BHOPAL: मिलावट के शक में सादगी पसंद मुंशी प्रेमचंद ने दूध की जगह गाय की ही लगा ली बंदी; क्या हुआ जब महादेवी वर्मा के घर गए

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Atul Tiwari
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BHOPAL: मिलावट के शक में सादगी पसंद मुंशी प्रेमचंद ने दूध की जगह गाय की ही लगा ली बंदी; क्या हुआ जब महादेवी वर्मा के घर गए

BHOPAL. अपनी कहानियों के जरिए गांवों के किरदारों को अमर कर देने वाले कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद के जीवन में दो ही चीज प्रमुख थीं, एक सादगी और दूसरी शुद्धता। सादगी इतनी कि घर में ढाई हजार की चोरी की रिपोर्ट केवल इसलिए दर्ज नहीं कराई कि इससे उनके घर खाना बनाने वाला महाराज बदनाम हो जाएगा। वहीं, दूध में ग्वाला कहीं मिलावट ना कर दे तो शुद्धता की गारंटी के तौर पर उन्होंने दूध की जगह गाय की ही बंदी बांध ली। 10 रुपए की बंदी पर ग्वाला हर रोज गाय लेकर उनके घर आता था और उनके सामने ही दूध दुहता था। 





किसी व्यक्ति के बारे में उसके परिवारजनों से ज्यादा सटीक कौन बोल-बता सकता है। मुंशी प्रेमचंद से जुड़े ये संस्मरण उनकी बेटी कमलादेवी द्वारा समय-समय पर अपने साक्षात्कारों ने साझा किए हैं। इन संस्मरणों पर नाटक भी बन चुके हैं। राजधानी भोपाल में भी नामचीन नाट्य संस्थाएं मुंशी प्रेमचंद पर नाटक का मंचन कर चुकी हैं। आज यानी 31 जुलाई को 142 वीं जयंती पर कलम के इस अमर सिपाही, की यादों से जुड़े पन्नों को पलटने पर दिखता है- एक विशाल व्यक्तित्व, मगर सादगी और शुद्धता से परिपूण। 





दूध में मिलावट पकड़ी थी





बात उन दिनों की है, जब दूध पीने के बेहद शौकीन मुंशी जी ने एक बार ग्वाले को दूध में पानी मिलाते हुए पकड़ लिया। एक इंटरव्यू में उनकी बेटी कमलोदवी बताती हैं कि बाबूजी को दूध का बहुत शौक था। सिर्फ दूध नहीं, बल्कि शुद्ध दूध। दूध में कोई मिलावट तो नहीं हो रही, इस खोजबीन में उन्होंने एक दिन देख लिया कि ग्वाला अपनी आस्तीन में एक बोतल छिपाए है और जैसे ही दूध निकालने को हाथ बर्तन में डालता है, जितनी मात्रा में दूध उतनी ही मात्रा में पानी भी मिल जाता है। यह नजारा देखने के बाद तो मुंशी जी हर समय इसी शक में बने रहते कि दूध में मिलावट की गई है। अपने इस शक को दूर करने के लिए उन्होंने एक तरकीब निकाली और दूध की बजाय गाय की ही बंदी लगा ली। वह भी 10 रुपए सेर पर। इस बंदी के तहत ग्वाला हर रोज अपनी गाय मुंशी प्रेमचंद के घर के दरवाजे पर लेकर आता था और उनके सामने ही दुहता। तब मुंशी प्रेमचंद को संतोष हुआ कि शुद्ध दूध मिल रहा है।





बच्चों से वादा निभाया और छोड़ दी शराब...





कवियों और साहित्यकारों के साथ कलम के अलावा एक चीज और हमेशा जुड़ी रहती है, वह है महफिल या मदिरा। मगर शराब से जुड़ा वाकया मुंशी प्रेमचंद में एक आदर्श पिता को दिखाता है। मामला कुछ ऐसा था कि एक काम के सिलसिले में वे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) गए थे, लौटते वक्त कुछ दोस्तों के कहने पर शराब पी ली। घर पहुंचे तो बाबूजी को शराब पीया देख तीनों बच्चे काफी नाराज हो गए। बच्चों को इतना खराब लगा कि उन्होंने भूख हड़ताल कर दी। जो बच्चे बाबूजी के साथ रोज पतंग उड़ाते और गिल्ली-डंडा खेलते थे, उनसे बच्चों ने बात भी बंद कर दी। तीन दिन बाद मुंशी जी ने बच्चों से वादा किया, कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा। यह वादा मुंशी जी ने मरते दम तक निभाया और फिर कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया। 





चोर को इसलिए बचाया...





