PATNA: बिहार में फिर चाचा-भतीजा की सरकार, नीतीश कुमार ने ‘कमल’ को झटककर ‘लालटेन’ थामी, जानें 5 वजहें

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Atul Tiwari
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PATNA: बिहार में फिर चाचा-भतीजा की सरकार, नीतीश कुमार ने ‘कमल’ को झटककर ‘लालटेन’ थामी, जानें 5 वजहें

PATNA. बिहार में एक बार फिर राजनीतिक घटनाक्रम बदल गया। 9 अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजभवन पहुंचकर बीजेपी से गठबंधन तोड़ने का ऐलान किया और लालटेन की रोशनी यानी आरजेडी के साथ नई सरकार बनाने का दावा पेश किया। नीतीश के साथ कांग्रेस, लेफ्ट और हम जैसे दल भी आ गए हैं। इससे पहले भी नीतीश इस गठबंधन के साथ गए थे, लेकिन बाद में अलग होकर बीजेपी के साथ आ गए थे।





बिहार में विधानसभा चुनाव के सिर्फ ढाई साल बाद ही बीजेपी और जेडीयू गठबंधन में दरार आ गई। नीतीश ने एक बार फिर एनडीए में सम्मान ना मिलने की बात कहकर गठबंधन से बाहर निकलने का ऐलान किया। 5 साल में यह दूसरी बार है, जब नीतीश ने पाला बदलने का ऐलान किया। जानिए वो 5 वजहें, जिनकी वजह से नीतीश को बीजेपी से अलग होने का फैसला लेना पड़ा।





1. फैसले लेने की आजादी नहीं मिलना





बीजेपी-जेडीयू ने 2020 का विधानसभा चुनाव साथ लड़ा। बीजेपी ने इस चुनाव में 75 सीटें हासिल कीं, जेडीयू को 43 सीटें मिलीं। यानी बीजेपी इस बार सरकार में बड़े भाई की भूमिका में थी। बीजेपी ने अपनी इस स्थिति का फायदा भी उठाया। नीतीश मुख्यमंत्री जरूर रहे, लेकिन बीजेपी ने अपना कंट्रोल बरकरार रखने के लिए दो डिप्टी सीएम- तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी भी उनके साथ रखे। इससे बिहार सरकार में नीतीश कुमार के एकछत्र नेतृत्व को चुनौती देने की कोशिश की गई। 





इसके अलावा बीजेपी ने नीतीश कुमार के लंबे समय तक साथी और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी को भी बिहार की राजनीति से बाहर कर दिया। बीजेपी के इन कदमों के बाद नीतीश के लिए सरकार पर पूरी तरह नियंत्रण रखना काफी मुश्किल हो रहा था। बताया जाता है कि सुशील मोदी की गैरमौजूदगी में नीतीश के लिए अपनी मर्जी से कैबिनेट मंत्रियों को चुनना भी कठिन रहा। वे बीजेपी से अपनी बात नहीं मनवा पा रहे थे। नीतीश के लिए इस तरह से बिहार की राजनीति में आजादी ना मिलना जेडीयू नेताओं को भी अखरने लगा था और समय-समय पर वे बीजेपी को लेकर कई तरह के बयान देते रहे थे। 





2. विधानसभा अध्यक्ष को लेकर नाराजगी





इसी साल मार्च में बीजेपी और जेडीयू के बीच के रिश्तों में दरार की पहली झलक देखने को मिली थी। विधानसभा सत्र के दौरान एक मौके पर सीएम नीतीश कुमार और विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा में नोंकझोंक हो गई थी। मामला बिहार के लखीसराय में 50 दिन में 9 लोगों की हत्या पर बहस को लेकर था। विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा के क्षेत्र का सवाल बीजेपी विधायक ने उठाया था। इस पर सरकार को जवाब देने में काफी मुश्किलें आईं। बीजेपी की ओर से उठाए गए इस मुद्दे की वजह से विपक्ष को भी सरकार के विरोध का मौका मिल गया। 





आखिरकार मामले को लेकर विधानसभा में आए दिन हो रहे हंगामे पर मुख्यमंत्री नीतीश भड़क गए। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष से आक्रामक अंदाज में कहा कि इस तरह की बहस को अनुमति देकर भ्रम पैदा होता है। हालांकि, स्पीकर विजय सिन्हा ने भी नीतीश को जवाब देते हुए कहा कि यह मेरे इलाके का मामला है और जब भी क्षेत्र में जाता हूं तो शिकायत मिलती हैं। इस पर नीतीश और सिन्हा के बीच नाराजगी इतनी बढ़ गई कि सीएम ने उन पर संविधान उल्लंघन तक का आरोप लगा दिया। माना जाता है कि इस घटना के बाद से ही नीतीश कुमार भाजपा से विधानसभा अध्यक्ष को हटाने की मांग कर रहे थे। 





