BHOPAL: मोदी और शाह एक ही राज्य से आते हैं, एक-दूसरे का हाथ थामे रहे, सलाहें दीं, कदम-कदम पर ऐसे निभाई दोस्ती...

author-image
The Sootr CG
एडिट
New Update
BHOPAL: मोदी और शाह एक ही राज्य से आते हैं, एक-दूसरे का हाथ थामे रहे, सलाहें दीं, कदम-कदम पर ऐसे निभाई दोस्ती...

विशालाक्षी पंथी, BHOPAL. आपने फिल्म शोले तो जरूर देखी होगी। अरे वही, जिसमें जय-वीरू नाम के दो दोस्तों की कहानी है। ठीक ऐसे जय वीरू भारतीय राजनीति में भी हैं। हम बात कर रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) की। इन दोनों पॉलिटीशियंस की दोस्ती भी जय वीरू जैसी ही है। राष्ट्रीय मित्रता दिवस (National Friendship Day) के मौके पर हम आपको पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की दोस्ती से जुड़ा एक किस्सा बता रहे हैं।





अमित शाह, मोदी के सबसे भरोसेमंद सेनापति





बात 1991 की है, जब BJP (Bhartiya Janta Party) के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) ने गुजरात के गांधीनगर (Gandhinagar) से चुनाव लड़ने का फैसला किया था। उस वक्त नरेंद्र मोदी बीजेपी की ओर से कई राज्यों के प्रभारी थे, तब अमित शाह ने मोदी से आग्रह किया कि मुझे चुनाव का मैनेजमेंट संभालने की जिम्मेदारी दी जाए। साथ ही अमित शाह ने दावा किया था कि यदि लालकृष्ण आडवाणी चुनाव प्रचार के लिए नहीं आते हैं तो भी वे जीत जाएंगे। अमित शाह की इस बात से नरेंद्र मोदी बहुत प्रभावित हुए और उन्हें चुनाव की पूरी जिम्मेदारी दे दी। जब नतीजे आए तो आडवाणी भारी मतों से जीते। इस तरह शाह, मोदी के सबसे भरोसेमंद सेनापति बन गए।





शाह ने नहीं छोड़ा मोदी का साथ





केंद्र में आने से पहले मोदी और शाह की जोड़ी गुजरात में मशहूर हो गई थी। तब गुजरात में केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री बने थे और मोदी को संघ के काम से दिल्ली जाना पड़ा। ऐसा भी कहा जाता है कि केशुभाई से मतभेद होने के कारण ही मोदी को गुजरात से हटाया गया था। उन दिनों सियासी गलियारों में ये चर्चा थी कि मोदी का गुजरात की राजनीति से पत्ता कट गया है। ये वो समय था, जब गुजरात के ज्यादातर नेताओं ने मोदी से दूरी बना ली थी। ऐसे में अमित शाह लगातार नरेंद्र मोदी के संपर्क में बने रहे। मोदी से संपर्क बनाए रखने का खामियाजा भी अमित शाह को भुगतना पड़ा था। कहते हैं कि पार्टी में उनके सियासी कद को घटा दिया गया था। इसके बाद भी अमित शाह ने नरेंद्र मोदी से दूरी नहीं बनाई। 





कुछ साल मोदी गुजरात से बाहर रहे। उन्होंने इस समय में राष्ट्रीय संगठन को अपनी कुशलता और ताकत का अहसास कराया। जब मोदी की 2001 में वापसी हुई तो 2002 का चुनाव जीतने के बाद से मोदी ने अपने सबसे विश्वसनीय अमित शाह को गृह मंत्रालय (गुजरात) का कार्यभार दिया। 





सियासी साजिशों के चलते मोदी ने निभाया अमित शाह का साथ





एक वक्त ऐसा भी आया जब शाह को नरेंद्र मोदी के साथ की जरूरत पड़ी थी, तब मोदी की तरह शाह को भी वनवास भोगना पड़ा था। दरअसल सियासी साजिश के चलते शाह को सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। कानूनी लड़ाई के बाद अमित शाह को इस शर्त के साथ बेल मिली कि उन्हें गुजरात के बाहर रहना होगा। इसे समय का फेर कहें या फिर नियति। एक बार मोदी को गुजरात छोड़ना पड़ा था, ऐसा ही कुछ अमित शाह के साथ भी हुआ।





अमित शाह ने मोदी की सलाह मानी 





ये वो दौर था, जब अमित शाह के राजनीतिक करियर के खत्म होने की भविष्यवाणी कर दी गई थी। शाह अंदर तक टूट चुके थे। तब मोदी ने उनका साथ निभाया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मोदी की सलाह पर शाह ने दिल्ली में रहने का फैसला किया था। इस समय का इस्तेमाल शाह ने केंद्रीय नेतृत्व (central leadership) का भरोसा जीतने में किया। ये वो दौर था, जब शाह ने देशभर में धर्मयात्राएं की थीं। इसके बाद अमित शाह ने गुजरात में धमाकेदार वापसी की थी।





दोनों ने कभी एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा और एक-दूसरे की सलाह मानी। आप इन्हें राजनीति के जय-वीरू भी कह सकते हैं।







 



नरेंद्र मोदी narendra modi Amit Shah अमित शाह गृहमंत्री politics राजनीति Home Minister Prime Minister प्रधानमंत्री फ्रेंडशिप डे