मुंशी प्रेमचंद की सादगी से जुड़ा यह मामला उनके घर में हुई चोरी से जुड़ा है। मुंशी जी एक बार साहित्य परिषद की बैठक में शामिल होने के लिए वर्धा गए। उनकी बेटी की ससुराल सागर में थी, सो से वहां से सागर चले गए। वहां उन्हें पता चला कि उनकी बेटी मौत के मुंह से निकली है, उसने असमय मृत शिशु को जन्म दिया है। खैर, वहां से लौटे तो पता चला कि बनारस के उनके किराए के घर में चोरी हो गई है। चोरी में 1000 रुपए नकद और 1500 रुपए के जेवर चले गए। चोरी खाना पकाने वाले महाराज ने की थी। 





पत्नी शिवरानी चाहती थीं कि चोरी की शिकायत पुलिस में दर्ज की जाए, लेकिन प्रेमचंद केस नहीं करना चाहते थे। दो दिनों तक दबाव झेलने के बाद उन्होंने पत्नी से कह ही दिया, तुम जेवरों की चिंता मत करो, वे तो तुम्हारे बक्से में ही रखे रहते थे। उस बेचारे की बीवी पहनेगी तो बहुत खुश होगी। हां, तुम्हें रुपयों का अफसोस जरूर होगा, क्योंकि प्रेस के कर्मचारियों को वेतन देना था। कहीं से उसका इंतजाम भी हो जाएगा। चोरी से दुखी उनकी पत्नी बोलीं - मेरे ढाई हजार चले गए और आपको मजाक सूझ रहा है। तब पत्नी को समझाते हुए उन्होंने कहा कि घर में हुई चोरी से दुखी होने के बजाय इस बात से खुश होना चाहिए कि हमारी बेटी की जान बच गई। 





बेटी के समाचार ने उनकी पत्नी को हतप्रभ कर दिया। वह बेटी को बनारस बुलवाने को कहने लगीं। साथ ही बेटी को बुलाने के लिए शिवरानी चिट्ठी लिखने बैठ गईं। मुंशी जी ने जब पत्नी को पत्र लिखते देखा तो कहा, तुम रहने दो, मैं उसे बुलाने के लिए चिट्ठी लिख दूंगा। पत्नी ने तपाक से प्रतिप्रश्न करते हुए बोला- क्यों, मैं नहीं लिख सकती? प्रेमचंद ने जो जवाब दिया वह उनकी सादगी का ही प्रतीक है। मुंशी जी ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा कि तुम्हारे दिमाग में चोरी की बात भरी हुई है। तुम यह बात भी लिख दोगी और इससे वह और दुखी हो जाएगी। असल में वे नहीं चाहते थे कि चोरी की घटना किसी को पता चले और खाना पकाने वाला महाराज बदनाम हो जाए।





सरल इतने कि दंग रह गईं महादेवी





ऐसा ही एक संस्मरण उनकी सरलता से जुड़ा है। बात तब की है जब मुंशी प्रेमचंद एक और महान शब्द साधक महादेवी वर्मा से मिलने के लिए विद्यापीठ पहुंचे। जब महादेवी के बारे में मुंशी प्रेमचंद ने उनकी सहायिका से पूछा तो सहायिका ने उनकी वेषभूषा देखकर साधारण व्यक्ति समझा और तुनककर कहा कि गुरूजी काम काम कर रहीं हैं आप लोन में बैठकर इंतजार कीजिए। मुंशी जी बिना कुछ बोले शांति पूर्वक बाहर लोन में जाकर बैठ गए। उन्होंने इतना जरूर किया कि उनके अन्य कर्मचारियों से पूछा कि आप खाली हैं तो आइए बैठकर बातें करते है। करीब दो घंटे बाद सहायिका ने महादेवी वर्मा से कहा कि कोई आपसे मिलने के लिए आया है। जब महादेवी वर्मा अपने लॉन में पहुंची तो, नजारा देखकर दंग रह गई। उन्होंने देखा की मुंशी प्रेमचंद उनके नौकरों के साथ चौपाल लगाए हुए हैं। प्रेमचंद कहानियां सुना रहे है और सब लोग ध्यान से सुन रहे हैं।





(कंटेंट- प्रवीण शर्मा)



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