NEW DELHI: सैम मानेकशॉ: फर्स्ट फील्ड मार्शल ऑफ इंडिया, 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने टेके घुटने

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The Sootr CG
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NEW DELHI: सैम मानेकशॉ: फर्स्ट फील्ड मार्शल ऑफ इंडिया, 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने टेके घुटने

NEW DELHI. 3 दिसंबर 1971 जब पाकिस्तानी सेना ने भारत पर हमला किया तो भारतीय सेना ने भी करारा जवाब दिया। भारत और पाकिस्तान का यह युद्ध कई दिनों तक चलता रहा। 13 दिन बाद पाकिस्तानी फोर्स के 90 हजार से भी ज्यादा सैनिकों ने हथियार डाल दिए। ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ था, जब इतनी बड़ी संख्या में किसी देश के सैनिकों ने घुटने टेक दिए हों। कहा जाता है इस जीत का सारा क्रेडिट जनरल सैम मानेकशॉ को जाता है।





मेडिकल स्टूडेंट थे सैम मानेकशॉ





सैम का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में हुआ। सैम के पिता डॉक्टर होर्मसजी मानेकशॉ थे। सैम ने नैनीताल से हिंदू सभा कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई की। जुलाई 1932 में मानेकशॉ ने अपने पिता के खिलाफ जाकर भारतीय सैन्य अकादमी में एडमिशन लिया। 2 साल बाद 4/12 फ्रंटियर फोर्स रेजीमेंट में भर्ती हुए। 





सेकंड वर्लड वॉर में दगीं 7 गोलियां





अपने आर्मी जीवन में उन्हें कम उम्र में ही युद्ध का हिस्सा बनना पड़ा लेकिन वे तब भी डट कर लड़ते रहे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान सैम को 7 गोलियां लगी थीं। 7 गोलियां लगने के बाद उनके बचने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। लेकिन डॉक्टरों ने समय रहते सारी गोलियां निकाल दीं और उनकी जान बचा ली। 





पाकिस्तान पर हमला करने से किया था इनकार 





इंदिरा गांधी और सैम मानेकशॉ का यह किस्सा बेहद मजेदार है। दरअसल, 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पाकिस्तान पर हमला करना चाहती थीं। लेकिन जनरल सैम मानिकशॉ ने पाकिस्तान से युद्ध करने से साफ इनकार कर दिया था। सैम ने इंदिरा गांधी से कहा कि इस वक्त हमारी सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं है। फोर्स को ट्रेन करने के लिए थोड़ा समय चाहिए। यह सुन इंदिरा गांधी ने सेना की ट्रेनिंग के लिए कुछ समय दिया। फिर जब 1971 में पाकिस्तान ने भारतीय सेना पर हमला किया तो यह वॉर जनरल सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में ही हुआ।





फर्सट फील्ड मार्शल बने जनरल सैम मानेकशॉ





सैम मानेकशॉ को अपने सैन्य जीवन में कई पदों से सम्मानित किया गया। 59 की उम्र में उन्हें फील्ड मार्शल से नवाजा गया। फील्ड मार्शल बनने वाले वह पहले भारतीय जनरल थे। 1972 में उन्हें पद्म विभूषण भी मिला। वहीं 1973 में वह सेना प्रमुख के पद से रिटायर हुए। रिटायरमेंट के बाद वह वेलिंगटन चले गए जहां 2008 में उनका निधन हो गया था।  



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