BHOPAL. मध्यप्रदेश में चुनावी साल है। राजनीतिक दल हर वर्ग के लिए लुभावने वायदे कर रहे हैं। चुनावी साल में बीजेपी सरकार ने किसानों को लुभाने के लिए ब्याज माफी का दांव चला है। इधर कांग्रेस एकबार फिर कर्जमाफी का ऐलान कर चुकी है। अब किसान तोल मोल कर ये देखने की कोशिश कर रहे हैं कि बीजेपी की ब्याज माफी की योजना फायदेमंद है या कांग्रेस की किसान कर्जमाफी। चुनावी साल में किसान नफा नुकसान का आंकलन करने में जुट गया है। बता दें कि 9 मई 2023 को कैबिनेट की बैठक में शिवराज सरकार ने 11 लाख 19 हजार किसानों का 2 लाख रु. तक के कर्ज का बकाया ब्याज माफ करने का ऐलान किया था। ये वो किसान है जिन्होंने सहकारी बैंकों की प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्था से कर्ज लिया था। सरकार 2 हजार 123 करोड़ रु. ब्याज माफ कर रही है। जिसकी प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है।
मंत्री का दावा— खाद बीज मिल सकेगा, किसानों ने कहा संभव ही नहीं
योजना को लेकर सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया ने कहा था कि ब्याज माफ इसलिए किया जा रहा है ताकि किसान डिफाल्टर सूची से बाहर आ सके और सहकारी समितियों से खाद बीज खरीद सके। लेकिन इसके बाद भी किसानों को खाद बीज मिलने में मुश्किलें आ सकती है। रतलाम के किसान ईश्वरलाल पाटीदार का कहना है कि खाद तो हमें वैसे भी नहीं मिलेगा। वहीं किसान नेता राजेश पुरोहित का कहना है कि जब तक बैलेंस जीरो नहीं हो जाता, मतलब ब्याज के साथ मूलधन जमा नहीं हो जाता तब तक बैंक खाद बीज नहीं देगी।
कर्ज की औसतन 9.45 फीसदी राशि ही भरेगी सरकार
अब सरकार कह रही है कि ब्याज माफ होने के बाद किसान सहकारी संस्थाओं से खाद बीज ले सकेंगे और किसान कह रहे हैं खाद बीज लेना इतना आसान होगा नहीं। आखिरकार ऐसा कैसे होगा, तो इसका जवाब ये है कि सरकार ब्याज माफ कर रही है मूलधन नहीं, भोपाल रोंझिया के किसान जीतेंद्र यादव ने बताया कि किसी किसान पर ब्याज समेत 2 लाख रु. का कर्ज है तो सरकार इस कर्ज का ब्याज जो औसतन 9.45 फीसदी यानी 18973 रूपए ही भरेगी, मतलब ब्याज के बाद भी किसान पर 1 लाख 80 हजार रूपए से ज्यादा का कर्ज मूलधन के रूप में बना रहेगा।
सभी बैंको के कर्जदार किसानों को मिले योजना का लाभ
यही कारण है कि किसान संगठन मांग कर रहे हैं कि सरकार को किसानों को फायदा देना है तो पूरा कर्ज यानी ब्याज के साथ मूलधन भी माफ किया जाए और न केवल सहकारी बैंक बल्कि बाकी बैंकों का कर्ज भी सरकार को माफ करना चाहिए। किसान जागृति संगठन के संस्थापक इरफान जाफरी का कहना है कि पूर्व की सरकार में कर्जमाफी का मतलब था कि 2 लाख तक का कोई भी किसान चाहे उसने किसी भी बैंक से कर्ज लिया हो उसका कर्ज माफ किया जाएगा। इसमें मूलधन और ब्याज दोनो की राशि शामिल थी, यदि सरकार को किसानों को थोड़ा भी लाभ पहुंचाना है तो वह इस योजना में सभी बैंकों के कर्जदार किसानों को शामिल करे।
उम्मीद के मुताबिक नहीं मिला प्रतिसाद, सिर्फ 27 फीसदी ने किया आवेदन
