पांडव एक पाप के भागी बने थे, शिव ही इससे मुक्त कर सकते थे, लगन दिखाई और इस जगह केदार ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य हुआ

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केदार ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य पांडवों की वजह से ही हुआ था। वो पांचों लोग गजब के डेडिकेटेड थे। युद्ध जीता था, पर पश्चाताप था सो शिव को देखने चल पड़े। पर शिव तो शिव थे। यही सब बताऊंगा। आज का कहानी को मैंने नाम दिया है- पांडवों से खुश हुए शिव और बन गए केदार....

बाबा केदारनाथ हिमालय की केदार चोटी पर स्थित हैं। केदार धाम तीन पर्वतों से घिरा है। एक तरफ है 22 हजार फीट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फीट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फीट ऊंचा भरतकुंड। यहां 5 नदियों का संगम है- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, स्वर्णगौरी और सरस्वती। इन पांचों में से कुछ नदियां विलुप्त हैं या अदृश्य रूप से हैं। अलकनंदा की सहायक मंदागिनी आज भी हैं। केदारधाम समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर है। आज भी यहां पहुंचना थोड़ा कठिन है, ये बात और है कि अब सुविधाएं होने के चलते हजारों लोग पहुंचने लगे हैं।

ज्योतिर्लिंगों का दर्शन-पूजन बेहद शुद्ध, पवित्र और अत्यंत विनम्र होकर किया जाता है। भोलेभंडारी का अपमान उनकी पत्नी पार्वती और उनके गणों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होता। शिव, भगवान राम के भी इष्ट हैं। राम कहते हैं कि शिव का द्रोही मुझे सपने में भी पसंद नहीं। अगर आप केदारधाम जा रहे हैं तो पवित्र रहें और जाने-अनजाने हुए अपने गलत कामों के लिए क्षमाप्रार्थी बनें।

केदारधाम में शिव का रुद्र रूप निवास करता है। रुद्र शब्द रौद्र यानी क्रोध से बना है। इस पूरे क्षेत्र को रुद्रप्रयाग कहते हैं। केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में ही है। यहां भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था। 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च है केदारधाम। ये सबसे ऊंचाई पर है, मानो देवताओं को मृत्युलोक में झांकने का कोई झरोखा है। 

शिव पुराण में लिखा है कि जो कोई बदरीवन की यात्रा कर नर-नारायण और केदारेश्वर शिव के दर्शन करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति भगवान केदार के दर्शन की इच्छा लिए घर से निकलता है और रास्ते में उसकी मृत्यु हो जाती है तो समझना चाहिए कि उसकी मुक्ति हो गई। 

स्कंद पुराण में शिव, पार्वती से कहते हैं कि हे प्राणेश्वरी, ये स्थान उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्म को प्राप्त किया। केदारखंड मेरा चिरआवास होने के कारण धरती पर स्वर्ग के समान है।

पुराणों के मुताबिक, बाबा केदार के प्रकट होने की एक कथा ये भी है कि महातपस्वी नर और नारायण ऋषि पवित्र बद्रीकाश्राम में कठोर तपस्या की। उन्होंने पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव को उसमें विराजने का अनन्य निवेदन किया। उनकी श्रद्धा-भक्ति से शिव प्रसन्न हुए और ज्योतिर्लिंग में हमेशा वास करने का वचन दिया। हिमालय के केदारखंड में यही केदारधाम है।

दूसरी कहानी भी जबर्दस्त है। महाभारत में पांडवों की जीत हुई थी, लेकिन पांडवों ने अपने भाइयों की हत्या की थी। ऋषियों ने उनसे कहा कि इसकी पापमुक्ति केवल भगवान शिव की शरण में जाने पर ही संभव है। पांडवों ने शिव के दर्शन के लिए काशी प्रस्थान किया। जब वे काशी पहुंचे तो शिव वहां नहीं मिले। फिर ऋषि-मुनियों ने उन्हें बताया कि आप लोग बद्री क्षेत्र जाएं, वहां शिव मिलेंगे।

असल में शिव, पांडवों को दर्शन देना नहीं चाहते थे। वे बद्री क्षेत्र से अंतर्ध्यान होकर केदार क्षेत्र में जा बसे। जब पांडवों को इस बात का पता लगा तो वे केदार क्षेत्र में पहुंच गए। जब पांडव वहां पहुंचे तो शिव ने बैल का रूप रख लिया और अन्य पशुओं में मिल गए, ताकि पांडव पहचान ना सकें। पांडव भी धुन के पक्के थे, वे समझ गए कि शिव हमें दर्शन नहीं देना चाहते, लिहाजा उन्होंने भी केदार क्षेत्र की घेराबंदी शुरू कर दी।

भीम ने विशाल रूप धारण किया और दो पहाड़ों के बीच अपने पैर फैलाकर खड़े हो गए। कहते हैं कि सभी पशु भीम के पैर के नीचे से निकल गए, बैल रूप रखे हुए शिव भीम के पैर के नीचे से नहीं निकले। भीम समझ गए कि यही शिव हैं....। भीम ने उनकी पीठ को पकड़ना चाहा, तो भगवान नीलकंठ विशाल रूप धारणकर धरती में समाने लगे। भीम भी भीम थे, अपने पूरे बल से बैल रूपी शिव की त्रिकोणात्मक पीठ को कसकर पकड़ लिया। पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प देखकर शिव प्रसन्न होते हैं। उन्हें दर्शन देखकर भातृहत्या के पाप से मुक्त करते हैं। और यही जो त्रिकोणात्मक पीठ की आकृति है, यही केदारधाम में पिंड रूप में पूजी जाती है.....बस, यही थी आज की कहानी