कोरोना के नए वैरिएंट से खतरे की खबरें आए दिन सुनने में आ रही है, डेल्टा वैरिएंट के कई केसेस भी सामने आये हैं। डेल्टा वैरिएंट पुराने अल्फा वैरिएंट के मुकाबले कम खतरनाक है। डेल्टा के फैलने की दर तेज है लेकिन इससे होने वाली मृत्युदर 0.25 फीसदी है। दुसरी तरफ पुराने अल्फा वैरिएंट से मरने वालों की दर 1.90 फीसदी थी। ब्रिटेन के पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट की ताजा स्टडी से ये बात सामने आई है। भारत में कोरोना के 88% मरीज डेल्टा वैरिएंट के ही मिल रहे हैं जबकि यूरोप और अमेरिकी देशों में 95% से ज्यादा केस डेल्टा के आ रहे हैं।
मात्र 42,869 सैंपलों की सीक्वेंसिंग हुई
जीनोमा सीक्वेंसिंग एक तरह से किसी वायरस का बायोडाटा होता है, कोई वायरस कैसा है, किस तरह दिखता है, इसकी जानकारी जीनोम से मिलती है। भारत में नए वैरिएंट जीनोम सीक्वेंसिंग की धीमी है। आंकड़ों की माने तो 15 महीने में सिर्फ 42,869 सैंपलों की सीक्वेंसिंग भारत में हुई है जबकि, ब्रिटेन में 2.71 लाख सैंपल की सीक्वेंसिंग पिछले सिर्फ तीन महीने में हुई है, दोनों देशों के जनसंख्या अंतर से तो हम सभी वाकिफ हैं जिसकी तुलना में आंकड़ों में भारी अंतर है। ब्रिटेन में कुल मरीजों के मुकाबले 10% सैंपलों की सीक्वेंसिंग की जा रही है, जबकि भारत में यह अनुपात सिर्फ 0.14% है।
ब्रिटेन की (पीएचई) की रिपोर्ट
द पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएचई) की स्टडी से पता चला है कि पिछले संक्रमणों से बॉडी खुद ही इम्युन हो जाती है और यह दोबारा संक्रमण के खिलाफ 83 फीसद सुरक्षा देती है। यह संक्रमण के बाद कम से कम पांच महीने तक बनी रहती है। विशेषज्ञों ने सावधान किया है कि इम्युनि लोगों के नाक और गले में वायरस होने की संभावना काफी ज्यादा रहती है, जिससे वे वायरस के संवाहक हो सकते हैं। इसलिए संक्रमण से उबरने के बाद भी सतर्कता बरतना जरूरी है। खास तौर पर ऐसे लोगों को मास्क का इस्तेमाल करना होगा।