ब्याज माफी के लिए 12 मई से आवेदन की प्रक्रिया भी शुरू हुई थी। तीन दिनों तक आवेदन लिए जाने थे और 22 मई को सहकारी बैंकों में पैसा पहुंचने वाला था। 13 मई से आवेदन भरने का काम शुरू तो हुआ लेकिन किसानों ने योजना में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। सहकारिता विभाग के सूत्रों के मुताबिक 22 मई तक केवल 3 लाख किसानों ने ही ब्याज माफी योजना में आवेदन किया है। यानी 11 लाख 19 हजार में से केवल तीन लाख इसका मतलब केवल 27 फीसदी किसानों ने आवेदन किया है। शायद यही वजह है कि सरकार की ब्याज माफी योजना को वैसा प्रतिसाद नहीं मिला जैसी उम्मीद की जा रही थी।
25 मई को होने वाला भव्य कार्यक्रम भी स्थगित
दरअसल कांग्रेस भी अपने वचन पत्र में किसान कर्जमाफी का वादा एकबार फिर शामिल करने जा रही है, इसलिए किसान अब ये देख रहे हैं कि बीजेपी की ब्याज माफी सही है या फिर कांग्रेस की कर्जमाफी और वो इसी गुणा भाग में जुट गए हैं। 25 तारीख को सरकार एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन भी होने वाला था। ये सारी बातें खुद सहकारिता विभाग के मंत्री अरविंद भदौरिया ने कैबिनेट ब्रीफिंग में कही थीं। अब सूत्र बता रहे हैं कि सहकारिता मंत्री ने कैबिनेट ब्रीफिंग में जिस कार्यक्रम की रूपरेखा बताई थी वो कार्यक्रम आगे बढ़ा दिया गया है।
क्या किसान खुद कर्ज से बाहर नहीं निकलना चाहते!
आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि ऐसा क्यों है, क्या किसान खुद कर्ज से बाहर निकलना नहीं चाहते? क्या वो नहीं चाहते कि डिफाल्टर का दाग उनके सिर से हट जाए? दरअसल किसानों को ब्याज माफी की योजना रास आती नजर नहीं आ रही, क्योंकि उनका सीधा सवाल है कि ब्याज माफी से क्या होगा मूलधन तो वैसे का वैसा ही है। रतलाम के किसान ईश्वरलाल पाटीदार ने कहा कि मेरा 50 हजार का कर्ज माफ होना था, नहीं हुआ और हम डिफाल्टर हो गए। पहले सरकार चोर बना रही है। चोर बनाकर ब्याज माफ करने से क्या होगा।
ये रहा किसान के नफा नुकसान का गणित
दरअसल किसान के बीच में अब एक मैसेज तेजी से जा रहा है और वो ये कि यदि वह बीजेपी की ब्याज माफी योजना में आवेदन देंगे और उनके कर्ज का ब्याज माफ हो जाएगा तो वो कांग्रेस की कर्ज माफी योजना के हकदार नहीं रहेंगे, क्योंकि एकबार ब्याज माफ होने पर वो NPA यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट से बाहर हो जाएंगे यानी वो कर्जदार की कैटेगरी में नहीं माने जाएंगे, दूसरी तरफ कांग्रेस की कर्जमाफी योजना में मूलधन के साथ ब्याज भी माफ होगा। यानी किसान अब ये देख रहे हैं कि बीजेपी और कांग्रेस में से किसकी योजना उसके लिए फायदेमंद होगी। वैसे भी चुनाव तो महज 5 महीने बचे हुए हैं, ऐसे में किसान यही सोच रहे हैं कि यदि वोटरों का मिजाज बदला और कांग्रेस सत्ता में आ गई तो छोटी सी राशि माफ करवाकर वो एक बड़ी राशि की माफी से चूक जाएंगे और यदि कांग्रेस सत्ता में नहीं आई तो बीजेपी ने वैसे ही योजना में आवेदन की समय सीमा को हटा दिया है, इसलिए किसान वेट एंड वॉच की स्थिति में है।