कांग्रेस के 137 साल के इतिहास में 5वीं बार अध्यक्ष का चुनाव, पूरी तरह गुप्त होगा, पता नहीं चल पाएगा किस राज्य से कितने वोट आए

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Atul Tiwari
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कांग्रेस के 137 साल के इतिहास में 5वीं बार अध्यक्ष का चुनाव, पूरी तरह गुप्त होगा, पता नहीं चल पाएगा किस राज्य से कितने वोट आए

अरुण तिवारी, BHOPAL. कांग्रेस के नए अध्यक्ष के चुनाव का दिन (17 अक्टूबर) नजदीक आता जा रहा है। कांग्रेस संगठन के अंदर सरगर्मियां बढ़ गई हैं। 19 अक्टूबर को कांग्रेस के नए अध्यक्ष का नाम सामने आ जाएगा। मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर में से किसी एक को कांग्रेस की कमान मिल जाएगी। कांग्रेस के 137 साल के इतिहास में 5वीं बार पार्टी अध्यक्ष के लिए चुनाव हो रहे हैं। 22 साल बाद ऐसा होगा जब कोई गैर गांधी कांग्रेसी की कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर ताजपोशी होगी। ये मतदान पूरी तरह से गुप्त होगा और यहां तक कि ये भी पता नहीं लग पाएगा कि किस राज्य किसको कितने वोट मिले। 





इस तरह होगा राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए मतदान



 



राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए चुनाव प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाया गया है। वोट डालने से पहले किसी को मतपर्ची भी नहीं दिखाई जाएंगी। 17 अक्टूबर को सुबह 10 बजे से 3 बजे तक पीसीसी में वोट डाले जाएंगे। दिल्ली से चुनाव कार्य में जुटे अधिकारी मतपर्ची और मतपेटी के साथ भोपाल आएंगे। प्रदेश में 487 डेलीगेट्स हैं जो मतदान में भाग लेंगे। वोट डलने के लिए मतपेट को सील बंद कर दिल्ली ले जाएगा। 





19 अक्टूबर को मतगणना होगी। इस दिन सभी राज्यों से आई मतपेटियों के मतों को एक साथ मिला दिया जाएगा। इसके बाद मतगणना होगी ताकि ये भी सामने न आ पाए कि किस राज्य से किसको किने वोट मिले हैं। मतदान पूरी तरह से गुप्त होगा और इसमें प्रदेश अध्यक्ष या मुख्यमंत्री को निर्देश देने का अधिकार नहीं होगा। नेता अपने मन से अपना वोट डालेंगे और इसका पता किसी को नहीं चलेगा। चुनाव की तरह उम्मीदवारों ने अपने मेनिफेस्टो भी जारी किए हैं, जिसमें उन्होंने अपना विजन बताया है। 





थरूर और खड़गे आ चुके हैं भोपाल



 



कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के दो उम्मीदवार हैं, मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरुर। दोनों उम्मीदवारों ने देश के अलग-अलग राज्यों में चुनाव प्रचार किया है। दोनों नेता भोपाल भी पहुंचे और पीसीसी डेलिगेट्स के साथ मीटिंग की। खड़गे ने नेताओं को अपना विजन बताया तो शशि थरूर ने 2024 में जीत की रणनीति पर चर्चा की।





कांग्रेस का 137 साल का इतिहास 





कांग्रेस के 137 साल के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि ज्यादातर समय अध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मति से हुआ यानी दो या इससे अधिक उम्मीदवारों के बीच चुनावी मुकाबले की स्थिति पैदा नहीं हुई। 1939 का कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव ऐतिहासिक था। इसमें महात्मा गांधी समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया को नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में बोस को 1,580 वोट मिले थे तो सीतारमैया को 1,377 ही वोट हासिल हुए थे।





आजादी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद का पहला चुनाव 1950 में हुआ। आचार्य जेबी पलानी और पुरुषोत्तम दास टंडन के बीच चुनावी मुकाबला हुआ, टंडन जीते। टंडन को 1,306 वोट मिले तो कृपलानी को 1,092 वोट हासिल हुए। बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ मतभेदों की वजह से टंडन ने इस्तीफा दे दिया। फिर नेहरू ने पार्टी की कमान संभाली। उन्होंने 1951 और 1955 के बीच पार्टी प्रमुख और प्रधानमंत्री के रूप में काम किया। नेहरू ने 1955 में कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया और यूएन ढेबर कांग्रेस अध्यक्ष बने।





1950 के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 47 साल तक चुनावी मुकाबला नहीं हुआ। 1997 में पहली बार त्रिकोणीय चुनावी मुकाबला हुआ। सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट ने चुनाव लड़ा और इसमें केसरी जीते। केसरी को 6,224 तो पवार को 882 और पायलट को 354 वोट हासिल हुए थे। इस चुनाव के एक साल बाद ही कांग्रेस कार्यसमिति ने एक प्रस्ताव पारित कर केसरी को हटा दिया था। 





22 साल पहले सोनिया के सामने थे जितेंद्र प्रसाद





आजाद भारत में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए तीसरी बार (वैसे चौथी बार) चुनाव 2000 में हुआ। सोनिया गांधी के सामने उत्तर प्रदेश के दिग्गज ब्राह्मण नेता जितेंद्र प्रसाद खड़े हुए। कभी राजीव गांधी के राजनीतिक सचिव रहे प्रसाद को इस चुनाव में करारी हार झेलनी पड़ी और उन्हें सिर्फ 94 वोट हासिल हुए। सोनिया को 7,400 डेलिगेट का समर्थन मिला था। आजादी के बाद अब तक पार्टी की कमान 16 लोग संभाल चुके हैं, जिसमें गांधी परिवार के पांच अध्यक्ष रहे हैं। वर्तमान में सोनिया कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं और वह कांग्रेस के इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर रहने वाली महिला नेता हैं।





कांग्रेस में अध्यक्ष पद पर 4 दशक तक रहा गांधी परिवार का दबदबा





स्वतंत्र भारत में गांधी परिवार के सदस्य करीब चार दशक तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं। नेहरू ने 1951 और 1955 के बीच पार्टी प्रमुख के रूप में काम किया। नेहरू ने 1955 में कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया और यूएन ढेबर ने पार्टी की कमान संभाली। इसके बाद इंदिरा गांधी 1959, 1966-67, 1978-1984 तक कांग्रेस अध्यक्ष रहीं। बाद में कांग्रेस का कई मौकों पर विभाजन भी हुआ, हालांकि पार्टी का प्रमख हिस्सा गांधी परिवार के साथ रहा। 





के. कामराज 1964-67 तक अध्यक्ष रहे। एस निजलिंगप्पा 1968-69 में कांग्रेस अध्यक्ष रहे। इसके बाद जगजीवन राम 1970-71 में कांग्रेस अध्यक्ष बने। फिर डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा 1972-74 तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे। 1975-77 में देवकांत बरुआ कांग्रेस अध्यक्ष बने। इंदिरा गांधी की हत्या के 1985 से 1991 तक उनके बेटे राजीव गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली। इस दौरान पांच साल तक वे प्रधानमंत्री भी रहे। 1992-96 के बीच पीवी नरसिंहराव कांग्रेस अध्यक्ष रहे।



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