दुनियाभर में कोरोना वैक्सीन की मिक्सिंग पर बहस चल रही है। कुछ देशों में वैक्सीनों को मिलाने का फैसला वैक्सीन सप्लाई में देरी और सुरक्षा को देखते हुए लिया गया है। ऐसे में वैक्सीन मिक्सिंग को एक विकल्प के तौर पर देखा गया। इस पर शुरुआती रिसर्च और स्टडी हुई है। अभी काफी डेटा आना बाकी भी है।
कहां-कहां वैक्सीन मिक्सिंग ?
ब्रिटेन, कनाडा, इटली और सऊदी अरब में वैक्सीन मिक्सिंग को मंजूरी दी गई है। यहां के वैज्ञानिकों का मानना है कि वैक्सीन मिक्सिंग कोरोना से लड़ाई में ज्यादा फायदेमंद है। बहरीन, चीन, स्वीडन, फ्रांस, नार्वे, दक्षिण कोरिया, स्पेन और चीन में भी वैक्सीन मिक्सिंग पर टेस्ट चल रहें हैं। इनके अलावा अमेरिका में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने हाल ही में बूस्टर डोज की मिक्सिंग का ट्रायल शुरू किया है। रूस के वैज्ञानिक स्पुतिक-V और एस्ट्राजेनेका के कॉम्बीनेशन पर स्टडी कर रहे हैं।
वैक्सीन मिक्सिंग पर वैज्ञानिकों की राय
कोरोना से पहले वैज्ञानिक इबोला और दूसरी बीमारियों में भी वैक्सीन मिक्सिंग का फॉर्मूला अपना चुके है। इससे पहले रोटावायरस वैक्सीन का कॉम्बीनेशन भारत में भी इस्तेमाल किया जा चुका है। वैज्ञानिक कहते हैं कि लोगों को अलग-अलग वैक्सीन का कॉम्बीनेशन दिए जाने से इम्यून रिस्पॉन्स ज्यादा मजबूत होता है। अलग-अलग वैक्सीन इम्यून सिस्टम के अलग-अलग हिस्सों पर प्रभाव डालती हैं और इम्यून सिस्टम में वायरस के अलग-अलग हिस्सों को पहचानने की क्षमता विकसित होती है।
वैक्सीन मिक्सिंग सुरक्षित है?
ऑक्सफोर्ड की Com-COV स्टडी के अनुसार, वैक्सीन मिक्सिंग के कुछ मामूली साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, जैसे बुखार, सिरदर्द और थकान पर ये काफी हल्के होंगे। जिन्हें ये साइड इफेक्ट्स हुए, उनमें से ज्यादातर में 48 घंटे में ही खत्म भी हो गए। यह भी संभव है कि कम समय के लिए रहने वाले ये साइड इफेक्ट मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स के लक्षण हों।