने तक नौकरी की बाद में पिता के कहने पर खेती बाड़ी से जुड़ गए। डॉ सालिया ने 12 वीं तक की पढ़ाई सरकारी स्कूल में की, अभावों में दिन गुजारे डॉ. रालिया को पहली बार साइकिल तब मिली थी जब वो बीएससी कर रहे थे। साल 2009 में डॉ रालिया जोधपुर के आईसीएआर के नैनो टैक्नोलाजी के पहले प्रोजेक्ट में रिसर्च एसोसिएट्स के रूप में चुने गए। पीएचडी के दौरान अमेरिका से बुलावा आया लेकिन नहीं गए बाद में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल की परीक्षा देकर विदेश जाने का फैसला किया। अमेरिका में काम करते हुए डॉ रालिया ने 60 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधियों के साथ नैनो तकनीक पर काम किया।आधा लीटर का डिब्बा, 45 किलो बोरी के बराबर31 मई को इफ्को ने नैनो यूरिया लॉन्च किया है । इफ्को के मुताबिक ये किसानों के लिए सौगात है। नैनो यूरिया का आधा लीटर का डिब्बा वो ही काम करेगा जो 45 किलो वाली यूरिया की बोरी करती है। दावा ये भी है कि नैनो यूरिया ना तो मिट्टी की गुणवत्ता को अम्लीय करेगा ना ही पर्यावरण को दूषित करेगा। डॉ रालिया के मुताबिक पौधा साधारण यूरिया का 30 से 40 फीसदी का ही इस्तेमाल करता है। यूरिया का बहुत बड़ा हिस्सा हवा या जमीन में चला जाता है। जबकि नैनो यूरिया का 80 फीसदी उपयोग पौधे कर पाते हैं।

15 पेटेंट है डॉ रालिया के पास

डॉ रालिया के नाम 15 पेटेंट है, जिसमें नैनो यूरिया तरल भी एक है। 2015 में नैनो यूरिया तरल बनाने का काम डॉ रालिया ने शुरू किया था। 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी ने भी डॉ रालिया को खत मिला था। जिसके बाद इफ्को से बातचीत शुरू हुई। 2019 में इफ् साथ जुड़ने के बाद इस रिसर्च के लिए गुजरात में विशेष नैनों रिसर्च सेंटर बनाया गया, 2019 में इस उत्पाद का भारत में देशव्यापी प्ररिक्षण शुरु किया गया था।

2 साल तक ट्रायल

30 एग्रो क्लाइमेटिक जोन के 11000 किसानों के खेतों की 94 फसलों में नैनो यूरिया तरल का 2 साल तक ट्रायल किया गया । भारतीय कृषि अनुंसधान परिषद (ICAR) के 20 से ज्यादा संस्थानों और कृषि विश्वविद्यायों में भी परीक्षण हुआ । एक लीटर पानी में 2 मिलीलीटर नैनो यूरिया तरल मिलाकर पौधे के जीवन में सिर्फ दो बार छिड़काव करना है।

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