एक अखबार के संपादक ने केंद्रीय मंत्री के सामने ऐसा क्या कहा कि विपक्ष के नेता तालियां पीटने लगे, SC को क्यों बताया ध्रुव तारा

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Sunil Shukla
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एक अखबार के संपादक ने केंद्रीय मंत्री के सामने ऐसा क्या कहा कि विपक्ष के नेता तालियां पीटने लगे, SC को क्यों बताया ध्रुव तारा

NEW DELHI. देश की राजधानी नई दिल्ली में बुधवार, 22 मार्च को हुए रामनाथ गोयनका अवार्ड समारोह में इंडियन एक्सप्रेस के एडिटर राजकमल झा का आभार प्रदर्शन के मौके पर दिया गया भाषण सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़,  केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर की मौजूदगी में राजकमल झा के भाषण पर विपक्ष के नेताओं ने जमकर तालियां पीटीं और ठहाके भी लगाए। समारोह के अंत में अपने वोट ऑफ थैंक्स देते हुए राजकमल झा ने सुप्रीम कोर्ट की अहमियत, मीडिया और पत्रकारों की आजादी और इससे लोकतंत्र पर असर को लेकर चुटीले अंदाज और शब्दों में कुछ ऐसी बातें कहीं जो देश का में खास चर्चा का विषय बन गई हैं।




— TheSootr (@TheSootr) March 23, 2023



क्यों कहा- कोई वोट नहीं सिर्फ थैंक्स होगा?



समारोह के आखिर में चुटकी लेते हुए राजकमल झा ने कहा कि हम नॉर्थ स्टार (ध्रुव तारे) की तरफ कब मुड़ते हैं? मंच की ओर मुखातिब होते हुए उन्होंने कि ये हमारा सौभाग्य है कि हमारे साथ चीफ जस्टिस चीफ जस्टिस मौजूद हैं.. और यहां सीलबंद लिफाफे में कुछ भी नहीं है। ये वोट ऑफ थैंक्स है और हम जिस समय में रह रहे हैं यहां कोई वोट नहीं होगा...सिर्फ और सिर्फ थैंक्स ही होगा। यहां उनकी सीलबंद लिफाफे वाली बात का इशारा चीफ जस्टिस की हाल ही में उस चर्चित टिप्पणी पर था जिसमें वे सुप्रीम कोर्ट में वन रैंक-वन पेंशन केस की सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल द्वारा सील बंद लिफाफा दिए जाने पर नाराज हो गए थे। उन्होंने वो लिफाफा लेने से इनकार कर दिया था।



पत्रकारिता के लिए सुप्रीम कोर्ट को बताया ध्रुव तारा



राजकमल ने अपने भाषण में आगे देश में मीडिया की आजादी के लिए चीफ जस्टिस के रुख की तारीफ करते हुए कहा कि सालों से सुप्रीम कोर्ट पत्रकारिता के लिए नॉर्थ स्टार (ध्रुव तारा) बना रहा है। बता दें कि चीफ जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ ने कुछ दिनों पहले  सुप्रीम कोर्ट के लिए इसी मुहावरे का उपयोग किया था...नॉर्थ स्टार यानी ध्रुव तारा। अपनी बात जारी रखते हुए राजकल बोले, साल दर साल, केस दर केस, सुप्रीम कोर्ट की रोशनी ने पत्रकारों और पत्रकारिता के लिए राह रोशन की है। इसलिए जब रोशनी कम हो जाती है.. तब एक रिपोर्टर को आतंकवादियों के लिए बने कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया जाता है। जब एक अन्य पत्रकार को सवाल पूछने के लिए गिरफ्तार किया जाता है... जब एक यूनिवर्सिटी के शिक्षक को एक कार्टून शेयर करने के लिए उठा लिया जाता है... एक कॉलेज छात्र को एक भाषण देने के लिए, एक फिल्म अभिनेता को अपनी टिप्पणी के लिए या.. जब एक स्टोरी के जवाब में पुलिस की एफआईआर सामने आती है...तब हम रोशनी के लिए वापस इसी नॉर्थ स्टार (सुप्रीम कोर्ट) की ओर मुड़ते हैं।



पत्रकारिता.. पत्रकारों के बारे में नहीं.. हर नागरिक के जानने के अधिकार के बारे में है



भाषण के अंत में संपादक राजकमल झा ने पत्रकारों को नसीहत देते हुए कहा कि पत्रकारिता, पत्रकारों के बारे में नहीं है। ना ही सिर्फ पत्रकारिता की आजादी के बारे में है बल्कि पत्रकारिता हर नागरिक के जानने के अधिकार के बारे में है। हर नागरिक की आजादी के बारे में है। झा जब ये भाषण दिया तब केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर, बीजेपी के वरिष्ठ नेता रवि शंकर प्रसाद उनके सामने बैठे थे। झा के भाषण के दौरान आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद संजय सिंह, तृण मूल कांग्रेस (TMC) के सांसद डेरेक ओब्रायन और कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री मनीष तिवारी ने जमकर तालियां बजाईं।



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लोकतंत्र को बहाल रखना है तो मीडिया को उसका काम करने देना होगा- चीफ जस्टिस



इससे पहले चीफ जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ ने अपने भाषण में कहा कि राज्य की अवधारणा में मीडिया को चौथा स्तंभ माना जाता है। ये एक ऐसी संस्था है जो सत्ता से सवाल पूछ सकती है। लेकिन लोकतंत्र को धक्का तब लगता है जब मीडिया को उसका काम करने से रोका जाता है। मीडिया व्यवस्था और नागरिकों के लिए सामयिक मुद्दे उभारता है, उनके लिए जनमत बनाने का काम करता है। मी टू (MEETOO) मूवमेंट का जिक्र कर उन्होंने कहा कि इस दौरान कई जानीमानी शख्सियतों के खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगे। पूरी दुनिया में इसका असर देखने को मिला। उन्होने जोर देकर कहा कि लोकतंत्र को बहाल रखना है तो मीडिया को उसका काम करने देना होगा। भारत में अलग-अलग तरह के अखबार हैं। देश की आजादी से पहले इन्हें समाज सेवियों ने शुरू किया और चलाया। उनका कहना था कि पत्रकार तमाम तरह की मुश्किलें झेलकर काम करते हैं। वो कई बार ऐसे तरीके भी अपनाते हैं जिनसे वो खुद या फिर आम लोग सहमत नहीं होंते लेकिन ये असहमति घृणा नहीं बननी चाहिए। इससे समाज में हिंसा जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।


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