BHOPAL. शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया, जब इन तीन आला नेताओं के बीच का मनमुटाव ही खुलकर नजर आने लगेगा तो बाकी पार्टी का क्या हाल होगा। आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए किसी विरोधी दल की जरूरत नहीं है। इस बार खुद बीजेपी के नेता ही अपनी पार्टी की हार का कारण बनते दिखाई दे रहे हैं। माइक्रोप्लानिंग कर चुनाव जीतने के लिए मशहूर बीजेपी के पास फिलहाल अपने ही कुछ नेताओं से निपटने की कोई प्लानिंग नजर नहीं आ रही।
सिंधिया गुट की अनबन कई बार खुलकर सामने आई
बीजेपी कभी गुटबाजी का शिकार नहीं रही। ये पार्टी विद डिसिप्लीन है। बीजेपी पूरे गुरूर के साथ ऐसे कई दावे करती रही है, लेकिन इस चुनाव से पहले हर अंचल में बीजेपी नेताओं की गुटबाजी सतह पर ही नजर आ रही है। दल बदल कर आने वाला सिंधिया गुट तो पहले से ही गुटबाजी के लिए बदनाम है। ग्वालियर चंबल में नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट की अनबन कई बार खुलकर सामने आई है। दूसरे अंचलों में भी हालात बीजेपी के कंट्रोल से बाहर हैं। मालवा जहां बीजेपी पूरी ताकत लगा रही और विंध्य जहां से बीजेपी को पिछली बार अच्छी खासी सीटें मिली वहां भी अब बीजेपी के नेता अपनी ही पार्टी के खिलाफ मुखर हो रहे हैं।
बीजेपी में मनमुटाव का ताजा उदाहरण है ग्वालियर मेले का उद्घाटन
मध्यप्रदेश कांग्रेस में तो गुटबाजी अक्सर नजर आती रही है। कांग्रेस के लिए तो कहा ही ये जाता रहा कि यहां एक कांग्रेस नहीं, तीन-तीन कांग्रेस है। एक कमलनाथ कांग्रेस, एक दिग्गी कांग्रेस और एक सिंधिया कांग्रेस। इसमें सिंधिया कांग्रेस अब बीजेपी हिस्सा बन चुकी है। इधर सिंधिया पूरी तरह से बीजेपी के रंग में ढलने की कोशिश कर रहे हैं, उधर ग्वालियर चंबल में समर्थकों की अनबन बढ़ती जा रही है। जिसका असर दिग्गज नेताओं पर भी नजर आने लगा है। हालात ये हैं कि जिन नेताओं पर पार्टी को बांधकर, एकजुट रखने की जिम्मेदारी है वही नेता एक दूसरे को फूटी आंख नहीं भा रहे। उससे भी बड़ी बात ये है कि उनके बीच का मनमुटाव अब खुलकर सामने आने लगा है इसका उदाहरण है हाल में होने वाला ग्वालियर मेले का उद्घाटन। इस मेले का उद्घाटन 5 जनवरी को होना था इसमें शिरकत करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली से आने वाले थे उनका ऑफिशियल दौरा कार्यक्रम भी ग्वालियर प्रशासन को भेज दिया गया था। सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और शिवराज कैबिनेट में मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा को इस कार्यक्रम में वर्चुअली शिरकत करनी थी। सीएम और केंद्रीय मंत्री तो छोड़िए सकलेचा तक ने इसमें भाग लेने के लिए अपना प्रोग्राम कंफर्म नहीं किया। नतीजा ये हुआ कि सिंधिया ने तो अपना दौरा निरस्त किया ही मेले का उद्घाटन भी टाल दिया गया। नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच का कॉम्पिटिशन और मनमुटाव तो किसी से छिपा नहीं है। अब सीएम शिवराज सिंह चौहान भी उस मनमुटाव का हिस्सा बनते नजर आ रहे हैं.।
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सिंधिया-तोमर के बीच खाई लगातार बढ़ती ही जा रही है
