GWALIOR. आज पूरा देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस दौरान तिरंगा महोत्सव के तहत हर घर तिरंगा लहरा रहा है। आज देश का नज़ारा ठीक वैसा ही है जैसा 15 अगस्त 1947 को था। सड़क से लेकर चैपाल तक और झोंपड़ी से लेकर अट्टालिकाओं तक उस रोज भी तिरंगा लहरा रहा था क्योंकि उस रोज अंग्रेजी हुकूमत को हमारे महान वीर बलदानियों ने उखाड़ फेंका था लेकिन उस रोज भी ग्वालियर देश का इकलौता शहर था जो मायूस था क्योंकि यहाँ उस रोज तिरंगा झंडा नहीं फहराया जा सकता था। स्वतंत्रता सम्मान सेनानी कक्का डोंगर सिंह ने अपनी आत्मकथा "महासमर के योद्धा " में लिखा है - उस रोज समूचा भारत गर्वोन्नत होकर तिरंगा फहरा रहा था , लेकिन हम ग्वालियर के आंदोलनकारी मलिन चेहरा लिए घूम रहे थे क्योंकि उस रोज यहां तिरंगा नहीं फहराया जा रहा था ,इस बात का मलाल मुझे जीवन रहेगा।
आखिर क्या थी वजह
स्वतंत्रता के समय यानी 15 अगस्त 1947 को देश तो आज़ाद हो गया लेकिन जो क्षेत्र सीधे अंग्रेजों के कब्जे में न होकर देशी रियासतों के कब्जे में थे उनमे सत्ता हस्तानांतरण का तरीका अलग था। ग्वालियर रियासत की भी स्थिति यही थी। यहाँ सिंधिया राजवंश सत्ता में था। स्वतंत्रता की घोषणा होते ही यहाँ रहने वाला अंग्रेजी रेजिडेंट तो अपनी बोरिया - बिस्तर समेटकर चला गया लेकिन तत्कालीन महाराज जीवाजी राव सिंधिया को आज के राज्यपाल की तरह राज प्रमुख बना दिया गया। ग्वालियर रियासत का नाम भी बदलकर मध्यभारत कर दिया गया और लीलधर जोशी को इस नव गठित राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया।
15 अगस्त को ध्वजारोहण की तैयारी पूरी थी। मुख्यमंत्री नेअफ़सरों से कहाकि तिरंगे का प्रबंध हो गया तो उन्हें बताया गया कि ध्वजारोहण में सिंधिया राज परिवार का सांप और सूरज चिन्ह वाला ध्वज ही राज प्रमुख के साथ आप फहराएंगे। यह सुनकर मुख्यमंत्री हतप्रभ रह गए और उन्होंने तिरंगा के अलावा कोई अन्य ध्वज फहराने से साफ़ इंकार कर दिया। उन्होंने कहाकि -"मैं सांप और सूरज वाला झंडा हरगिज नहीं फहराऊंगा। मैं तो वर्षो से तिरंगा फहरा रहा हूँ ,वही फहराऊंगा। आखिरकार उस रोज ध्वजारोहण नहीं हो सका।
मामला दिल्ली तक पहुंचा
कक्का डोंगर सिंह ने लिखा है कि मुख्यमंत्री जोशी की घोषणा के बाद गंभीर गतिरोध उतपन्न हो गया। विवाद दिल्ली में वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं तक पहुंचा। आखिरकार रास्ता निकालने के लिए तत्कालीन गृहमंत्री लौहपुरुष बल्लभ भाई पटेल को रास्ता निकालना पड़ा। उन्होंने दो झंडे फहराने का इंतजाम कराया। लेकिन जोशी जी तिरंगे के साथ कोई अन्य ध्वज फहराने को तैयार ही नहीं हुए तो फिर व्यवस्था बदली गयी। तब तत्कालीन महाराज जोकि राज प्रमुख बन चुके थे,जीवाजी राव सिंधिया ने अपने नौलक्खा परेड ग्राउंड जहाँ अब जीवाजी विश्वविद्यालय बना हुआ है ,वहां अपनी रियासत का झंडा फहराया जबकि स्वतंत्रता सैनानियों और कोंग्रेसियों ने मेला ग्राउंड में तिरंगा फहराया जहां हजारों की संख्या में जनता जनार्दन इकट्ठी हुई। इस तरह लगभग एक हफ्ते बाद ग्वालियर में आज़ादी का जश्न तिरंगा फहराकर मनाया गया।