ग्वालियर में आज भी सुरक्षित है रानी झांसी काल के अस्त्र-शस्त्र ,दशहरे पर साधु तोप और तलवार चलाकर करते हैं पूजन

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Dev Shrimali
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ग्वालियर में आज भी  सुरक्षित है रानी झांसी काल के अस्त्र-शस्त्र ,दशहरे पर साधु  तोप और तलवार चलाकर करते हैं पूजन

GWALIOR.विजयादशमी के पावन अवसर पर ग्वालियर में सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में इस्तेमाल हुए शस्त्रों का विधिवत तरीके से पूजन किया गया। दावा किया जाता है इन शस्त्रों का उपयोग 745 साधुओं ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों से बचाने के लिए किया था। इस अवसर पर तोप भी चलाई गई।  हर वर्ष की भाँती आज भी दशहरे पर इन शास्त्रों का पूजन किया गया और साधुओं ने हैरतअंगेज तलवारबाजी का प्रदर्शन किया। 



 मंदिर में सुरक्षित है हथियार 



ग्वालियर में पड़ाव स्थित गंगा दास जी की बड़ी शाला में बड़ी संख्या में ऐसे हथियार मौजूद हैं जिनसे सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में यहां के साधुओं ने अंग्रेजों से लोहा मनवाया था। किंवदंती है कि शाला के 745 साधु रानी लक्ष्मीबाई को बचाने के लिए अंग्रेजों से लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए। क्योंकि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सेना के साथ ग्वालियर के तत्कालीन शासक से सहयोग मांगने आईं थीं। उन्हें सहयोग नहीं मिला महाराज परिवार सहित ग्वालियर से भागकर आगरा चले गए। रानी के आने की अंग्रेजों को भनक लग गई की रानी ग्वालियर आईं हैं। इसी के चलते अंग्रेज़ सेना ने रानी को घेर लिया। रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के समक्ष समर्पण न करते हुए।  रानी झांसी ने वीरता से युद्ध करते हुए अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। जब अंग्रेजों ने किले को घेरकर चढ़ाई शुरू कर दी तो उन्होंने अपने बेटे को पीठ पर बांधकर घोड़े पर सवार होकर किले से छलांग लगाई जिसमें वे बुरी तरह से घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुईं। गंगादास जी की बड़ी शाला के पास रानी लक्ष्मीबाई की और शाला में शहीद 745 साधुओं की समाधि बनी है। इन्हीं साधुओं के हथियारों की हर साल विजयदशमी पर पूजा अर्चना की जाती है। पास ही स्मारक पर महारानी लक्ष्मीबाई की विशाल प्रतिमा भी लगी है जहाँ वीरांगना की अंत्येष्टि हुई थी। इस युद्ध में रानी और साधुओं ने जिन हथियारों का उपयोग किया था उनमें से अनेक आज भी सुरक्षित रखें जिनका दशहरा पर पूजन होता है। 



सुबह पूजन कर चलाई तोप 



 सुबह मंदिर पर मौजूद साधु और संतों ने परम्परानुसार पुरानी तोप  चलाई और साधुओं ने जमकर तलवारबाजी के करतब दिखाए। मंदिर के महंत राम दास जी महाराज ने "द सूत्र" बताया कि हमारे भारत में रामानंदी आचार्य की जो परंपरा है उसी  के अंतर्गत निर्मोही,निर्वाणी और दिगम्बर तीनो अखाड़ों के निशानों का पूजन हुआ और तोप सेस्लामि हुई।  यह वही तोप है जिससे संतों ने अंग्रेजों से रानी लक्ष्मीबाई की देह की रक्षा की। इस तोप से साधू अंग्रेजी फ़ौज को तब तक रोके रहे जब तक कि महाराज गंगादास जी ने रानी का उनकी अंतिम इक्का अनुसार दाह  संस्कार नहीं कर दिया। ये तोप मुग़ल काल की है। 


Worshiping the weapons of Veerangana Laxmibai sadhus run cannon and sword in Gwalior the sadhus saved the body of queen Jhansi from the British by using a cannon Dussehra of Gwalior sadhus