सिंधिया-तोमर की गुटबाजी तो आलाकमान की नजरों से भी नहीं छुप सकी। अक्टूबर में राजमाता विजयाराजे सिंधिया टर्मिनल के उद्घाटन के लिए खुद अमित शाह ग्वालियर पहुंचे थे। इस कार्यक्रम के हॉर्डिंग और पोस्टर से सिंधिया समर्थकों ने नरेंद्र सिंह तोमर को ही गायब कर दिया था। इसके बाद से दोनों के बीच की खाई लगातार बढ़ती ही जा रही है। जिसे पाटने की कोई जुगत आलाकमान को नहीं सूझी है और अब सीएम भी इसका हिस्सा बन गए हैं। ये हालात सिर्फ ग्वालियर चंबल के ही नहीं हैं। सिंधिया समर्थक की वजह से टिकट और सीट दोनों गंवा चुके दीपक जोशी भी अपनी ही पार्टी के खिलाफ व्हिसिल ब्लोअर बन गए हैं। गुटबाजी की आग से महाकौशल और विंध्य भी सुलग रहा है। बुंदेलखंड को जलाने के लिए फिलहाल फायरब्रांड नेत्री उमा भारती ही काफी नजर आ रही हैं।
इस बार मालवा को साधने के लिए बीजेपी एड़ी चोटी का जोर लगा रही है
गुटबाजी की आग सिर्फ ग्वालियर चंबल में नहीं लगी है। महाकौशल, विंध्य, बुंदेलखंड और मालवा भी इसका शिकार है। मालवा बीजेपी के लिए चिंता का विषय इसलिए भी है कि पिछले चुनाव में बीजेपी को यहां से जबरदस्त झटका लगा था। चुनावी नतीजों में जीत की चाबी आमतौर पर मालवा के ही हाथ रहती है। पिछले चुनाव में ये चाबी कांग्रेस के हाथ लगी और वो सत्ता पर काबिज हो गई। इस बार मालवा को साधने के लिए बीजेपी एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। कुछ ही दिन में पीएम इंदौर दौरा करने वाले हैं। इससे पहले वो उज्जैन में महाकाल लोक के लिए आ चुके हैं। इन सबके बीच मालवा की ही एक विधानसभा सीट से पहले विधायक और शिवराज कैबिनेट में मंत्री रहे दीपक जोशी पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। दीपक जोशी ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत भ्रष्टाचार होने का आरोप लगाते हुए पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पत्र लिखा है। अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाले जोशी ने अकेले बागली विधानसभा सीट से योजना के तहत 17 करोड़ से ज्यादा के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। उनका पत्र वायरल होते ही लोकायुक्त पुलिस एक्टिव हुई और उज्जैन में 46 लोगों पर एफआईआर दर्ज की। इस एफआईआर में इंदौर और देवास की फर्मों के नाम भी शामिल हैं।
इतने पर भी मतभेद रुक जाते तो ठीक था। बीजेपी के लिए तो हर अंचल में अपने ही नेता मुश्किल बन रहे हैं।
बीजेपी में गुटबाजी
महाकौशल
- महाकौशल में बीजेपी नेताओं की गुटबाजी की कहानी व्हाट्सएप वॉर के रूप में उभरी।
मध्य
- मध्य अंचल में भी गुटबाजी नजर आने लगी है।
ग्वालियर-चंबल
- तोमर-सिंधिया के मन मुटाव के अलावा सिंधिया समर्थक और पुराने भाजपाइयों के बीच जंग जारी है।
बुंदेलखंड
- बुंदेलखंड में उमा भारती ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा संभाले नजर आ रही हैं।
विंध्यांचल
- मंत्रिमंडल में पर्याप्त जगह न मिलने की नाराजगी विंध्य के नेताओं में अक्सर नजर आती है।
नेताओं की ये नाराजगी आने वाले चुनाव में बीजेपी पर भारी पड़ सकती है। तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी ऐसी कोई रणनीति तैयार नहीं कर सकी जो नाराज नेताओं को एक कर सके।
राष्ट्रीय स्तर के नेता ही गुटबाजी के शिकार
बीजेपी के सामने ये बड़ी मुश्किल मुंह बायें खड़ी है। नगरीय निकाय चुनाव में भी गुटबाजी जमकर नजर आई। अब विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। तब भी गुटबाजी से उबरने का कोई तरीका नजर नहीं आ रहा। पार्टी के छोटे नेता या क्षेत्र विशेष में सिमटे नेताओं को तो छोड़िए अब तो राष्ट्रीय स्तर के नेता ही गुटबाजी का शिकार नजर आ रहे हैं। ऐसे हालात में चुनावी मैदान में पार्टी का क्या हाल होगा ये अंदाजा लगाया जा सकता है।