3. नड्डा का बयान





31 जुलाई को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के एक बयान ने भी बिहार की राजनीतिक हलचल को बढ़ा दिया था। उस दिन नड्डा बिहार में पार्टी के कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेने पहुंचे थे। यहां उन्होंने कहा था कि भविष्य में स्थानीय पार्टियों का अस्तित्व ही नहीं बचेगा। नड्डा ने कहा था, "मैं बार-बार कहता हूं कि देखो अगर ये विचारधारा नहीं होती तो हम इतनी बड़ी लड़ाई नहीं लड़ सकते थे। सब लोग (अन्य राजनीतिक दल) मिट गए, समाप्त हो गए और जो नहीं हुए वे भी हो जाएंगे। रहेगी तो केवल बीजेपी ही रहेगी। बीजेपी के विरोध में लड़ने वाली कोई राष्ट्रीय पार्टी बची नहीं। हमारी असली लड़ाई परिवारवाद और वंशवाद से है।"





माना जा रहा है कि नड्डा के इस बयान के बाद नीतीश बिहार में बीजेपी के इरादों को लेकर काफी सतर्क हो गए थे। जेडीयू प्रमुख को यह लग गया था कि 2020 के बाद 2024 के चुनाव में बीजेपी और मजबूती से चुनाव लड़ेगी और जेडीयू के बगैर ही सरकार बनाने का दावा पेश कर देगी। नीतीश की इन आशंकाओं की पुष्टि उमेश कुशवाहा समेत जेडीयू के कुछ और नेताओं के बयानों ने भी कर दी थी। हाल ही में महाराष्ट्र में शिवसेना में टूट के प्रकरण ने भी नीतीश की चिंता बढ़ा दी।





4. शिंदे, सिंधिया, पायलट प्रकरण से सबक



 



नीतीश के लिए जेडीयू को एनडीए गठबंधन से अलग करने का फैसला कठिन साबित होने वाला था। हालांकि, महाराष्ट्र में पिछले दो महीनों में हुए पूरे घटनाक्रम ने नीतीश को और ज्यादा सतर्क करने का काम किया है। दरअसल, नीतीश को शक था कि बीजेपी महाराष्ट्र की तरह ही बिहार में भी खेल करने की कोशिश करेगी। नीतीश को आशंका थी कि महाराष्ट्र में बीजेपी ने सरकार बनाने के लिए शिवसेना में ही बगावत पैदा करा दी और पार्टी के दो टुकड़े कर मजबूत धड़े का साथ दिया, उसी तरह बीजेपी जेडीयू खेमे में भी दरार डाल सकती है। 





बीजेपी की तरफ से बीते कुछ सालों में मध्य प्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान में भी सरकारों को बदलने के आरोप लगे हैं। जहां मध्य प्रदेश में पार्टी ने कांग्रेस नेता सिंधिया को तोड़कर सरकार बनाई तो वहीं कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के टूटने के बाद पार्टी ने सरकार बनाने के लिए हर तिकड़म भिड़ाई। बीजेपी पर कुछ इसी तरह की कोशिश राजस्थान में करने का आरोप लगा, जब सचिन पायलट ने सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत कर दी। हालांकि, पायलट के डिप्टी सीएम पद से हटाए जाने के बाद राजस्थान में सरकार बदलना काफी मुश्किल हो गया। 





5. आरसीपी सिंह





हालिया घटनाक्रमों और बीजेपी की मंशाओं को लेकर नीतीश के शक पर जेडीयू नेता आरसीपी सिंह और बीजेपी की बढ़ती करीबियों ने मुहर लगाई। दरअसल, जब जेडीयू ने केंद्र सरकार में कैबिनेट में जगह लेने से इनकार कर दिया था, तब भी नीतीश के करीबी रहे आरसीपी सिंह इस्पात मंत्री बने। माना जाता है कि केंद्र में रहते हुए आरसीपी ने बीजेपी से काफी नजदीकी बढ़ाई। इसके बाद ही नीतीश को उनसे खतरा महसूस होने लगा था। दो महीने पहले नीतीश ने राज्यसभा चुनाव के लिए आरसीपी सिंह का नाम ना देकर इस खतरे को टालने की ओर इशारा कर दिया। रिपोर्ट्स की मानें तो नीतीश के हाथ कुछ ऐसे ऑडियो टेप भी लगे, जिनमें बीजेपी और आरसीपी सिंह के बीच जदयू में टूट कराने से जुड़ी बातचीत चल रही थी। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार जब एनडीए से अलग होने को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे तो इन टेप्स का जिक्र करेंगे।





हालांकि, इसके बावजूद नीतीश कुमार को आरसीपी सिंह पर पार्टी में टूट पैदा करने का शक था। इन खतरों से निपटने की तैयारी भी नीतीश ने इस साल की शुरुआत में ही कर दी थी, जब जदयू ने आरसीपी के करीबी चार नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया था। नीतीश ने अपनी पार्टी में टूट की बची कोशिशों को कुचलने के लिए आखिरकार इस महीने आरसीपी सिंह को भी भ्रष्टाचार से जुड़े आरोपों पर कारण बताओ नोटिस जारी करवा दिया। जेडीयू की तरफ से इस तरह साख गिराने की कोशिशों के बाद आखिरकार आरसीपी ने खुद पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इस तरह नीतीश ने पार्टी में टूट पैदा करने की कोशिशों पर भी लगाम लगाने की पूरी कोशिश की। 



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